लहरों की तरह खेलना चट्टानी तट से
देश-देशावर में सुगंध की तरह फैली रहना तुम
मेरा प्रेम तुम्हें बांधेगा नहीं
वह आसमान बनेगा
तुम्हारी उड़ान के लिए
तुम्हारे स्वप्न के लिए नींद
तुम्हारी गति के लिए प्रवाह
तुम्हारी यात्रा के लिए प्रतीक्षा
प्रिय तुम
अपनी ही खुशबू में खिलना
अपनी ही कोमलता में
दिखना तुम सांझ-तारे को
मेरा प्रेम लौटा देगा तुम्हें
सुदूर किसी नदी के किनारे छूटा तुम्हारा कैशोर्य
वह तुम्हें आगत युगों तक ले जाएगा
भव्यता के, सौंदर्य के उस महान दृश्य तक
जो तुम खुद हो
और जिसे मैंने
जीवन भर निहारा है
अपने एकांत में!
***
क्या होता है एक स्त्री का मन?
कितने फूल गुंथे होते हैं उसमें
कितने रंग, कितने राग
कितने स्वप्न अस्फुट
या कितने भय
कितने विकल स्वर
असुरक्षित वन
कितना छूटा बालपन
बीती किशोर वय
सुदूर देखती
अधेड़ दिनों की ठहरी कतार
पूरब के एक उदास देश में
दु:ख का एक गीत रोता है
पथ पर
तुम पूछते हो
क्या होता है प्रेम!
***
एक लहर विशाल…
तुम मुझे ले जाती हो इस पृथ्वी की निर्जन प्रातों तक
अक्लांत धूसर गहन रातों तक
तुम्हारे होने से ही खिलता है नील चंपा
मैंने तुममें देखा, पाया वह उन्नत भाव समवित
जो मानवता का अब तक का संचय
नहीं तुम रूप, नहीं आसक्ति, नहीं मोह, नहीं प्यार
जीवन का एक उदास पर भव्य गान
अंबुधि से उठी एक लहर विशाल
जिसमें भीगा मेरा भाल…
***
तुम्हारे जरिये
एक बहुत बड़ा संसार मिलता है मुझे तुम्हारे $जरिए
किसी अतीत में खोया हुआ
बीतता हुआ वर्तमान में
भविष्य में आता हुआ
जीवन से गुजरे तमाम चेहरे फिर से लौटते हैं
लौटती है एक शाम
एक तारा आसमान का फिर चमक उठता है सुदूर दिशा में
वह लड़की जो अल्हड़ उमर का एक प्रिय चेहरा थी
दिखती है जीवन की अनुभवी निगाहों से देखती हुई
एक किताब जिसमें मनुष्यों के दुख थे
आंसू बन टपकने लगती है आंखों से
यह जीवन गहरा है
इसमें सिर्फ उम्मीदें सच हैं
हजार दुखों और लाख हारों के बाद
सुदूर उदित वह तारा सच है.
***
अनुनाद परिवार में प्रतिभा जी का स्वागत.
चयन के लिए आभार.
कवितायेँ स्त्री के लिए विराट कामना गीत लगीं.
फिर पढकर देखता हूँ.
ये जीवन गहरा है और उम्मीदें सच हैं. सुंदर समसामयिक चयन.
pahli kavita wakayee stri ke liye premanubhooti se paripurn hai.pratibhaji ka shukriya.
इतने विशाल और सुंदर कोमल भावों से भरी कविता ने मन मोह लिया . प्रतिभाजी को शुक्रिया
प्रतिभा जी का स्वागत.
यादवेन्द्र जी का सुझाव स्वागतयोग्य है. अनिल जी तो साल में दो-तीन बार देश का चक्कर लगाते हैं पर मैं शायद सालेक भर न आ पाऊं. तो जैसा शिरीष भाई ने कहा है 'अमेरिका और रूस के मोह में न पड़कर' बाकी जनों का मिलाप हो जाये; हम 'अहले-क़फ़स' ऑनलाइन शिरकत कर लेंगे.
पाठकों की तरफ़ से भी प्रतिभा का स्वागत …
इसमें हमारा ही स्वार्थ है ….
ये बढ़िया है … लोग बढ़ें… हमें भी ढेर सारी अच्छी कवितायेँ पढने को मिलेंगी…
देह से वाकई दूर लगी कवितायेँ…
कविता कम भावों का उच्छ्वास अधिक…
सचाई कम, सच का आभास अधिक…..
देश देशावर में सुगंध की तरह फैली रहना तुम
मेरा प्रेम तुम्हें बांधेगा नहीं
वह आसमान बनेगा
तुम्हारी उड़ान के लिए
तुम्हारे स्वप्न के लिए नींद
तुम्हारी गति के लिए प्रवाह
तुम्हारी यात्रा के लिए प्रतीक्षा….
बहुत उम्दां। आलोक जी का ये काव्य संकलन अब पढ़ना होगा। इन कविताओं को पढ़वाने के लिए प्रतिभा जी का शुक्रिया..।
चयन के लिए आभार.
प्रतिभा का स्वागत है ……,इसबार का चयन अनुपम .
ptchle sangrah ke shrinkhla ki agli kadi me "dikhna tum…"stri man ko ek naye alok me dekhne ka hradysparshi prays