बिल्ली आ गई है
मुंडेर पर
खून है मुंडेर पर अभी ताज़ा
कितने ही पंख गिरे हैं
चारों ओर
उसकी आँखें हैं
जैसे जंगल जल रहे हों
और आंधियाँ चल रही हों
उसकी आँखें हैं
शिकार के लिए पागल
लेकिन सधे हुए हैं
क़दम उसके
एक-एक गिने हुए
हज के रास्ते में लगी है शायद
भूख उसको
बिल्ली आ गई है
मुंडेर पर
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(आपातकाल के विरोध में मनमोहन की `राजा का बाजा बजा, `चतुरलाल` आदि कई कविताएँ बेहद चर्चित हुई थीं। `बिल्ली आ गई है मुंडेर पर` आपातकाल के बाद लिखी गई थी। बेलची में दलितों की हत्या कर दी गई थी। बुरी तरह निराश इंदिरा गांधी की मानो बांछें खिल गई थीं। वे हाथी पर बैठकर बेलची पहुँचीं। इस तरह यह आपातकाल की खलनायिका के `पुनर्जीवन’ की शुरुआत थी।)
कविता के प्रतीकार्थ बहुत स्पष्ट हैं. नागार्जुन की याद भी दिलाते हैं, कवि को सलाम. आज की चुनावी बेला में ये और भी प्रासंगिक है. आपने नीचे टिप्पणी लगा कर पाठकों की राह और आसान कर दी, इसके लिए अलग से शुक्रिया धीरेश भाई. आपकी पहली और शानदार पोस्ट का बहुत बहुत स्वागत ……. मैं खुद को हल्का और समृद्ध महसूस कर रहा हूँ.
राजनीति की बिल्ली फिर मुंडेर पर ! हमारे उत्तराखंड में तो 13 मई को दिखाई देगी ! वैसी ही भूखी और शिकारी ……….. बहुत प्रासंगिक कविता!
YES …..ZIDDI & SHIREESH…WELL DONE…
THANKS FOR GIVING BABA MEMORYLANE!
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INDU JI INDU JI KYA HUA APKO !
SATTA KI MASTI MEIN BHOOL GAYI BAAP KO !
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BUT AT THE SAME TIME HE WROTE –
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BHRANTI! BHRANTI! BHRANTI!
SAMPOORN BHRANTI!
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हर युग में यही घटनाएँ होती रही है और बिल्ली मुंडेर पर आती रही है. यह कविता हमेशा प्रासंगिक रहेगी.
जी हां ! बिल्ली आ गयी मुंडेर पर! 16 मई को घर में घुस जाएगी तब पता चलेगा बिल्ली है की बाघ !
पिछली कई दफा से अनुनाद पे पढ़ना होता है टिप्पणी करना ज़रा मुश्किल …आगे भी अच्छी कविताओं का इंतज़ार …
shirish ji se shat-pratishat sahmat hoon. dheeresh ji ki yah pahli & shaandaar post hai; unka neeche likha comment bhi su-chintit hai & kavita ko sugam & prabhaavshaali banaane mein madad karta hai.
shirish halka & samriddha mahsoos kar rahe hain; iske liye unhen & post ke liye dheeresh ji ko badhaai !
—pankaj chaturvedi
kanpur
डराती हुई कविता। उस हक़ीकत का डर।