हंसी चूसते, आलू-मूड़ी फांकते लौंडों की जवान चिढ़
बापों की हकलाहट रेजगारी रिक्त ठनठनाते नीले जेब में
शायर अब, हाँ अब ही करें बखान परदे की पारदर्शिता
असरदार छंदबद्ध फूंक संग्रहणीय प्राचीन द्वार पे
वैवाहिक सौंदर्यबोध के चर्चे आलमारियों में ऊंघते रहें
देखो सिनेमा के छिनाल सच में भींग चुके किस्से
लौटे पीक फेंकता सदाबहार मासिकों में पारिवारिक मूल्य
सुनो लुकती छिपती अरण्यक ध्वनियाँ रंगीन, पाँच बजे हैं
गोभक्षी आर्य, नरभक्षी शास्त्र, उबासियां संजोता संसद
बासी प्रेम का स्वाद और चिंतित श्री श्री १०८ शर्मा जी
इस देश की प्राचीनता से सस्ते चुटकुलों की किताबों में
यूँ वे खुश हैं मकान के मौसम विरोधी रंग के टिकाउपन से
तब शिलौंग की शाम, तीखी उबली चाय, वोदका वाली ठंड
लेटना रैप्स सुपरमार्केट के गलियारों में लौंग की गंध खोजते
दबे पैरों पहुँचना संविधान खरोचते चूहों के पास और हंसना
हटना अचानक, बर्फ़ की सिल्लियों पर फिसलना और फिर
….. चूमना
काश यह एक अच्छी कविता होती तो कह पाता 'विवाद अच्छे हैं'(बतर्ज़ दाग़ अच्छे हैं)
और वह विवाद था भी नहीं भाई…अब इतनी असहमति तो रहेगी ही…
नो डाउट कविता 'चुम्मा' है !
पर 'चूमना-चूसना विवाद' से इस कविता को संदर्भित करने की क्या जरूरत थी !
क्या कविता चूमने-चूसने की कोई पारिभाषिक संहिता बना रही है ?
जो भी हो हम कविता पढ़े .. अच्छा लगा .. चलते हैं !
यह मामला गलत दिशा में जा रहा है। अफसोस की इस दिशाभ्रम की निगहबानी कवि शिरीष कर रहे है।
लोगों का मतभेद पिंटर की उस एक पंक्ति के अनुवाद को लेकर था। इस मामले में ज्यादा आधिकारिक राय वही दे सकते हैं जो इस क्षेत्र के अनुभवी हैं, जैसे भारत भूषण तिवारी,सिद्धेश्वर सिंह,अशोक पाण्डे(हल्द्वानी वाले) या ऐसे ही दूसरे लोग जो विदेशी कविता का अनुवाद करते रहे हैं।
यदि कवि द्वय को इतनी ही जिद है तो इस बात को लेकर बौद्धिकों के बीच रायशुमारी कर ले 🙂
उम्मीद है कि अब "चूसने" शब्द के ऐतिहासिक प्रयोगों को खोजते फिरने के बजाय कवि जी अनुवाद पर बात करेंगे। या फिर इस बात को यहीं छोड़ देंगे।
प्रस्तुत कविता मुझे अच्छी लगी। मेरा भी मत है कि किसी तथाकथित विवाद का संदर्भ देना इस कविता के प्रति अपराध सरीखा है।
पिछली पोस्ट का सन्दर्भ लेने से यदि इस कविता को कोई क्षति पहुंची है तो मैं इसके लिए माफ़ी मांग लेता हूँ. अब तरुण की दूसरी कविता लगा दी गई है…कृपया उस पर राय दें.
कवि की कल्पना की कोई सीमा नहीं होती
जहाँ ना पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि
कविता कवि की सोच कवि की सोचने की
सीमा दर्शाती है हमे तो सिर्फ पढ़ना है और
जो अच्छा लगे तो राम राम वरना है राम #gBm
कवि की कल्पना की कोई सीमा नहीं होती
जहाँ ना पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि
कविता कवि की सोच कवि की सोचने की
सीमा दर्शाती है हमे तो सिर्फ पढ़ना है और
जो अच्छा लगे तो राम राम वरना है राम #gBm