चौरासीवां जन्मदिन
चीज़ें बेहतर हो जायेंगी
इस उम्मीद में बिताये गए इन सब बरसों के बाद
ख़ुशी मनाने का कोई कारण नहीं है
इसलिए यह कविता है गोलियों से भून दिए गए हर बच्चे के लिए
जो उड़ा दिए गए अपने गांवों के रास्तों पर चलते हुए
मेक्सिको में
सूडान में
कांगो में और अमेरिका के शहरों में
भूखे पेट सो जाने वाले हर बच्चे के लिए
अन्य देशों और अमेरिका के बेघरों के लिए
सरहद की लडाइयों के शिकार और माफियाओं व डाकुओं द्वारा अगवा कर लिए गए लोगों के लिए
जिन्हें राज्य ने तक अपने हाल पर छोड़ दिया
उनके लिए जो सरहद पार भेज दिए गए और लौटे क्षत-विक्षत होकर
उन सब पक्षियों, प्राणियों और वनस्पतियों की प्रजातियों के लिए जो नए,महान मरण में लुप्त हो जायेंगी
उन लाखों शरणार्थियों के लिए जो सड़कों पर और कैम्पों में बड़ी तकलीफ में ज़िन्दा रहते है
पिघलते ग्लेशियरों और ख़राब तटबंधों से ऊपर उठते समन्दरों में धीरे धीरे गर्क होते शहरों के लिए
शांत सी शालीन ज़िन्दगी बिताने की कोशिश में लगे बिगडैल राष्ट्रों के बाशिंदों के लिए
धरती की होती हुई मौत और परमाणु आपदा के खतरे के लिए
उनके लिए जो अमन चाहते हैं और खोजते हैं
उनके लिए जो सच बोलते हैं और उसके लिए क़त्ल कर दिए जाते हैं.
सिर्फ़ दो सिपाही
करते हुए अपना काम
घरों को ढहाते हुए
हंसते-ठिठोली करते
तुम चारों जने
हैवान के पेट में बैठे हुए सही-सलामत
मानों जुरासिक पार्क से चलकर आया हो
विशालकाय हाथियों का जोड़ा
दूसरों की ज़िंदगियों के
मलबे के बीच
आग और धूल उगलते ड्रैगन हों जैसे
वे घर जो एक कुनबे के इर्द गिर्द थे
पीढियों तक
बिस्तरे, तस्वीरें, खिलौने, बर्तन
सब कुछ कूड़े के ढेर में बदलता हुआ
युद्ध में बर्बाद हुए मुल्क की तरह जहाँ
अब खंडहरों के सिवा कुछ नहीं
तुम्हारे पीछे है वह दीवार
जो इन लोगों को भीतर क़ैद रखने के लिए बनाई गयी थी
और दीवार के उस पार
अमन के मुगालते में जीते हैं तुम्हारे लोग
उनके बागान बहुत उपजाऊ
लदे-फदे जैतून के पेड़ उनके
मैदान में बिखरे
निहत्थे नौजवानों को जब तुमने देखा
तब क्या सोच रहे थे तुम
उनमें से एक लड़की
भोंपू लेकर चिल्लाती हुई
अब और विनाश नहीं!!!
उसकी आँखें कहती हुईं
कि वह जानती है तुम रुकोगे
तुम नहीं रुकते.
राक्षसी उदर
धूल का एक गुबार उठाता है,
गिराता है
वह लड़खड़ा जाती है
तुम फिर भी आगे बढ़ते रहते हो
जब तक वह धराशायी नहीं हो जाती
(बाद में तुम कहते हो लाल जैकेट पहने उस ढाँचे को
तुमने देखा ही नहीं).
जब तुम्हारा बुलडोजर रौंद रहा था
उस मुड़े-तुड़े ढाँचे को
उस वक़्त इंसानी हड्डियों की चरमराहट सुनकर
तुम्हें कैसा महसूस हुआ?
मैं अभी अभी किसी चीज़ के ऊपर से गुज़रा हूँ
तुमने रेडियो पर इत्तला दी
तुमने जब बुलडोजर पीछे लेकर फिर आगे बढाया
तब तुम क्या सोच रहे थे?
किस क्रूर नफरत ने तुम्हारे ह्रदय को पत्थर बना दिया था?
किन प्राचीन नरसंहारों ने चुरा ली थी तुम्हारी करुणा
तुम जो रोज़ ही रहते हो उन लोगों के बीच जो तुमसे नफरत करते हैं
जैसे तुम्हें नफरत होनी चाहिए अपने आप से
वहां बैठे बैठे बच्चों को मरते देखते हुए
सड़क पार करने में मारे जाते जानवरों की तरह फिंकाते
मुझे आगे न बढ़ने का कोई आदेश नहीं मिला था
किसी ने मुझे रुकने के लिए नहीं कहा था.
तुम देखते रहे
धूल-मिट्टी समाती हुई
उसके मुंह में
नाक में, सांस की नली में
तुम देखते रहे
उसे घुट कर मरते हुए
तुमसे वादा है मेरा
जब किसी दिन तुम्हारी बेटी
या तुम्हारी प्रेमिका
या चमकीले बालों वाली कोई और जवान लड़की
मैदान के दूसरी तरफ से तुम्हारी ओर आ रही होगी-
तुम वहां खड़े होकर
रेचल कोरी को याद करोगे
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(रेचल कोरी के बारे में जानकारी विकिपीडिया पर इस जगह उपलब्ध है)
भारत भाई लगातार इतनी महत्वपूर्ण पोस्ट लगाने और हमें और समृद्ध बनाने के लिए शुक्रिया काफ़ी नहीं होगा….तब भी. आप भी अनुनाद के लेखक हैं तो कहीं एक गहरी आश्वस्ति है.
हकीकत कहीं भी हो पढ़ना अच्छा लगता है।
इतनी बेहतरीन रचनायें पढने को मिलती हैं कि मन प्रसन्न हो जाता है
मौर्य जी ने बिलकुल सही कहा
भारत जी के कविता चयन ने हमें काफी प्रभावित किया है। हमेशा की तरह यह कविताएं भी लाजवाब है।
दर्दनाक सच… कविता भी…
भारत भाई
अनुवाद बहुत ही सधा हुआ है पढ़ने में किसी प्रकार की बाधा नहीं मालूम होती है जैसे मौलिक कविताएं हो. लगता है जुकरमन की कविताओं के अनुवाद का कोई संग्रह शीघ्र ही आने वाला है. मेरी बधाई स्वीकारें…
– प्रदीप जिलवाने, खरगोन