अनुनाद

बुढापे की कविता – चयन, अनुवाद और प्रस्तुति: यादवेन्द्र

मैं यहाँ दो छोटी अमेरिकी कवितायेँ दे रहा हूँ जिन दोनों का सामान विषय है—बुढ़ापा….पर इन दोनों में इस विषय के साथ खेलने में अद्भुत भिन्नता है… कोई महानता इन कविताओं में नहीं है पर हमारे समाज से अलग समाज की कवितायेँ हो कर भी ये ऐसा बहुत कुछ कह जाती हैं जो हमारे मन में दबा हुआ रह जाता है..इनको कह पाने का साहस हमारे यहाँ थोड़ा कम दीखता है.

छोटा बच्चा और बूढ़ा – शेल सिल्वरस्टीन

छोटा बच्चा बोला:
मुझसे छूट जाता है चम्मच
कई बार खाते खाते…
बूढ़े ने हाँ में हाँ मिलाया:
कोई बात नहीं
मुझसे भी होता है ऐसा ही.
बच्चे ने धीरे से फुसफुसा कर कहा:
अक्सर मैं गीली कर लेता हूँ अपनी चड्ढी..
ये तो मुझसे भी हो जाता है
मुस्कुरा कर बूढ़ा बोल पड़ा.
फिर बच्चा बोला:
आये दिन बात बात पर मुझे छूट जाती है रुलाई..
बूढ़े ने सिर हिलाया, ये मुझ से भी तो हो जाता है बच्चे.
पर सबसे बुरी बात है कि बड़े लोग
मेरी बात गौर से नहीं सुनते
बच्चे ने कुछ सोच कर कहा.
मैं खूब समझ सकता हूँ तुम्हारा दर्द मेरे बच्चे
एकदम से बूढ़ा बोल पड़ा..
और बच्चे ने अचानक महसूस की गर्माहट
अपने हाथों पर झुर्रियों भरी हथेलियों की.
– – –
अंकल शेल्बी के नाम से अमेरिकी बच्चों के बीच प्रसिद्ध शेल सिल्वरस्टीन (1930 -1999 )
बाल साहित्यकार ,कवि, गायक और गीतकार,संगीतकार,कार्टूनिस्ट और पटकथा लेखक थे…इनकी दर्जनों पुस्तकें तो प्रकाशित ही हैं,बड़ी संख्या में संगीत एल्बम निकले हैं…प्रतिष्ठित ग्रामी पुरस्कार तो मिला ही है,ओस्कर के लिए नामित भी हुए. 20 भाषाओँ में उनका साहित्य अनूदित हुआ है और 2 करोड़ किताबें बिक चुकी हैं. उनकी लोकप्रियता का आलम ये है कि मृत्यु के बाद भी कविता संकलन दुनिया के बड़े प्रकाशक छाप रहे हैं.
****


