क़लम अपनी साध ,
और मन की बात बिलकुल ठीक कह एकाध .
यह कि तेरी-भर न हो तो कह ,
और बहते बने सादे ढंग से तो बह .
जिस तरह हम बोलते हैं , उस तरह तू लिख ,
और इसके बाद भी हमसे बड़ा तू दिख .
चीज़ ऐसी दे कि जिसका स्वाद सिर चढ़ जाए
बीज ऐसा बो कि जिसकी बेल बन बढ़ जाए .
फल लगें ऐसे कि सुख-रस , सार और समर्थ
प्राण-संचारी कि शोभा-भर न जिनका अर्थ .
टेढ़ मत पैदा करे गति तीर की अपना ,
पाप को कर लक्ष्य कर दे झूठ को सपना .
विन्ध्य , रेवा , फूल , फल , बरसात या गरमी ,
प्यार प्रिय का , कष्ट-कारा , क्रोध या नरमी ,
देश या कि विदेश , मेरा हो कि तेरा हो
हो विशद विस्तार , चाहे एक घेरा हो ,
तू जिसे छू दे दिशा कल्याण हो उसकी ,
तू जिसे गा दे सदा वरदान हो उसकी .
***
( ‘मन एक मैली कमीज़ है ‘ से साभार )
***
विशेष : भवानीप्रसाद मिश्र की यह कविता बहुत मशहूर हुई थी . ख़ास तौर पर “जिस तरह हम बोलते हैं , उस तरह तू लिख / और इसके बाद भी हमसे बड़ा तू दिख !”—–ये दो पंक्तियाँ तो बहुत सारे कवियों के बीच ‘मार्ग-दर्शक सिद्धांत ‘ (guiding principle ) के समान लोकप्रिय हुईं और आज भी हैं . इसीलिए ‘दहलीज़ ‘ में इस बार यही कविता . प्रसंगवश , मुक्तिबोध का यह कथन स्मरणीय है—–“जो कवि अपने भाव-विचारों के लिए स्वयं की शैली पा लेता है , वह सिद्ध कवि है . ऐसे ही कवियों में श्री भवानीप्रसाद मिश्र भी हैं “।
मुझे बहुत ख़ुशी हुई कि नए कवियों के लिए शुरू किये गए इस स्तम्भ आज भवानी जी आ गए. उनके द्वारा एक कविता में उल्लिखित सतपुडा के लैंडस्केप का मैं तथाकथित मूल निवासी हूँ. कभी सरल होना कितना अनिवार्य हो जाता ये बात भवानी जी की कविताएँ हमें समझाती हैं और साथ ही यह भी कि छंदमुक्त होते हुए भी छंद का ज्ञान हमारे लिए कितना ज़रूरी है. पंकज भाई इस स्तम्भ के लिए आपकी मेहनत को मेरा सलाम है.
भवानीप्रसाद मिश्र की कविता अपने उद्देश्य में सफ़ल है। इस कविता से गुज़रने के बाद मुक्तिबोध का कथन सही प्रतीत होता है। शिरीष जी ने सही कहा है कि कभी कभी सरल होना कितना अनिवार्य हो जाता है।
बहुते बढ़िया. ओहोहो.
यह कमाल है… अद्भुत… इतनी अच्छी कविता है साथ ही एक शिक्षा देते हुए… जो लड़के कविता लिखना चाह रहे है साथ ही… जो लिख रहे है उनके लिए एक बेहतरीन सीख है… इस दौर मैं जहाँ मौलिकता ख़तम हो रही है, कविता का मतलब सिर्फ प्रेम-और विरह ही रह गया है… कुछ नया नहीं हो रहा… यह सीख काम आएगी… मैं आपका शुक्रगुजार हूँ… इतनी अच्छी कविता को पोस्ट करने के लिए… ऐसे ही अच्छी कविता पोस्ट किया करे… इस मामले में 'पाप के दिन' से राजकिशोर की कविता भी पोस्ट कर सकते है… ध्यन्यवाद…
मैं जबलपुर मध्यप्रदेश का ही रहने वाला हूँ
श्री मिश्र जी के बारे में ख़ास तौर पर मध्यप्रदेश के सभी
साहित्यकार उनसे भली भाँति परिचित हैं, उनकी हिन्दी सेवा सदैव अविस्मरणीय रहेगी.
आपने एक अनुकरणीय प्रयास किया है, आपको धन्यवाद.
" कविता कोश " से साभार लिया गया आलेख प्रस्तुत हैजिस से आप सब उनके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकें
(http://www.kavitakosh.org )
भवानी प्रसाद मिश्र' (२९ मार्च १९१३-२०फरवरी १९८५]) का जन्म गांव टिगरिया, तहसील सिवनी मालवा, जिला होशंगाबाद में हुआ था। वे हिन्दी के प्रमुख कवियों में से एक थे। क्रमश: सोहागपुर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर में उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई तथा १९३४-३५ में उन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत विषय लेकर बी ए पास किया। गांधी जी के विचारों के अनुसार शिक्षा देने के विचार से एक स्कूल खोलकर शुरू किया और उस स्कूल को चलाता हुए ही १९४२ में गिरफ्तार होकर १९४५ में छूटे। उसी वर्ष महिलाश्रम वर्धा में शिक्षक की तरह चले गए और चार पाँच साल वर्धा में बिताए। कविताएँ लिखना लगभग १९३० से नियमित प्रारम्भ हो गया था और कुछ कविताएँ पंडित ईश्वरी प्रसाद वर्मा के सम्पादन में निकलने वाले हिन्दूपंच में हाईस्कूल पास होने के पहले ही प्रकाशित हो चुकी थीं। सन १९३२-३३ में वे माखनलाल चतुर्वेदी के संपर्क में आए और वे आग्रहपूर्वक कर्मवीर में भवानी प्रसाद मिश्र की कविताएँ प्रकाशित करते रहे। हंस में काफी कविताएँ छपीं और फिर अज्ञेय जी ने दूसरे सप्तक में इन्हे प्रकाशित किया। दूसरे सप्तक के प्रकाशन के बाद प्रकाशन क्रम ज्यादा नियमित होता गया। उन्होंने चित्रपट के लिए संवाद लिखे और मद्रास के ए०बी०एम० में संवाद निर्देशन भी किया। मद्रास से बम्बई आकाशवाणी का प्रोड्यूसर होकर गए और आकाशवाणी केन्द्र दिल्ली पर भी काम किया। जीवन के ३३वें वर्ष से खादी पहनने लगे।
उन्हें १९७२ में बुनी हुई रस्सी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। १९८१-८२ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के संस्थान सम्मान से सम्मानित हुए और १९८३ में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया।
कुछ प्रमुख कृतियाँ : कविता संग्रह- गीत फरोश, चकित है दुख, गाँधी पंचशती, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, त्रिकाल संध्या, व्यक्तिगत, परिवर्तन जिए, तुम आते हो, इदंन मम्, शरीर कविता फसलें और फूल, मान-सरोवर दिन, संप्रति, अँधेरी कविताएँ, तूस की आग, कालजयी, अनाम और नीली रेखा तक। इसके अतिरिक्त बच्चों के लिए तुकों के खेल, संस्मरण जिन्होंने मुझे रचा और निबंध संग्रह कुछ नीति कुछ राजनीति भी प्रकाशित हुए।
-विजय तिवारी किसलय जबलपुर
विजय तिवारी जी,
भवानी जी का विस्तृत परिचय प्रस्तुत करने लिए शुक्रिया.
संपर्क बनाए रखिएगा.
– अनुनाद परिवार