तोहफ़ा
मैं मध्यरात्रि के गर्भ से बोल रही हूं
दरअसल बता रही हूं अंधकार की अतियों के बारे में
और असीमित छाया की सघनता के बारे में भी
मेरे प्रिय
जब तुम आओगे मुझसे मिलने मेरे घर
साथ में लेते आना रोशनी बिखेरता एक चिराग़
और खोल देना यहां एक खिड़की भी
जिससे देख सकूं मैं भर आंखों
पूरे शबाब पर खुशनसीबों के नाचते-गाते
जनसमूह !
चिड़िया थी तो आखिर चिड़िया ही
चिड़िया बोली :
कितना है चटकीला दिन
कितनी ताज़ा यह हवा
अहा, वसन्त आ गया है
मैं निकलती हूं अब
अपने जोड़ीदार की तलाश में
चिड़िया उड़ी तारों की बाड़ के पार
छूने लगी बादल
और ओझल हो गई ऊंचाईयों में –
किसी चाहत की तरह
किसी प्रार्थना की तरह
किसी सरसराहट की तरह
और देखते-देखते बिखर गई चारों ओर चिड़िया हवा में
नन्हीं-सी चिड़िया
पिद्दी-सी चिड़िया
धूसर-सी चिड़िया
एकाकी थी चिड़िया पर थी सचमुच में एकदम आज़ाद
आकाश में ऊपर-नीचे
ट्रैफिक लाइटों के पार
सड़क पर बने निशानों के पार
उड़ती ही रही
अनवरत
अविराम
वह चिड़िया
और अंत में अपने ख्वाबों के शिखर पर पहुंच
उसने चखा काल और स्थान का आनन्द
चिड़िया थी तो आखिर चिड़िया ही
पर थी सचमुच में
एकदम आज़ाद !
गुलाब
गुलाब
गुलाब
ओ गुलाब !
वह मुझे साथ लेकर गया था
गुलाबों के बाग़ में
गुलाबों के बाग़ में
और खोंस दिया
मेरे आतुर बालों के बीच
एक गुलाब
गुलाबों के बाग़ में
एक झाड़ी की ओट लेकर
वह लेटा था
मेरे साथ
गुलाबों के बाग़ में
वृक्षों और पंछियों से थोड़ा परे हटकर
इसके बाद वह सोया था
मेरे साथ
सुनो न !
आंखों पर पट्टी बांधे हुई खिड़कियों
इस बाबत मैं तुमसे ही तो बोल रही हूं
सुनो न !
ईष्यालु वृक्षों, डरी हुई बतखों
इस बाबत मैं तुमसे ही तो बोल रही हूं
ग़़ौर से सुनना मेरी बात :
जोर-जोर से धड़कते मेरे दिल के नीचे
मेरे अंतर की अतल गहराई में
ऐसा लग रहा है
खिल रहा हो जैसे कोई गुलाब
लाल गुलाब
एक चटकीला लाल गुलाब
जैसे हो फहराता कोई ईश्वरीय ध्वज
फिर से जीवित हो जाने के दिन !
सुनो मेरी बात :
मुझे लगता है
जैसे बह रहा हो कोई गुलाब
मेरी उत्तेजित शिराओं के अंदर ही अंदर
मैं हो गई हूं गर्भवती
गर्भवती?
हां, गर्भवती !
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यादवेंद्र
एफ-24, शांतिनगर,
रुड़की – 247 667
फोन : 9411111689
वाकई अद्भुत। चटकीली लाल गुलाब सी, चिड़िया की उड़ान सी और चराग की रोशनी सी। आजादी की चाहत और प्रेम की तड़प सी.
फ़रोग की सभी कविताएं अद्भुत लगीं। आपने सही लिखा है, उनकी कविताओं में निर्बाध प्रेम का एक अनहद नाद सुनाई देता है। ख़ूबसूरत अनुवाद के लिए बधाई !
बहुत सुंदर और मार्मिक भी।
फ़रोग की एक और कविता के लिए यह पोस्ट देखें.
http://bbtiwari.blogspot.com/2009/03/blog-post_22.html
यादवेंद्र जी द्वारा हिंदी में अनूदित फ़रोग फ़रोखज़ाद की चार कविताएं “सेतु साहित्य” के अप्रैल 2009 अंक में भी पढ़ सकते हैं। लिंक हैं- http://www.setusahitya.blogspot.com