और प्रशंसा या निन्दा के लिए
हाज़िर होते हो दर्शकों के निर्णय के लिए
भविष्य में हाज़िर करो वह दुनिया भी
दर्शकों के निर्णय के लिए
जिसे तुमने अपनी कृतियों में चित्रित किया है
जो कुछ है वह तो तुम्हें दिखाना ही चाहिए
लेकिन यह दिखाते हुए तुम्हें यह भी संकेत देना चाहिए
कि क्या हो सकता था और नहीं है
इस तरह तुम मददगार साबित हो सकते हो
क्योंकि तुम्हारे चित्रण से
दर्शकों को सीखना चाहिए
कि जो कुछ चित्रित किया गया है
उससे वे कैसा रिश्ता क़ायम करें
यह शिक्षा मनोरंजक होनी चाहिए
शिक्षा कला की तरह दी जानी चाहिए
और तुम्हें कला की तरह सिखाना चाहिए
कि चीज़ों और लोगों के साथ
कैसे रिश्ता क़ायम किया जाय
कला भी मनोरंजक होनी चाहिए
वाक़ई तुम अँधेरे युग में रह रहे हो
तुम देखते हो बुरी ताक़तें आदमी को
गेंद की तरह इधर से उधर फेंकती हैं
सिर्फ़ मूर्ख चिन्ता किये बिना जी सकते हैं
और जिन्हें ख़तरे का कोई अंदेशा नहीं है
उनका नष्ट होना पहले ही तय हो चुका है
प्रागैतिहास के धुंधलके में जो भूकम्प आये
उनकी क्या वक़अत है उन तकलीफ़ों के सामने
जो हम शहरों में भुगतते हैं ? क्या वक़अत है
बुरी फ़सलों की उस अभाव के सामने
जो नष्ट करता है हमें
विपुलता के बीच
***
विशेष : कवि -विचारक नीलाभ अश्क को हाल ही में अरुन्धति रॉय के उपन्यास ‘ the god of small things ‘ के हिन्दी अनुवाद ‘मामूली चीज़ों का देवता ‘ के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की गयी थी. मगर उन्होंने साहित्य-संस्कृति के प्रति भेदभाव और उपेक्षा से भरे हुए सरकारी रवैये और हिन्दी संसार में अंतर्व्याप्त ‘पुरस्कारों की विद्वेषपूर्ण राजनीति ‘ के प्रति अपने वाजिब रचनात्मक आक्रोश का इज़हार करते हुए इस सम्मान को अस्वीकार कर दिया है . सबसे बड़ी बात उन्होंने यह कही है कि “लेखक का वास्तविक सम्मान उसके पाठक हैं, न कि पुरस्कार.” बदनसीबी से यहीं वह बात है, जिसे हिन्दी की आत्ममुग्ध दुनिया ने बिसरा रखा है. इस बाबत उनके विस्तृत साक्षात्कार के लिए देखिये———‘हिन्दुस्तान ‘, दैनिक, 5 जुलाई, रविवार, 2009, पृ. 12. हमारे समय में यह दुर्लभ आदर्श सामने रखने के लिए श्री नीलाभ अश्क को हमारी हार्दिक बधाई !
ब्रेख्त की इस कविता मे जो दर्शक है वह वही जनता है जिसके लिये ब्रेख्त लिखते हैं 'सरकार से मेरा कहना है कि वह इस जनता को भंग कर दे और अपने लिये दूसरी जनता चुन ले " इस कविता के बेहतरीन अनुवाद के लिये नीलाभ जी को और प्रस्तुति के लिये पंकज जी को बधाई
kavita k roop me ek aisa chitra mujhe nazar aaya hai jo maanav ki aantrik aur bahiy, dono mmanasthitiyon ko na sirf ingit karta hai apitu ek aisa aadarsh drishtikon bhi saamne rakhta hai jo sahaj jeevan me aaye athva laaye gaye milaavti dainandin karmon ki disha aur dashaa ko bakhhbi byaan karta hai..
uttam kavita !
adbhut kavita !
anupam kavita !
_________________badhaai !
"क्या वक़अत है बुरी फसलों की
उस अभाव के सामने
जो नष्ट करता है हमें विपुलता के बीच"
– हिन्दी की युवा कविता पर इन पंक्तियों को लागू करके देखा जाए…हमारी हक़ीक़त सामने होगी. एक शानदार और ज़रूरी पोस्ट के लिए धन्यवाद पंकज भाई.
सिर्फ मूर्ख चिंता किये बगैर रह सकते हैं…सचमुच ब्रेख्त को पढ़ते हुए हर बार कुछ नई ताकत महसूस होती है. सुंदर प्रस्तुति!
आज कल बिना चिंता किये जीने वाला मूर्ख नही समझदार होता है ब्रेख्त जी.
पुरस्कार ठुकराने कि बात….
हमें अपने भीतर झांक कर देखना चाहिये कि पुरस्कार की इच्छा वहां है, या नही.
यदि आप पुरस्कार की दौड मे शामिल है ; तो ठुकराना पाखंड है. अहंकार है.
नही हैं, तो ये साहित्य की सेहत के लिये अच्छा है.
और ये विश्वास कर लेना थोडा कठिन है कि घोषणा होने तक आप को मालूम ही न हो कि आप पुरस्क्रित होने जा रहे हो. ऐसा सरप्राईज़ देने वाली संस्था कोइ होती है क्या? किस की मज़ाल कि आप के जाने बगैर ……