एक पिस्तौल की गोली
यही कोई आधा इंच लम्बी
फिर पौना इंच मान के चलिए
उस लिबलिबी दबाने वाली उंगली को
सिर्फ ज़रा सी पीछे खींचनी है
ऐसे ही, बहुत हुआ तो चौथाई इंच
कि निकल ही पड़ी वह गोली
ज़ोरदार आवाज़ करती हुई, चिंघाड़ती हुई
बेध ही दिया उसने
छाती का वह दुर्बल पिंजरा
ढह ही गया वह
अनशन कर करके
जर्जर हो चुका शरीर
टेढ़े ही हो गए
वे चल चलकर
थक चुके पैर
शांत हो गया आखिर
अमानवीय धार्मिक दंगों
से घायल हो चुका मन भी
वाह भई वाह,
उस पिस्तौल का कमाल
वह गोली, यही कोई आधा इंच
और वह लिबलिबी दबाने वाली
इंसानी उंगली
हे राम!
******
जिस दिन गांधी पैदा हुए थे उस दिन गांधी को मार दिए जाने के बारे में कविता बड़ी ‘डिप्रेसिंग’ लगती है पर..
अनिल अवचट मराठी के बड़े लेखक हैं. उन्होंने अपनी पत्नी डॉ. सुनंदा अवचट के साथ मिलकर पुणे में ‘मुक्तांगण‘ नाम के नशामुक्ति केंद्र की स्थापना की जो आज देशभर में प्रसिद्द है. अवचट स्वयं और उनका ‘लेखक’ सामाजिक न्याय के लिए सदैव संघर्षरत रहे हैं. हाल ही में उनकी पुस्तक ‘सृष्टीत…गोष्टीत’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी के पहले (मराठी) बाल-साहित्य पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की गई है.
विचारणीय पोस्ट