अनुनाद

पंकज चतुर्वेदी की पाँच कविताएँ


गोया

कार से टकराते बचा
वह आदमी भी
कार चलाती स्त्री को
देखकर मुस्कराया
गोया औरत के हाथों
मारा जाना भी
कोई सुख हो
***

शमीम

जाड़े की सर्द रात
समय तीन-साढ़े तीन बजे
रेलवे स्टेशन पर
घर जाने के लिए
मुझे ऑटो की तलाश

आख़िर जितने पैसे मैं दे सकता था
उनमें मुझे मिला
ऑटो-ड्राइवर एक लड़का
उम्र सत्रह-अठारह साल

मैंने कहा : मस्जिद के नीचे
जो पान की दुकान है
ज़रा वहाँ से होते हुए चलना
रास्ते में उसने पूछा :
क्या आप मुसलमान हैं….

उसके पूछने में
प्यार की एक तरस थी
इसलिए मैंने कहा : नहीं,
पर होते तो अच्छा होता

फिर इतनी ठंडी हवा थी सख़्त
ऑटो की इतनी घरघराहट
कि और कोई बात नहीं हो सकी

लगभग आधा घंटे में
सफ़र ख़त्म हुआ
किराया देते वक़्त मैंने पूछा :
तुम्हारा नाम क्या है…..

उसने जवाब दिया : शमीम खान

नाम में ऐसी कशिश थी
कि मैंने कहा :
बहुत अच्छा नाम है

फिर पूछा :
तुम पढ़ते नहीं हो…

एक टूटा हुआ-सा वाक्य सुनायी पड़ा :
कहाँ से पढ़ें….

यही मेरे प्यार की हद थी
और इज़हार की भी
***

छब्बीस जनवरी को

छब्बीस जनवरी को
पुलिसवाले आये
हमारी दुकानें खुली थीं
इनकी फ़ोटो खींच ली

फिर फ़ोटो के सुबूत की बिना पर
हमें पीटा
थाने ले गये
हमसे रिश्वत वसूल की

जिस दिन देश गणतन्त्र हुआ था
उस दिन आम आदमी को
रोज़ी कमाना मना है

ख़ुशी मनाना अनिवार्य है
भले वह विपन्नता की ख़ुशी हो

टाइपिस्ट ने कहा :
आज आपकी कविता
टाइप नहीं हो सकती

मेरे विचार, मेरे स्वप्न
मेरे एहसास
मेरा सौन्दर्य-बोध
आज जारी नहीं हो सकता

कवि की छुट्टी का कोई दिन नहीं है
मगर आज के दिन
देश गणतन्त्र हुआ था

आज ख़ुशी मनाना अनिवार्य है
भले यह तुम्हें याद दिलाने के लिए हो
कि तुम ख़ुश नहीं हो
और यह
कि एक दिन तुम ग़ुलाम थे
***

आभार

एक प्रदेश की राजधानी में मिले वह
राष्ट्रीय परिसंवाद में
एक विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर
हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक

नींद से जगाकर पहली ख़बर
उन्होंने मुझे यही दी –
`मैं विभागाध्यक्ष नहीं बन पाया´

मैं समझ नहीं सका
इस बात का
मेरी ज़िन्दगी से
क्या सम्बन्ध है

तभी वहाँ आये मेरे मित्र
मैंने उनसे परिचय कराया –
ये गिरिराज किराडू हैं
युवा कवि
`प्रतिलिपि´ के संपादक

बाद में उन्होंने पूछा –
`किराडू क्या तमिलनाडु का है….´

मैंने कहा : नहीं
पर आपको ऐसा क्यों लगा …

वह बोले : किराडू
चेराबंडू राजू से
मिलता-जुलता नाम है

वैसे जो नाम वह ले रहे थे
सही रूप में चेरबंडा राजु है
क्रांतिकारी तेलुगु कवि का

फिर उन्होंने किसी प्रसंग में कहा :
स्त्रियाँ पुरुषों को
एक उम्र के बाद
दया का पात्र
समझने लगती हैं

