(उन दो औरतों के लिए जिन्होंने कुछ दिनों तक शहर को डुबो दिया था)
दरवाज़ा खोलते ही झुलस जाएं आप शर्म की गर्मास से
खड़े-खड़े ही गड़ जाएं महीतल, उससे भी नीचे रसातल तक
फोड़ लें अपनी आंखें निकाल फेंके उस नालायक़ दृष्टि को
जो बेहयाई के नक्की अंधकार में उलझ-उलझ जाती है
या चुपचाप भीतर से ले आई जाए
कबाट के किसी कोने में फंसी इसी दिन का इंतज़ार करती
किसी पुरानी साबुत साड़ी को जिसे भाभी बहन मां या पत्नी ने
पहनने से नकार दिया हो
और उन्हें दी जाएं जो खड़ी हैं दरवाज़े पर
मांस का वीभत्स लोथड़ा सालिम बिना किसी वस्त्र के
अपनी निर्लज्जता में सकुचाईं
जिन्हें भाभी मां बहन या पत्नी मानने से नकार दिया गया हो
कौन हैं ये दो औरतें जो बग़ल में कोई पोटली दबा बहुधा निर्वस्त्र
भटकती हैं शहर की सड़क पर बाहोश
मुरदार मन से खींचती हैं हमारे समय का चीर
और पूरी जमात को शर्म की आंजुर में डुबो देती हैं
ये चलती हैं सड़क पर तो वे लड़के क्यों नहीं बजाते सीटी
जिनके लिए अभिनेत्रियों को यौवन गदराया है
महिलाएं क्यों ज़मीन फोड़ने लगती हैं
लगातार गालियां देते दुकानदार काउंटर के नीचे झुक कुछ ढूंढ़ने लगते हैं
और वह कौन होता है जो कलेजा ग़र्क़ कर देने वाले इस दलदल पर चल
फिर उन्हें ओढ़ा आता है कोई चादर परदा या दुपट्टे का टुकड़ा
ये पूरी तरह खुली हैं खुलेपन का स्वागत करते वक़्त में
ये उम्र में इतनी कम भी नहीं, इतनी ज़्यादा भी नहीं
ये कौन-सी महिलाएं हैं जिनके लिए गहना नहीं हया
ये हम कैसे दोगले हैं जो नहीं जुटा पाए इनके लिए तीन गज़ कपड़ा
ये पहनने को मांगती हैं पहना दो तो उतार फेंकती हैं
कैसा मूडी कि़स्म का है इनका मेटाफिजिक्स
इन्हें कोई वास्ता नहीं कपड़ों से
फिर क्यों अचानक किसी के दरवाज़े को कर देती हैं पानी-पानी
ये कहां खोल आती हैं अपनी अंगिया-चनिया
इन्हें कम पड़ता है जो मिलता है
जो मिलता है कम क्यों होता है
लाज का व्यवसाय है मन मैल का मंदिर
इन्हें सड़क पर चलने से रोक दिया जाए
नेहरू चौक पर खड़ा कर दाग़ दिया जाए
पुलिस में दे दें या चकले में पर शहर की सड़क को साफ़ किया जाए
ये स्त्रियां हैं हमारे अंदर की जिनके लिए जगह नहीं बची अंदर
ये इम्तिहान हैं हममें बची हुई शर्म का
ये मदर इंडिया हैं सही नाप लेने वाले दर्जी़ की तलाश में
कौन हैं ये
पता किया जाए.
जिसकी हर बात पर मैं भरोसा कर लेता था
उसने मुस्कराकर कहा
गंजे सिर पर बाल उग सकते हैं
मैंने उसे प्रयोग करने का ख़र्च नज़र किया
( मैं तब से वैज्ञानिक कि़स्म के लोगों से ख़ाइफ़ हूं)
उसने मुहब्बत के किसी मौक़े पर मुझे एक गिलास पानी पिलाया
और उस श्रम का कि़स्सा सुनाया निस्पृहता से
जो उसने वह कुआं खोदने में किया था
जिसमें सैकड़ों गिलास पसीना बह गया था
एक रात वह मेरे घर पहुंचा
और बीवी की बीमारी, बच्चों की स्कूल फीस
महीनों से एक ही कपड़ा पहनने की मजबूरी
और ज़्यादातर सुम रहने वाली एक लड़की की यादों को रोता रहा
वह साथ लाई शराब के कुछ गिलास छकना चाहता था
और बार-बार पूछता
भाभीजी घर पर तो नहीं हैं न
वह जब-जब मेरे दफ़्तर आता
तब-तब मेरा बॉस मुझे बुलाकर पूछता उसके बारे में
उसके हुलिए में पता नहीं क्या था
कि समझदार कि़स्म के लोग उससे दूर हो जाते थे
और मुझे भी दूरियों के फ़ायदे बताते थे
जो लोग उससे पल भर भी बात करते
उसे शातिर ठग कहते
मुझे वह उस बौड़म से ज़्यादा नहीं लगता
जो मासूमियत को बेवक़ूफ़ी समझता हो
जिसे भान नहीं
मासूमियत इसलिए जि़ंदा है
कि ठगी भूखों न मर जाए
महज़ रिवायत
(जॉर्ज माइकल के गीतों के लिए)
तुम्हारे साथ कभी नाच नहीं सकता अब
मेरे पैरों में थकान है, थिरकन नहीं
सबसे आसान है स्वांग करना
उसको पकड़ पाना सबसे मुश्किल
कितना बौड़म हूं
यह भी नहीं जानता
आग पर बर्फ़ रखने की कोई क्षमा नहीं
तवे पर छन्न की
छल के बदले क्या मिलता है
आंख चुराना सबसे बड़ी चोरी है
जानने का अवसर सिर्फ़ एक बार आता है
बाक़ी मुलाक़ातें तो महज़ रिवायत हैं
***
अलोना
लिखा जाए
लिखा जाए
इस तरह लिखा जाए
बहुत हो चुका मीठा-मीठा
जो मीठा है उसको नीम लिखा जाए
झूठ एक दर्शन है
किताबों में फिल्मों में कैसेट में सीडी में सिगरेट पान बीड़ी में
चिनाब में दोआब में तांबई शराब में मेरे समय के हिसाब में
जिन दिनों मैं जिया
उसे साफ़-साफ़
बहुत साफ़-साफ़
ख़राब लिखा जाए
चिह्न नहीं बिंब नहीं कोई लघु प्रश्न नहीं
जो कुछ है- चकाचौंध सब कुछ विशाल है
जिसे कहा गया सलोना
उसे रखो जीभ पर
क्या ग़लत होगा उसे
अलोना लिखा जाए
नव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं….
नीरज
शुक्रिया भाई। उसे यहां बहुत पहले होना था।
लेकिन उसका फोटो देखकर दहशत हो रही है। क्या यह उसका ताजा फोटो है। यह तो मुटिया रहा् है। अरे भाई सेहत बनाने का ये मतलब तो नहीं? इसकी कविता की सेहत जितनी अच्छी है उतनी अपनी सेहत बिगाड़ लेगा क्या?
शुक्रिया शिरीष.
इन कविताओं को यहां जगह देने के लिए.
रवि, इतना भी कहां. दो महीने पुरानी तस्वीर है. लगता है, ठंड में कुछ ज़्यादा हूरने लगा हूं.
सलाम !! गीत भाई को .. और आप को.
२००९ हम सब को मुबारक़ हो !
फ़ोटो बढ़िया है 🙂
और कविताओं के बारे में क्या कहना! बाकी पढ़ चुका था। ‘अलोना’ पहली बार पढ़ी मैंने..
वाह!