अनुनाद

राजनीतिक कविता: डेवोरा मेजर की एक कविता


इस कविता का अनुवाद भी ‘दहलीज़’ के लिए ही किया गया था. अब शिरीष का अनुसरण करते हुए- बिना ‘दहलीज़’ का लेबल लगाये- इसे प्रकाशित किया जा रहा है. ऐसा करते हुए पंकज जी के अनुनाद पर लौट आने के लिए की गई दुआ में अपनी आवाज़ भी शामिल कर रहा हूँ. आमीन!


राजनीतिक कविता

कविता कैसे बनती है क्रान्तिकारी
क्या वह करती है पृष्ठ का घनघोर तिरस्कार
क्या रचती है व्याकरण की ऐसी अराजकता
जो उपमाओं को नकार दे या छन्दों को कर दे पराजित
क्या होती है वह सशस्त्र और तैयार लम्बी लड़ाई के लिए
भरी हुई बारूद और छर्रों से
क्या होती है ऊँचे स्वर वाली और आग्रही
जो धावा बोल दे आपकी इन्द्रियों पर
वक़्त से पहले आई शहीदाना मौत के बावजूद
क्या नहीं होती उपलब्ध
मसीहा घोषित कर दिए जाने के लिए
या फिर पा लेती है
ज़िन्दा रहने का छापामार तरीका
छुपी
भूमिगत रहकर
और फट पड़ कर अप्रत्याशित जगहों पर
दोबारा दिखाई देती ठीक तभी
जब आपने उसे मरा मान लिया हो


*****

डेवोरा मेजर अफ्रीकी-अमेरिकी कविता में एक सुपरिचित नाम हैं. उनकी कविताओं में मौजूद ‘ब्लॅक एक्सपीरियेन्स’ का अंदाज़ अलहदा है. सॅन फ्रांसिस्को की पोएट लॉरिएट रह चुकीं मेजर के तीन उपन्यास भी प्रकाशित हो चुके हैं. वे एक कुशल अभिनेत्री और निष्णात नृत्यांगना तो हैं ही, इस नाते कलाकारों के हक़ की लड़ाई लड़ने वाली आर्ट-एक्टिविस्ट भी हैं.


0 thoughts on “राजनीतिक कविता: डेवोरा मेजर की एक कविता”

  1. कविता का पूरा पोस्ट मार्टम करके उसको हमेशा हमेशा के लिए जीवित साबित कर दिया है कवयित्री ने बहुत शानदार और क्रन्तिकारी अभिव्यक्ति है

  2. इस बात को समझाने के लिए गद्य के न जाने कितने पृष्ठ खत्म करने पड़ते ! यही सारगर्भिता कविता की शक्ति होती है।

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