परिसंवाद के आखिरी दिन
उन्हें बोलना था
`आलोचना के सौन्दर्य-विमर्श´ पर
मगर उससे पहले उनकी ट्रेन थी
इसलिए आयोजकों ने चाहा
कि वह `आलोचना के समाज-विमर्श´ पर
कुछ कहें

यों एक सत्र का शीर्षक
`आलोचना का धर्म-विमर्श´ भी था

उन्होंने मुझसे कहा :
इस सत्र में बोलने को कहा जाता
तो ज़्यादा ठीक रहता

फिर कारण बताया :
हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ आलोचना
धर्म ही पर न लिखी गयी है

बहरहाल। उन्होंने अपने सत्र
`आलोचना का समाज-विमर्श´ में
जो कुछ कहा
उसका सारांश यह है :
पहले भी दो बार बुलाया था यहाँ
व्यवस्था अच्छी है
आभारी हूँ
इस बार भी
आभार
***

वृक्षारोपण

प्रबोध जी अध्यापक हैं
ज़िला शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान में

एक दिन सरकारी निर्देशों के मुताबिक़
वहाँ वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन हुआ

मुख्य अतिथि बनाये गये
संयुक्त शिक्षा निदेशक
यानी जे.डी. साहब
प्रबोध जी को संचालन सौंपा गया

प्राचार्या ने स्वागत-भाषण में
जे.डी. साहब के लिए वही कहा
जो कबीर ने प्रभु की
महिमा में कहा था :
“सात समुंद की मसि करौं,
लेखनि सब बनराइ।
धरनी सब कागद करौं,
हरि गुन लिखा न जाइ।।´´

प्रबोध जी से रहा नहीं गया
संचालक की हैसियत से वह बोले :
`जब मुख्य अतिथि की तारीफ़ में
काट डाले जायेंगे बनराइ
तो वृक्षारोपण
क्यों करते हो भाई …..´
***
_________________________
पंकज चतुर्वेदी, 203, उत्सव अपार्टमेंट, 379, लखनपुर, कानपुर (उ0प्र0)-208024
फ़ोन-(0512)-2580975
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0 thoughts on “पंकज चतुर्वेदी की पाँच कविताएँ”

  1. बढ़िया कवितायें हैं पंकज .. सहज लेकिन भीतर तक कहीं उतरती हुई .. याद रह जाने वाले चित्र हैं इनमें ।

  2. पंकज की इन कविताओं को पढ़ने के बाद कह सकता हूं कि हिन्दी का कविता संसार बहुत आस पास के भूगोळ, समाज और उसकी हलचलों को ही यदि इस तरह से पकड़ पाए तो शायद ज्यादा विविधता और एक जनतांतत्रिक समाज स्थापना के लिए ज्यादा संभवनाशील स्थितियां बने।
    सुंदर कविताएं है, सहज भी। "शमीम" ज्यादा पसंद है जो निश्चित ही ज्यादा आत्मआलोचना के अवसर देती है। बधाई एवं शुभकामनाएं।

  3. पंकज चतुर्वेदी की कविता में कई बार महान उर्दू कविता की आहट है, मसलन 'गोया' में – 'गोया औरत के हाथों मारा जाना भी कोई सुख हो', गोया इस वाक्य के हाथों मारा जाना भी कोई सुख हो. वह कितनी सादा निरलंकार हिन्दुस्तानी में बात करते हैं और जैसा असद ज़ैदी का कहना है, 'कविता में गद्य का बहुत ख़याल रखते हैं.' मितकथन जैसे किसी काव्य-कौशल पर यों तो कुछ और ही लोगों का दावा है. कवि ऐसे कौशलों ऐसे दावों की चमक से दूर रहकर लिखता है. इसलिए उनका मितकथन कितना भिन्न है – कई बार कविता मन्त्र की तरह घनीभूत और सारतत्वमय है, 'भले यह तुम्हे याद दिलाने के लिए हो कि तुम ख़ुश नहीं हो और यह कि एक दिन तुम ग़ुलाम थे.'

