आज तक मैंने जितनी भी प्रेम-सम्बन्धी कविताएँ पढ़ी हैं——-और ज़ाहिर है कि मेरे पढने की बड़ी सीमा है, फिर भी—–उनमें जर्मन कवि बेर्टोल्ट ब्रेख्त की यह कविता मुझे महानतम लगी है. इसलिए आप सभी के साथ अपने इस निहायत निजी एहसास या कहिये कि जुनून को साझा और सेलेब्रेट करना चाहता हूँ. सोचता हूँ , क्यों न मेरी पोस्ट का आगाज़ प्यार से हो . तो दोस्तो, प्रस्तुत है यह छोटी-सी, मगर महान कविता, मेरे लिए तो महानतम.
कमज़ोरियाँ तुम्हारी
कोई नहीं थीं
मेरी थी एक
मैं करता था प्यार
(अनुवाद: मोहन थपलियाल )
कमज़ोरियाँ तुम्हारी
कोई नहीं थीं
मेरी थी एक
मैं करता था प्यार
(अनुवाद: मोहन थपलियाल )
मूल कविता : प्रस्तुति – महेन मेहता
Schwaechen
hattest du keine
Ich hatte eine
Ich liebte.
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पहली प्रेम भरी पोस्ट की बधाई !
anunaad par ab tak ki sab se badhiya post.
bas itna hi hai prem.
अदभूत कविता है यह !!
अनुनाद पर पिछली कई पोस्ट देखते आ रहा हूँ। सब एक से एक सुंदर !!
लेकिन इस पोस्ट ने कमेंट करने पर मजबूर कर दिया। ढेरों लोगों के लिए यह कविता व्यक्तिगत रूप से सर्वाधिक पसंदीदा कविता होगी। इन्हीं एक एक की पसंद से यह कविता महानता अर्जित करती है।
सच में महान रचना। अद्भुत।
वाह!
बहुत शानदार कविता. पंकज जी को बधाई !
कमाल की कविता ! ये भी अच्छी खबर है कि हमारे युवा कवि और आलोचक पंकज चतुर्वेदी ब्लॉगिंग का आगाज़ किए हैं और वो भी बहुत शानदार अंदाज़ में ! अनुनाद की यही ख़ासियत है -प्रथम श्रोता वाली पोस्ट से बात निकली और यहाँ तक आ गई !
इसी कोलाहल में
इसी भीड़ में संभव है प्रेम
इसी तुमुल कोलाहल में
जब सूरज तप रहा है आसमान में
जींस और टी-शर्ट पहने वह युवती
बाइक पर कसकर थामे है
युवक चालाक की देह
इसी भीड़ में
संभव है प्रेम!
पंकज चतुर्वेदी की यह कविता मेरी पढ़ी हुई (और मेरे पढ़ने की तो बहुत बड़ी सीमा है) प्रेम कविताओं में बहुत ऊंचा स्थान रखती है. और अब उन्होंने ही ब्रेष्ट की इस महानतम कविता से रू-ब-रू करवाया.
कविताओं से परे भी पंकज के लेखन में उनकी 'डाइनमिक्स' कौंधती नज़र आती है, 'डाइलेक्टिक्स' घनीभूत होती दिखाई देती है, और मुझे तो उनकी 'पॉलिटिक्स' की अंतर्धारा भी झलक ही जाती है.
मेरे लिए इन्टरनेट पर उनका लिखा हुआ देवनागरी में पढ़ना बेहद सुखद है और अनुनाद पर उनका आगमन एक 'फेनोमेनन'.
इस मंच पर और इसके इतर भी वे अपना जुनून ऐसे ही साझा करते रहें यह कामना. बकौल व्योमेश, पंकज पर लिखने के लिए कोई और ही कलम चाहिए जो उन्हें नहीं मिली. वह कलम इस बार मुझे भी नहीं मिली.
ब्लॉगिंग की दुनिया में पंकज का स्वागत है .इस दुनिया को ऐसे ही लोगों की ज़रूरत है जो हर आगाज़ प्यार से करें, शुभकामनायें -शरद कोकास ,दुर्ग
dhanyavaad-acchhi/sachhi baat
गुरु ये मेरी भी पसंदीदा प्रेम-कविता है. जर्मन में कुछ इस तरह से है…
Schwaechen
hattest du keine
Ich hatte eine
Ich liebte.
इसी तुमुल कोलाहल में
जब सूरज तप रहा है आसमान में
जींस और टी-शर्ट पहने वह युवती
बाइक पर कसकर थामे है
युवक चालाक की देह
इसी भीड़ में
संभव है प्रेम!
आह प्रेम ! मुझे शहर मे क्यो न मिले तुम?
…… अजेय
mai tumse pyaar karta tha.. prem ke saamne aadmi kitna avash hota hai phir bhi prem he shakti deta hai sampoorn banata hai aur kamzor bhi.. sundar kavita.
punashch: ajay ki kavita aah prem mujhe shahar me kyon na mile tum yakayak prem ko naye andaaz me paribhashit karti hai. vaah.