1959 में तेहरान में जन्मी सीमा यारी बेहद प्रतिभावान और प्रखर विद्यार्थी रहीं। गणित की पढ़ाई पूरी करके उन्होंने ईरान की नेशनल यूनीवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ने के लिए दाखिला लिया ही था कि शाहविरोधी और धार्मिक रूप से कट्टरवादी क्रांति शुरू हो गई। क्रांति के नाम पर जब यूनीवर्सिटी को बंद कर दिया गया उसके विरोध में आवाज़ उठाने वालों में सीमा अग्रिम पंक्ति में थीं…बस इसी के साथ उन पर शासन का शिंकजा कसता गया। ईरान की किसी भी यूनीवर्सिटी में उनका प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया। उनकी कविताएं भी इस प्रतिबंध के घेरे मे आयीं और उनकी किताबें तैयार पड़ी रहीं पर उन्हें छापने को कोई प्रकाशक नहीं मिला। बरसों बाद जब ये बंदिश थोड़ी शिथिल पड़ी तो 1998 में उनका पहला संकलन आया जिसे 2000 में साल की सबसे अच्छी किताबों में शुमार किया गया। उनके चार संकलन छपे हैं। उन्होंने अपने कवितापाठ के आडियो कैसेट भी तैयार किए जिनके वितरण और प्रचार-प्रसार पर ईरान की कट्टरपंथी सरकार ने यह कह कर प्रतिबंध लगा दिया कि स्त्री स्वर को जनता के बीच सार्वजनिक रूप से जारी करने से ईरानी नैतिकता और परम्पराओं को आघात लगेगा।
इस पसमंज़र के बीच आप पढ़िए सीमा यारी की ये प्रेमकविता
अंदाज़े-बयां
यहां एकदम मुमकिन नहीं था कि मैं कह पाती …
मैं करती हूं तुमसे प्यार !
हालांकि मैंने टूट कर किया तुमसे प्यार…
चौकस रहना, तुम्हारी चाबियां कहीं कमरे में अंदर ही न रह जाएं
सीढ़ियों पर संभलकर उतरना, वहां बहुत फिसलन है
अपना ख़ूब-ख़ूब ध्यान रखना
जब तक ये हरी न हो जाए….
महान कविता. ये सिलसिला जारी रहे. अनुनाद कविता का ब्लॉग बना रहे.
kavita padhane ke shaukino ke liye ANUNAD se sundar koi blog na hoga…
yadvendra ji ko aabhar ki unhone is kavi se parichay karwaya…
shikayat ye h ki, lekhika ki sirf ek kavita kyu lagayi ??
Umda prastuti !!
"कविता जो कह रही है उससे ज्यादा जो अनकही है उसका बयान है" – पुष्टि हुई !!
ker gayi sinaa chaak!
prem-prem ya sangharsh-sangharsh chillane wali kavitaon ke bade dher se behad jyada prabhavee aur pyari kavita lagi
काफ़ी अच्छी कविता . बेहद सादगी, निश्छलता और… काफ़ी अच्छी कविता . बेहद सादगी, निश्छलता और आत्मा की अंतरंगता से किया गया ; नैसर्गिक ऊष्मा, मानवीय निष्ठा और संवेदनशील स्मृतियों से अनुप्राणित बयान ; जैसा कि प्यार दरअसल होता है. यादवेन्द्र जी को मेरा भी आभार पहुँचे !
———पंकज चतुर्वेदी
कानपुर
na kah paanaa hi to prem hai…
एक बेहद अच्छी कविता. स्त्री जब भी और जहाँ की भी हो प्रेम करती है तो टूट कर . हाँ बात जब मुसलिम देसों की होती है जहाँ औरतो पर तमाम बंदिशे लाड दी गयी है वहां की कविताये परने पर अतिरिक्त आनंद आता है की इतनी बंदिशों के बाद अभी भी वहां दिल हमलोगों की तरह ही धरकता है
आलोक