    ऐसी कविता को(भी)प्यार करने के लिए शुक्रिया शिरीष जी.

  4. जनाब विजय गौड़ और जनाब व्योमेश शुक्ल ने कविता के सारतत्वों पर बात की है. मैं उनसे सहमत हूँ. कविता का यह सान्द्र रूप है जो अपने विशिष्ट शिल्प में विरल लगता है. मेरी दृष्टि में सामाजिक प्रशों से टकराना ही कविता को उसकी विधागत पूर्णता प्रदान करता है. और इस टकराव को भी अंततः राजनीतिक ही होना है. मुझे कविता इसी अर्थ में पसंद है और पंकज जी की ये सभी कविताएँ पसंद आयीं. कविता पर कई ब्लॉग पोस्ट लगाते हैं पर देख रहा हूँ कि अनुनाद एक ऐसा ब्लॉग है जहाँ, लगायी गई कविता पर बहस होने की स्वस्थ परंपरा का विकास हुआ है. पंकज जी को अच्छी कविताओं की बधाई और शिरीष जी को इन्हें हम तक लाने का शुक्रिया.

  5. जनाब तल्ख़ ज़ुबान जी,

    हालाँकि अभी कुछ देर पहले आपने मुझसे फोन पर बात कर ली है और निजी तौर पर संतुष्ट हो कर मैं आपको संजीव भाई भी कह सकता हूँ पर कुछ मित्र कहते हैं कि ये नाम भी तल्ख़ ज़ुबान की तरह छद्म हो सकता है. उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेंगे. आपकी तल्ख़ी भी इधर कम होती गयी है. आपने व्योमेश की कविता की एक विचारोत्तेजक व्याख्या की और इस पोस्ट पर भी अपनी राय दी, इसके लिए शुक्रिया. आप तशरीफ़ लाते रहिये. अनुनाद पर कोई स्वस्थ बहस हो पाए तो मुझे भी अच्छा लगता है. बहस के साथ खतरा ये है कि वो जाने कब व्यक्तिगत हो जाती है पता ही नहीं चलता फिर उदासी होने लगती है…. फिर भी बहस हो ये मैं ज़रूर चाहूँगा. आपने नाम के छद्म की समस्या को दरकिनार करते हुए मैं आपसे भी कहूँगा की कोई बात आपके ज़हन में हो तो उसे ज़रूर यहाँ लगायें. आप अगर संजीव शर्मा भी नहीं हैं तो क्या फ़र्क पड़ता है… अनुनाद पर कोई मतदान तो हो नहीं रहा कि आप से कहें कि अपनी वोटर आई डी दिखाएं.

    सादर शिरीष

  6. शिरीष भाई कई दिनों बाद आज अनुनाद पर आया तो पंकज भाई की कवितायें दिखीं।

    आज आराम से पढीं तो सच में मज़ा आ गया। क्या कहूं बडे लोग आके पहले ही सब कह गये हैं।

  7. अनुनाद को पहली सुना पढ़ा, अच्‍छा लगा। विपाशा में पंकज जी और शिरीष भाईकी कविताएं भायी थीं। पंकज जी की डिल्‍लू बापू पंडित हैं….पढ़ कर अच्‍छा लगा था। आटो चालक और विभागाध्‍यक्ष तक का कविता में आना हौसला बंधाता है। इसी प्रकार शिरीष भाई जब प्रधानाचार्य निलंबित जैसी कविता लिखते हैं तो कविता की अंतिम पंक्ति तक पहुंचते हुए कुछ खारे पानी की बूंदें बरबस आंखों को धोने लगती है। अब आता रहूंगा।

    नवनीत शर्मा

  8. # नव्नीत, स्वागत है. अच्छा किया विपाशा को भी साथ ले कर आये. अनुनाद पर धेर सार हिमाचल आए. यह कविता और हिमाचल दोनों के ही हित में है.

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