एक कविता
उधर मत देखो
दुनिया बस फट पड़ने को है
उधर मत ताको
दुनिया बस उड़ेलने को है अपनी सारी चकाचौंध
और ठूंस देने को उतारू है हमें अंधियारी खोह में
जहां हैं कालिख की मोटी दम घोंट देनेवाली परतें
वहां पहुंचकर हम मार डालेंगे एक-दूसरे को
या नष्ट हो जायेंगे खुद ही
या नाचने या फिर क्रंदन करने लगेगे
या निकालेंगे चीखें या गिड़गिड़ायेंगे चूहों जैसे
बस हमें तो लगानी है बोली अपनी ही
एक बार फिर से !
प्रभु बचाए अमरीका को
देखो फिर से निकल पड़े हैं अमरीकी बख्तरबंद परेड करते
जोर जोर से करते आह्लादकारी उद्घोष
पूरी दुनिया को सरपट रौंदते
और प्रशस्ति गाते अमरीका के प्रभु की
नालियां पट गई हैं उन लाशों से जो नहीं चले मिलाकर क़दम
या जिन्होंने मिलाए नहीं स्वर उद्घोष में
या बीच में ही टूट गई लय जिनकी
या भूल गए जो धुन प्रशस्तिगान की
योद्धाओं के हाथों में हैं
बीच से चीरकर रख देनेवाले चाबुक
और सिर तुम्हारा लुढ़का पड़ा है रेत में
गंदा-सा, गड्ढे बनाता सिर
धूल में गंदा निशान छोड़ता हुआ सिर
बाहर निकल आती हैं तुम्हारी आंखें
और चारों ओर फैल जाती है लाशों की संड़ाध
पर मुर्दा हवा में ठहरी हुई है ढीठ -सी
अमरीका के प्रभु की गंध …
मुलाकात
गहन रात के बीचों बीच
अरसा पहले मर चुके ताकते हैं आस से
नए मृतकों की ओर –
बढ़ाते हैं आगे और क़दम
मंद मंद जागने लगती हैं धड़कने
जब अंक में भरते हैं वे एक दूसरे को
अरसा पहले मर चुके बढ़ाते हैं उनकी ओर क़दम
रोके रुकती नहीं है रुलाई और चूमने को बढ़े होंट
जब मिलते हैं वे फिर से
पहली बार
और आखिरी बार…
नववर्ष की आपको व परिवारवालों को हार्दिक शुभकामना .
नया साल आए बन के उजाला
खुल जाए आपकी किस्मत का ताला|
चाँद तारे भी आप पर ही रौशनी डाले
हमेशा आप पे रहे मेहरबान उपरवाला ||
नूतन वर्ष मंगलमय हो |
मान गये गुरुदेव, कहाँ से ढ़ूढ़ लाते हैं आप एक से एक ‘महान’ हस्तियाँ?
मेरे मन में एक प्रश्न बार-बार उठ रहा है – क्या किसी दूसरे ने यही अनुवाद इससे बेहतर नहीं किया होता?