ग़रीब
ग़रीब हैं बहुतेरे
और इसीलिए नामुमकिन है
उन्हें भुलाना
हर नई सुबह बेशक वे ताकते हैं
इमारत दर इमारत
जहाँ वे बनाना चाहते हैं
अपने बच्चों के लिए घर.
वे क़ाबिल हैं
एक सितारे का ताबूत
अपने कन्धों पर ढोने में.
वे कर सकते हैं हवाओं को तार-तार
सूरज को ढँक लेने वाले
पगलाए परिंदों की भांति
मगर अपनी विशेषताओं से अनभिज्ञ, वे करते हैं प्रवेश
रक्त के दर्पणों से होकर
और उन्हीं से होकर लौट जाते हैं
वे चलते हैं धीरे-धीरे
और धीरे-धीरे ही मरते हैं.
और इसीलिए नामुमकिन है
उन्हें भुलाना.
***
बेहिसाब बारिश ( अन्तिम न्याय का दस्तावेज़)
सौ दिनों और सौ रातों तक बिना रुके
बारिश हुई है
और शहर की धुरियाँ
बेहद जटिल कोण बना रही हैं. आज जब
गणराज्य के राष्ट्रपति प्रयत्नपूर्वक अपने बिस्तर से उठे
तो अजीब तरह से एक ओर झुके हुए थे
ऐसा ही उनके विश्वस्त सहयोगियों के साथ भी हुआ: मिलनसार पादरियों,
कई सारे सदाबहार अन्तर्राष्ट्रीय नेतागणों,
सनसनीखेज़ आकारों वाली सेक्रेटरियों
और जोखिम भरे अंदाज़ में उड़ान भरते
जंगली मदमस्त गिद्धों के झुण्ड के साथ.
ऑरोरा बोरेलिस* के नज़दीक नज़ारों की नर्म घास पर
अपने माशूकों के साथ लेटी हुई औरतों ने
अजीब मुद्राएँ अपना लीं.
और ऐसा ही किया
सेवकों की उदासी ने,
और अंगरक्षकों, सूदखोरों और बीमा एजेंटों की
संदेहास्पद भलाई ने
लोग टपक पड़े मक्खियों की तरह, गरीब लेखक और पत्रकार
जिनके चेहरों पर अमिट स्याही से बनाये गए भयानक टीसते निशान,
रक्ताभ पेयों की लत वाले
रिटायर्ड गैंगस्टर (निशानों के
निर्माता) और राजनीतिक पेचीदगियों
और महाजनी की परिवर्तनशील धुंध की
सूक्ष्म आन्तरिक कार्यप्रणाली
के अचूक विशेषज्ञ.
इतनी बारिश हुई
कि यातायात थम गया
और वाद्य-यन्त्र गूंगे हो गए.
***
*ध्रुवीय प्रदेशों में प्रायः रात के वक़्त दिखाई देने वाले प्राकृतिक प्रकाश के नयनाभिराम दृश्यों को ऑरोरा कहा जाता है. ऑरोरा बोरेलिस उत्तरी गोलार्ध के ऑरोरा को कहते हैं.
आभार…
इन बेहतरीन कविताओं के लिए….
अच्छा लगा पढ़कर ..आपका आभार!
जबर्दस्त कविताए हैं। पहली बार नाम सुना और पढ़ा भी। अनुवाद में प्रवाह है।
शुक्रिया पढ़वाने का।
अच्छी लगी कविताऐं
रोबर्तो सोसा एक लगातार उथल पुथल के कवि लग रहे हैं. जनाब भारतभूषण जी ने बहुत अच्छा चयन और अनुवाद किया. सोसा की कविताओं एक तल्ख़ी है जो सही कारण से हो तो मेरे लिए एक सच्चे मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है. कैसा अद्भुत वातावरण है दूसरी कविता का. कठिन, दुष्कर और अगर मैं सही शब्द को चुन पा रहा हूँ तो दुर्धर्ष भी. देखो इन पेचीदिगियों में कहाँ पर अटका है जीवन. कौन हैं महाजनी की परिवर्तनशील धुंध की सूक्ष्म आंतरिक कार्य प्रणाली के अचूक ……बस ये समझ आ जाये तो फिर देखिये कविता कितनी बड़ी हो जाती है !
जनाब भारत जी इस पोस्ट का शुक्रिया
Kavitayen man kholatee hain,bechain karatee hain,sochane ke liye.Dhanyavad,achhi kavitaon ke liye.