आदरणीय ज्ञान जी !
मुझे नहीं लगता की आप ब्लॉग की दुनिया में आते होंगे। कल वीरेन जी ने फोन पर पहल के पटाक्षेप की स्तब्धकारी सूचना दी और कहा इसे ब्लॉग की दुनिया में बताया जाय ! जाहिर है कि मकसद सबको अवगत कराना था, जिससे सम्भव था कि कुछ लोग आपसे बात कर आपको इस तरह के किसी भी पटाक्षेप से विमुख करने की कोशिश करें और ऐसा हुआ भी है ! सिद्धेश्वर भाई ने आपसे बात कर उसका ब्यौरा कबाड़खाने पर दिया है !
आपका पत्र आपके कुछ दोस्तों को मिला है ,जिनका साहित्य में बड़ा नाम है और पहल से गहरा जुड़ाव भी। मेरा ये पत्र आप शायद ही पढ़ें पर ये एक गुजारिश है कि जहाँ तक सम्भव हो पहल को जारी रखें …
कुछ मित्र कह रहे हैं कि आप एक टीम बना कर उसे आगे की जिम्मेदारी सौंप दें पर मुझे नहीं लगता ज्ञानरंजन के बिना पहल हो सकती है !
कुछ मित्र कह रहे हैं कि आप एक टीम बना कर उसे आगे की जिम्मेदारी सौंप दें पर मुझे नहीं लगता ज्ञानरंजन के बिना पहल हो सकती है !
कुछ समय पहले मैंने आपके परममित्र कुमार विकल की आपको संबोधित एक कविता लगाई थी , उसे आज फ़िर लगा रहा हूँ – कृपया अपने दिवंगत मित्र की आवाज़ सुनें !
आओ पहल करें
जब से तुम्हारी दाढ़ी में
सफेद बाल आने लगे हैं
तुम्हारे दोस्त
कुछ ऐसे संकेत पाने लगे हैं
कि तुम
जिन्दगी की शाम से डर खाने लगे हो
और दोस्तों से गाहे-बगाहे नाराज़ रहने लगे हो
लेकिन, सुनो ज्ञान !
हमारे पास जिन्दगी की तपती दोपहर के धूप-बैंक की
इतनी आग बाक़ी है
जो एक सघन फेंस को जला देगी
ताकि दुनिया ऐसा आंगन बन जाए
जहां प्यार ही प्यार हो
और ज्ञान !
तुम एक ऐसे आदमी हो
जिसके साथ या प्यार हो सकता है या दुश्मनी
तुमसे कोई नाराज़ नहीं हो सकता
तुम्हारे दोस्त
पड़ोसी
सुनयना भाभी
तुम्हारे बच्चे
या अपने आप को हिंदी का सबसे बड़ा कवि
समझने वाला कुमार विकल
जब से तुम्हारी दाढ़ी में
सफेद बाल आने लगे हैं
तुम्हारे दोस्त
कुछ ऐसे संकेत पाने लगे हैं
कि तुम
जिन्दगी की शाम से डर खाने लगे हो
और दोस्तों से गाहे-बगाहे नाराज़ रहने लगे हो
लेकिन, सुनो ज्ञान !
हमारे पास जिन्दगी की तपती दोपहर के धूप-बैंक की
इतनी आग बाक़ी है
जो एक सघन फेंस को जला देगी
ताकि दुनिया ऐसा आंगन बन जाए
जहां प्यार ही प्यार हो
और ज्ञान !
तुम एक ऐसे आदमी हो
जिसके साथ या प्यार हो सकता है या दुश्मनी
तुमसे कोई नाराज़ नहीं हो सकता
तुम्हारे दोस्त
पड़ोसी
सुनयना भाभी
तुम्हारे बच्चे
या अपने आप को हिंदी का सबसे बड़ा कवि
समझने वाला कुमार विकल
कुमार विकल
जिसकी जीवन-संध्या में
अब भी
धूप पूरे सम्मान से रहती है
क्योंकि
वह अब भी
धूप का पक्षधर है
प्रिय ज्ञान !
आओ हम
अपनी दाढ़ियों के सफेद बालों को भूल जाएं
और एक ऐसी पहल करें
कि जीवन-संध्याएं
दोपहर बन जाएं !
शिरीष जी, मुझे पूरा विश्वास है कि ’पहल’ जारी रहेगी। ’पहल’ के बंद होने से बना निर्वात शायद ही हिंदी का कोई प्रकाशन भर पाए।
पहल करें, पहल करें…
क्या पहल के लिए ज्ञान जी को कोई उत्तराधिकारी नहीं मिला? टीम को सोंपने का विचार अच्छा है।
bas pahal hee jaruri hai
narayan narayan
प
ह
ल
तो निकलनी ही चाहिये.
निकलेगी।
Gian ji ka dard jayaz hai….
swasthya ki pareshani bhi wajib…
lekin agar pahal ka band hojana
hindi k mathadheeshon ko khulkar khelne ka mauka dene jaisa hoga. aise me sahitya ki kya gati hogi?
pahal ka band hone ka sochate hi sadama sa lagata hai.yah shuru hoti hui sadi ki sabase buri khabar hai. kumar vikal ka kahana gyanji ko manana hi chahiye.gyan ji hum sabhi se pyar karate hain. gyan ji tak hame sare sandesh pahunchane honge.
निकल रही है पहल. खुश हो जाओ