युवा कवि गिरिराज किराडू प्रतिलिपि नाम की एक पत्रिका निकलते हैं , जिसके प्रिंटेड रूप से मै परिचित नहीं पर नेट पर हर कोई इस पत्रिका से परिचित है। इसकी एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें कई – कई धाराओं के कई – कई विशिष्ट लेखकों को एक जगह पढ़ा जा सकता है। इस बार के अंक में मुझे प्रभात नाम का ये अद्भुत कवि मिला। इस कवि की दो कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं …… मूल पत्रिका के प्रति आभार के साथ।
गीला भीगा पुआल
कौन आ रहा है हरे गेंहूओं के कपड़े पहन कर
कौन ला रहा है सरसों के फूलों के झरने
किसने खोला दरवाजा बर्फानी हवाओं का
कैसे चू आये एकाएक रात की आंख से खुशी के आँसू
कौन ला रहा है सरसों के फूलों के झरने
किसने खोला दरवाजा बर्फानी हवाओं का
कैसे चू आये एकाएक रात की आंख से खुशी के आँसू
ओह! शिशिर
तो तुम आ गए
तो तुम आ गए
आओ आओ
यहाँ बैठो
त्वचा के बिल्कुल करीब
यहाँ बैठो
त्वचा के बिल्कुल करीब
यहाँ आंगन में लगाओ बिस्तरा
गीला भीगा पुआल
गीला भीगा पुआल
हमसफ़र
मेरा कोई मुसलमान दोस्त नहीं
मेरे पिता का एक था
मेरे पिता का एक था
मैं अब गाँव में रहता नहीं
शहर में वहाँ रहता हूँ
जहां मुसलमान नहीं रहते
अब मेरे पास बची हैं स्मृतियां
शहर में वहाँ रहता हूँ
जहां मुसलमान नहीं रहते
अब मेरे पास बची हैं स्मृतियां
मेरे बाबा के कई मुसलमान दोस्त थे
करीमा सांईं, मुनीरा सांईं
अशरफ़ चचा, चाची सईदन
बन्नो, रईला
करीमा सांईं, मुनीरा सांईं
अशरफ़ चचा, चाची सईदन
बन्नो, रईला
सुदूर बचपन की स्मृतियाँ हैं ये
हमारे घर आना जाना
उठना बैठना था उनका
हमारे घर आना जाना
उठना बैठना था उनका
समाज की बुनावट
कुछ ऐसी होती गई बीते दिनों
बकौल मीना कुमारी
‘हम सफर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तनहा-तनहा’
कुछ ऐसी होती गई बीते दिनों
बकौल मीना कुमारी
‘हम सफर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तनहा-तनहा’
सच कहा भाई। दोनों चलते रहे तन्हा- तन्हा ….
अच्छी कविताएं !
सचमुच बेहतरीन अभिव्यक्ति…
शिरीष भाई आपका ईपता तो कहीं मिला नहीं।
अच्छी कवितायें पढ़वाने के लिये धन्यवाद.
AAPKE BHAV HAIN JINHONE SHABDO KE MADHYAM SE KAVITA KA RUP LE LIYA. NARAYAN NARAYAN
gaon ke pual ke atmiy swad ke bad shahar ke ilakon se musalmano ki anupasthiti….adbhut aur taja abhivyakti…apki parkhi nigahon ko dhanyavad
prabhat ki kavitayen bahut sundar hai.
सचमुच ग़ज़ब की कवितायें
इनकी और कवितायें प्रकाशित करें…प्लीज़
प्रभात से परिचय पहली बार यहीं हुआ था. उसके बाद उनकी कविताएँ ढूंढ-ढूंढ कर पढीं.
आज कविता समय की उस जूरी का हिस्सा होने के कारण,जिसने प्रभात को कविता समय सम्मान-२०१२' देने की घोषणा की है…अनुनाद का हार्दिक आभार!
बहुत ही अच्छी कवितायेँ. प्रभात को बधाई.