तुम्हारा नाम रेचल कोरी है
(फ़ातिमा नावूत की एक कविता)
गणित की कक्षा में
तुम फूलों के चित्र ही उकेर रही थीं कागज पर
निश्चित रूप से ,
और इधर – उधर हिलाए जा रही थीं सिर
जैसे कि ध्यान दे रही हो टीचर की हर बात पर।
***
या हो सकता है कि
पड़ोस के लड़के पर तुम्हें आ रहा था क्रोध
और इस मारे तुमने पूरा नहीं किया था इतिहास का होमवर्क।
क्लास की लड़कियाँ तुम्हारी खिल्ली उड़ा रहीं थीं
कि तुमने अपनी नोटबुक को भर दिया था
दिल और उसमें खुभे तीरों से
और भूल गईं थीं यह लिखना
कि मिस्र पर फ़्रांस के अभियान के प्रमुख कारण कौन – कौन से थे
आशय यह भी कि, वियतनाम को विलोपित करने का
और ‘अमेरिका की शताब्दी’ कहे जाने का क्या था निहितार्थ ?
***
याद है –
दूध के कप का इंतजार करते न करते
माँ की शुभरात्रि चुम्बन की बाट जोहते – जोहते
एक बार तुम्हें आ गई थी झपकी
और नींद की वजह से बिसर गया था बालों का खोलना।
सुबह – सुबह तुम्हारे सपने में सरक आया था
नीली आँखों वाला एक नौजवान
जिसे बन जाना था तुम्हारे सफेद टेडी बीयर का विकल्प
और , और भी बहुत कुछ…
मसलन –
***
नीले और सफेद रंग की लहरें और बुलबुले
किसी लड़की के कपड़ों के दो प्यारे रंग
तुम्हारी बालकनी में आने वाली चिड़िया के पंखों के दो रंग
स्केच बुक में चित्रित आसमान और बादल के दो रंग
एक फोटो अलबम
छह नुकीले चोंचों वाला एक ऐसा ध्वज
जिस पर लिखा हो किसी फरिश्ते का नाम
और जिसे किसी बच्चे की आंखों में नहीं चुभना था।
***
हर लड़की की तरह
तुमने आने वाले कल के स्वप्न देखे
और वह कल कभी आया ही नहीं…
सुबह- सुबह तुमने अपना पर्स पकड़ा
और दौड़ लगा दिया स्टोर की ओर
वहाँ से लौटते वक्त तुम्हारे हाथ में थी सेलेरी ,मटर
और तुम बिल्कुल नहीं भूलीं ले आना
पीली मकई दाने जो बच्चों को आते हैं बेहद पसन्द।
***
बरतन और चम्मचें…
….जैसे किचन और वाशिंग मशीन के बीच
करतब दिखा रहा हो कोई नट….
चार बजने से पहले साफ हो जाना चाहिए बच्चों का कमरा
– तुम्हारे वे बच्चे जो कभी आयेंगे ही नहीं-
माँ! आज बाहर गए थे हम लोग मेंढ़क पकड़ने
और कल छुरी से काटेंगे उन्हें ।
नहीं मेरे बेटे ! नहीं !!
अरे माँ ! यह जीव विज्ञान की कक्षा है
हमे सीखना है कि पेट के भीतर छिपे होते हैं कैसे – कैसे रहस्य !
***
उठो मेरे बच्ची ,अब उठ भी जाओ
लड़कियाँ बाहर निकल आई हैं
वे डिस्को जा रहीं हैं
लेकिन माँ ! मैं तो सपने देख रही थी
रेचल ! कितनी गहरी है तुम्हारी नींद
उठो , उठ जाओ…
लेकिन मैं पार्टी में नहीं जाऊँगी
मेरा नीला पासपोर्ट कहाँ है माँ ?
मुझे करनी है ईश्वर से बातचीत ।
***
हम सारी बाकी लड़कियों की ही तरह
तुमने भी प्यार किया
आईने से बतियाया
और अपने कपड़ों पर लाल धब्बों के कारण शर्मिन्दा हुईं।
तुमने भी बनाए प्यार के देवता के रेखाचित्र
और दिल के बीचोंबीच धँसाया एक बाण
तुमने भी लिखे प्यार के दो बोल
और इंतजार किया
तेज घोड़े पर सवार होकर आने वाले किसी योद्धा का।
गहरी रंगत वाली हर लड़की तरह
तुमने भी पहनने चाहे ऊँची एड़ी के जूते
पारदर्शी स्टाकिंग्स
और हेयर रिबन्स व परांदे।
और हम जैसियों की तरह, अगर तुम भी जीवित रहतीं
तो तुम्हारे भी बच्चे होते
तुम भी झींकतीं मर्दों की फालतूपन पर
हमारी ही तरह।
लेकिन ऐ लड़की !
हम किसी बुलडोजर के सामने डट नहीं गए
हमने किसी ईश्वर से बातचीत नहीं की !
हमने किसी ऐसी तोप का मुँह बन्द नहीं किया
जो किसी बच्चे से छीन लेना चाहती थी उसकी निश्छल हँसी।
***
उस के प्रतिरोध को हम एक हादिसे की तरह भूल गए, श्रद्धाँजलि !
इस बर्बर घटना को लेकर क्या कहा जाए। कविता कैसी है यह भी क्या कहा जाए। जब तक यह कविता है तब तक हमारे शर्मसार होने की वजह रहेगी।
राशेल के सपनों का बयान करती है यह कविता .. वे सपने जो बुलडोज़र तले कुचल दिये गये ,, अब क्या किया जा सकता है .. फीलीस्तीन तो ऐसे सपनो की कब्रगाह है … ।
सिद्धेश्वर जी बहुत मन से किया है आपने अनुवाद ।
कोरी अपनी नायिका है. पहले पहल उसके बारे में सुभाष गाताडे से सुना था और तभी फ्रंटलाइन में पढ़ा था. इस कविता को सहेज लिया है. धन्यवाद
काश की यह प्रिंट आउट ले सकता… फिलहाल लिख रहा हूँ… बहुत सुन्दर… आनंद…
oh.. ek atyant hi bhaavpurn kavita.. bhut sundar..baar baar padhne vaali..
dhanyavaad.
उफ़्………
जितनी जल्दी हो इस दुनिया को बदल देना चाहिये
'गणित की कक्षा में फूलों के चित्र' जैसी पंक्ति के बाद तो कुछ कहना कविता करने की औपचारिकता जैसा ही लगने लगता है, लेकिन कविता आखिर तक सधी है.