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दिनकर कुमार की कविता
उत्सव की पूर्वसंध्या पर
उत्सव की पूर्वसंध्या पर मंहगाई बढ़ जाती है हमारे शहर में
रसोई गैस की किल्लत हो जाती है
छह सौ रूपए किलो बिकने लगती है इलीस मछली
उत्सव की पूर्वसंध्या पर
राजधानी छोड़कर चले जाते हैं शासक
तिरुपति बाला जी का दर्शन करने
किसी दूसरे प्रांत के फार्म हाउस में थकान मिटाने
उत्सव की पूर्वसंघ्या पर
रेल्वे स्टेशन के बाहर ग्रेनेड विस्फोट किया जाता है
समूचा मध्यवर्ग शराब की दुकान के सामने
कतार लगाकर खड़ा हो जाता है !
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अजेय की कविता
आग के इलाक़े में आओ!
(चन्द्रकांत देवताले की कविताएं पढ़ने के बाद)
कब तक टालते रहोगे
एक दिन तुम्हें आना ही होगा
आग के इलाक़े में
जहां जल जाता है वह सब
जो तुमने ओढ़ रखा है
और जो नंगा हो जाने की जगह है
नहीं है जहां से बचकर निकलने का कोई चोर दरवाज़ा
तुम्हें आना चाहिए
स्वयं को परखने के लिए
बार-बार
आग के इलाक़े में
ज़रूरी नहीं
तपकर तुम्हें सोना ही होना है
सोंधी और खरी
बेशक भुरभुरी
मिट्टी होने के लिए भी तुम्हें आना चाहिए
जो हवा में उड़ जाती है
और हवा होने के लिए भी
जो भर सकती है तमाम सूनी जगहों को
जो पतली है पानी से भी
और पानी होने के लिए भी
ढोते हुए अपना पूरा वज़न जो
पहुंच सकता है आकाश तक
और आकाश होने के लिए भी
क्योंकि वही तो था आखिर
जब कुछ भी नहीं था
फिर सब कुछ हुआ जहां
और उस प्रचुरता को
भरपूर भोग लेने को उद्धत आतुर जीव भी हुए
और जीवों में श्रेष्ठतम तुम हुए आदमी
अपनी ही एक आग लिए हुए
भीतर
बोलो खो देना चाहते हो क्या वह आग?
अगर नहीं
तो वह आग होने के लिए
फिर से तुम्हें आना चाहिए
बार-बार आना चाहिए
आग के इलाक़े में !
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हाल में ही भोपाल में राजेश जोशी जी के घर ‘प्रगतिशील वसुधा’ के संपादक कमला प्रसाद जी से मुलाक़ात हुई थी. उन्होंने कहा था, ‘वसुधा’ का कोई अंक वे निशुल्क नही बांटते. जानकर अच्छा लगा. आपके पोस्ट को देखकर उनकी याद आ गई.
विषयांतर के लिय क्षमा.
आज वसुधा जो भी है वह कमलाप्रसाद जी की मेहनत का नतीजा है…वे बधाई पे पात्र हैं….
अच्छी कविताओं के लिए बधाई….
आपको कवियों का भी आभारी होना चाहिए….
is issue mein aapki bhi to ek lambi kavita hai
ye mere liye achcha hai k is door daraz me , achchi patrikaon k taza ankon me chuninda kaviyon ko turat padh liya karoonga. varna kabhi kabhi to 3-4 maheene bad hi naya ank milpaata hai yahan.ise jaari rakhen …..