अनुनाद

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मृत्यु की इच्छा करने वाले युवक के लिए – ग्वेंडोलिन ब्रुक्स

अनुवाद तथा प्रस्तुति : यादवेन्द्र

ग्वेंडोलिन ब्रुक्स (जून १९१७-दिसम्बर २०००)अमेरिका कि सर्वाधिक चर्चित और प्रतिष्ठित अश्वेत कवियों में एक — बचपन शिकागो में बीता.पड़ोस में और स्कूल में नस्ली भेदभाव का दंश झेलना पड़ा,यहाँ तक कि एक स्कूल छोड़ कर दूसरे पूर्ण रूप से अश्वेत स्कूल में दाखिला लेने की मज़बूरी.. माँ पिता ने उनकी साहित्यिक अभिरुचि को बहुत बढ़ावा दिया…पिता ने लिखने को डेस्क और किताबों के लिए अलमारी खरीद कर दी, माँ ने उस समय अश्वेत कविता के सबसे बड़े हस्ताक्षर langston hughes और james johnson से ले जा कर मिलवाया..१३ साल की उम्र में पहली कविता छपी..१९४५ में पहला काव्य संकलन प्रकाशित..अनेक पुस्तकें प्रकाशित

अमेरका के लगभग सभी प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मान और पुरस्कार उनको मिले..१९५० में पुलित्ज़र पुरस्कार पाने वाली वे पहली अश्वेत कवि हैं,,,१९६२ में राष्ट्रपति केनेडी ने उन्हें लिब्ररी ऑफ़ कांग्रेस में काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया..बाद में वे वहां की पोएट्री कंसल्टेंट भी नियुक्त हुईं.. १९६८ में इल्लिनोय की पोएट लारिएट बनीं…अनेक यूनिवर्सिटीज़ में रचनात्मक लेखन का अध्यापन भी किया और मानद उपाधियाँ मिलीं..१९९४ में अमेरिका की संघीय सर्कार का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान प्राप्त…अश्वेत गौरव की दिशा में निरंतर सक्रिय…

यहाँ प्रस्तुत कविता उनकी बेहद लोकप्रिय कविता है जो मृत्यु की और मुखातिब युवक को जीवन की और लौटने को प्रेरित करती है…नए साल पर अपने उन तमाम साथियों को समर्पित जो जीवन के संघर्ष में थोड़ी सी भी निराशा झेलने को अभिशप्त हैं…

मृत्यु की इच्छा करने वाले युवक के लिए

बैठो,दम भर लो
थोडा सुस्ता तो लो…
प्रतीक्षा कर लेगी बन्दूक
देखने दो झील को थोड़ा और बाट
मनमोहक शीशी के अन्दर
फरफराती विकराल खीझ
कर लेगी थोड़ा और इन्तजार – करने दो
कोई बात नहीं ठहरने दो.. दो हफ्ते और
पूरा अप्रैल पड़ा हुआ है प्रतीक्षा के लिए….
तुम इतने आतुर क्यों हो
चुनने को कोई एक दिन
बस यूँ ही अचानक मर जाने के लिए????

मृत्यु सहर्ष स्वीकार कर लेगी तुम्हारा निर्णय
पुचकार कर सराहना करेगी तुम्हारे फैसले के स्थगन की
बिना किसी चू चपड़ के
मृत्यु को स्वीकार होगा इस तरह बचाया गया समय
दरअसल फुर्सत ही फुर्सत है उसके पास–
दरवाजा ही तो खड्काना है
आज नहीं कल खड़का लेगी तुम्हारा दरवाजा
या फिर अगले हफ्ते भी सही…

मृत्यु बाहर सड़क पार खड़ी है
इतना ही नहीं वो तुम्हारे पड़ोस के घर में ही तो
रहती है पहले से..कितनी शालीनता पूर्वक…
जब भी चाहेगी मृत्यु
आ कर मिल लेगी तुमसे बे झिझक
जरुरत क्या कि तुम मर जाओ बस आज के आज ही
रुको यहाँ–चाहे मुंह फुलाओ
या मातम की काली चद्दर ओढ़ लो
या…….
पर अभी तुम ठहरो यहीं –देखो तो सही
जाने कौन सी नयी खबर आ जाये तुम्हारे वास्ते कल सुबह सुबह..
कब्रों ने कब फैलाई है हरियाली की चादर
अपने आस पास उम्मीदों की
कि तुम सोच रहे हो चला लोगे उनसे ही अपना काम..
भूलो मत,तुम्हारा रंग ही है हरियाली का
अरे, तुम्हीं तो बसंत हो प्यारे…सचमुच के बसंत॥

***

0 thoughts on “मृत्यु की इच्छा करने वाले युवक के लिए – ग्वेंडोलिन ब्रुक्स”

  1. निराश समय में बहुत प्रेरक कविता। वास्‍तव में सही समय पर इसे लगाने का धन्‍यवाद। संभव है कुछ निराशाएं, निराश हों इसे पढ़ने के बाद।

  2. नए साल की शुरूआत पर बहुत अच्छी कविता. उम्मीद बढाती, हिम्मत देती. यह साल अनुनाद के लिए और भी रचनात्मक हो, यही दुआ है. यादवेन्द्र जी को भी इस अनुवाद के लिए ढेरों बधाई.

  3. इस कवि को आगे भी प्रस्तुत करते रहें.

    क्या पता, कब कोई नयी खबर मिल जाए ?

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