यहाँ बस इसी वक्त – ग्रेस पेली

मैं यहाँ बाग़ में बैठी हंस रही हूँ
बुढ़िया…जिसके बड़े बड़े स्तन झूल रहे हैं
पर चेहरा करीने से निखरा हुआ है.
ऐसा हो कैसे गया ???
पर ठीक ही तो हुआ
मैं चाहती भी यही थी
की आखीर में बनूँ पुराने चाल ढाल वाली
एक औरत
बड़े घेर वाले स्कर्ट से ढंकी रहे
जिसकी मोटी मोटी जांघें
गर्मी में चूता रहे पसीना
और उधम मचा मचा के मेरी गोद
गुलजार कर दें मेरे नाती पोते.
मेरा बुड्ढा कुछ दूर सामने दिखाई दे
बिजली के मीटर वाले से बतियाता हुआ
कि देखो कितना बदल गया ज़माना
अब तो बिजली के मायने हो गए
सीधे सीधे तेल और युरेनियम
और भी दुनिया भर की बातें..
मैं पोते से कहती हूँ
जाओ जा कर अपने दादा से बोलो
कि मिनट भर के लिए आ कर यहाँ बैठ जाएँ
मेरे बगल में
अब सबर नहीं होता पल भर भी
यहाँ बस इसी वक्त
मैं चूमना चाहती हूँ
उनके कोमल लपलपाते हुए होंठ…
– – –
ग्रेस पेली (1922 -2007 ) अमेरिका की मशहूर कथा लेखिका,कवि और सामाजिक कार्यकर्ता थीं..अपने समाजवादी विचारों के लिए जार के रूस से निष्कासित माँ पिता की बेटी पेली बचपन में ही अमेरिका आ गयीं.शुरूआती तीस सालों में कवितायेँ लिखीं,कई कविता संकलन प्रकाशित और प्रशंसित.बाद में कहानियों की तरफ उनका झुकाव हुआ और आम परिवारों की स्त्रियों के दुःख दर्द उनकी रचनाओं में खूब बोलते हैं.पेली को साहित्य के कारण जितना जाना जाता है उस से ज्यादा युद्ध विरोधी प्रदर्शनों के लिए जाना जाता है…वियतनाम से ले कर इराक युद्ध तक.इसी कारण उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी.अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे स्तन कैंसर से पीड़ित रहीं।
भारत भाई द्वारा किये गए संशोधन के अनुसार –

ग्रेस पेली के परिचय में आपने लिखा है कि वे बचपन में ही अमेरिका आ गई थीं. पर मेरी जानकारी यह है कि उनका जन्म अमेरिका (ब्रोंक्स, न्यू योंर्क सिटी) में ही हुआ था. विकिपीडिया पर उनका परिचय भी इस बात की तस्दीक करता है.
http://en.wikipedia.org/wiki/Grace_Paley

0 thoughts on “बुढापे की कविता – चयन, अनुवाद और प्रस्तुति: यादवेन्द्र”

  1. यादवेन्द्र जी,
    इन कविताओं के लिए शुक्रिया. ग्रेस पेली के परिचय में आपने लिखा है कि वे बचपन में ही अमेरिका आ गई थीं. पर मेरी जानकारी यह है कि उनका जन्म अमेरिका (ब्रोंक्स, न्यू योंर्क सिटी) में ही हुआ था. विकिपीडिया पर उनका परिचय भी इस बात की तस्दीक करता है.
    http://en.wikipedia.org/wiki/Grace_Paley

  2. dhanyavaad bhai,meri jankari men ye baat chhut gayi thi…shirish ji iska sudhar kar denge…par mujhe lagta hai ki mahatvapurn baat yahan kavita ke vishay aur vajan ki hai na ki lekhika ke janmsthan ki…

    yadvendra

  3. यादवेन्द्र जी,
    इस बात में कोई दो राय नहीं कि यहाँ ज़रूरी बात कविता के विषय और वज़न की है. पर मुझे लगा कि तथ्यात्मक जानकारी भी दुरुस्त हो तो बहुत अच्छा होगा इसलिए मैंने अपनी बात रखी.

  4. शिरीष जी
    नमस्कार !
    मैं कवियों के इतिहास के स्थान पे कवितों पे कहना ना चाहुगा कि ''छोटा बच्चा और बूढ़ा – शेल सिल्वरस्टीन '' कि अंतिम पक्तिया ''मेरी बात गौर से नहीं सुनते
    बच्चे ने कुछ सोच कर कहा.
    मैं खूब समझ सकता हूँ तुम्हारा दर्द मेरे बच्चे
    एकदम से बूढ़ा बोल पड़ा..
    और बच्चे ने अचानक महसूस की गर्माहट
    अपने हाथों पर झुर्रियों भरी हथेलियों की.'' behad अच्छी लगी man को chune wali
    2
    '' यहाँ बस इसी वक्त – ग्रेस पेली ''
    नयी कविताओं में सभी प्रयोग होते है '
    आप द्वरा हमे इन का रस्सावदन हुआ . आभार !
    साधुवाद
    सादर !

  5. यह कवितायेँ बहुत उम्दा हैं… आप तीनो का शुक्रिया… बहुत दिनों से ऐसी कवितायेँ अनुनाद पर मिस कर रहा था.

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