अनुनाद

हिन्दी साहित्य, समाज एवं संस्कृति की ऑनलाइन त्रैमासिक पत्रिका

थॉमस मैक्ग्रा की एक प्रेम कविता


थॉमस मैक्ग्रा अमेरिकी साहित्य के सर्वाधिक उपेक्षित कवियों में हैं. साहित्यिक मठाधीशों ने रैडिकल वामपंथी विचारों वाले इस कवि को कभी वह अहमियत नहीं दी जिसके वे हकदार थे. छठे दशक में कार्यरत रही कम्युनिस्ट-विरोधी जांच समिति ‘हाउस कमिटी ऑन अन-अमेरिकन एक्टीविटीज़’ के समक्ष दिया गया उनका वक्तव्य बेमिसाल है. अवसर मिलने पर उस वक्तव्य को अनुनाद पर लगाने का मन है. इस बात के लिए उन्हें ब्लैक-लिस्ट कर दिया गया और लॉस एंजेलेस स्टेट यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक की अपनी नौकरी भी गंवानी पड़ी.
थॉमस मैक्ग्रा सर्वाधिक जाने जाते हैं अपनी लम्बी कविता ‘लैटर टू अन इमॅजिनरी फ्रेंड’ के लिए. इस आत्म-कथ्यात्मक काव्य में वे व्यक्तिगत अनुभवों को राजनैतिक सरोकारों से जोड़ते हैं. लगभग तीन दशकों के लम्बे रचनाकाल में लिखी गई इस कृति में बनते-बिगड़ते अमेरिकी इतिहास और उसके अन्दर आकार लेते कवि के निजत्व के दर्शन होते हैं.
प्रेम कविताओं के सिलसिले में फिलहाल प्रस्तुत है थॉमस मैक्ग्रा की एक कविता।

कविता

कैसे आ सकता था मैं इतनी दूर
(और ऐसी अंधियारी राहों पर हरदम ? )
मैंने सफ़र किया होगा रौशनी से ज़रूर
जो दमकती थी उन सबके चेहरों में जिन्हें
मैंने प्यार किया

****

0 thoughts on “थॉमस मैक्ग्रा की एक प्रेम कविता”

  1. भारत भूषण जी सर्वप्रथम आपके प्रति आभार जताना चाहुँगा विक्टर इनफैंटै और थॅामस मैक्ग्रा जैसे जीवंत शख्सियतों से परिचय करवाने के लिए।
    मैक्ग्रा की कविता में एक अद्भूत ओज है। एक अपरिहार्य आस है जो किसी कवि के लिए जरूरी होती है।
    आप उनके बारे में आगे जो भी पोस्ट लगाएंगे उसका बेसब्री से इंतजार रहेगा।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top