अनुनाद

राजेश जोशी की एक कविता

राजेश जोशी अपनी पीढ़ी के सर्वाधिक चर्चित कवि हैं। साधारण लोगों से जुड़ी कई असाधारण और महत्वपूर्ण कविताएँ उन्होंने लिखी हैं। अभी पब्लिक एजेंडा की साहित्य अंक में उनकी एक कविता मैंने पढ़ी और आपके पढने के लिए यहाँ लगा रहा हूँ। इस पोस्ट के लिए मैं पत्रिका के कार्यकारी संपादक मंगलेश डबराल, साहित्य संपादक मदन कश्यप और कवि का आभारी हूँ। इस अंक से और भी कविताएँ मैं अनुनाद पर आपके लिए लाऊंगा।
बिजली का मीटर पढ़ने वाले से बातचीत बाहर का दरवाज़ा खोल कर दाखिल होता है
बिजली का मीटर पढ़ने वाला
टार्च की रोशनी डाल कर पढ़ता है मीटर
एक हाथ में उसके बिल बनाने की मशीन है
जिसमें दाखिल करता है वह एक संख्या
जो बताती है कि
कितनी यूनिट बिजली खर्च की मैंने
अपने घर की रोशनी के लिए

क्या तुम्हारी प्रौद्योगिकी में कोई ऐसी हिकमत है
अपनी आवाज़ को थोड़ा -सा मजाकिया बनाते हुए
मैं पूछता हूँ
कि जिससे जाना जा सके कि इस अवधि में
कितना अँधेरा पैदा किया गया हमारे घरों में?
हम लोग एक ऐसे समय के नागरिक हैं
जिसमें हर दिन महँगी होती जाती है रोशनी
और बढ़ता जाता है अँधेरे का आयतन लगातार
चेहरा घुमा कर घूरता है वह मुझे
चिढ कर कहता है
मैं एक सरकारी मुलाजिम हूँ
और तुम राजनीतिक बकवास कर रहे हो मुझसे!

अरे नहीं नहीं….समझाने की कोशिश करता हूँ मैं उसे
मैं तो एक साधारण आदमी हूँ अदना -सा मुलाजिम
और मैं अँधेरा शब्द का इस्तेमाल अँधेरे के लिए ही कर रहा हूँ
दूसरे किसी अर्थ में नहीं
हमारे समय की यह भी एक अजीब दिक्क़त है
एक सीधे-सादे वाक्य को भी लोग सीधे-सादे वाक्य की तरह नहीं लेते
हमेशा ढूँढने लगते हैं उसमें एक दूसरा अर्थ

मैं मीटर पढ़ने निकला हूँ महोदय लोगों से मज़ाक करने नहीं
वह भड़क कर कहता है
ऐसा कोई मीटर नहीं जो अँधेरे का हिसाब-किताब रखता हो
और इस बार तो बिजली दरें भी बढा दीं हैं सरकार ने
आपने अख़बार में पढ़ ही लिया होगा
अगला बिल बढ़ी हुई दरों से ही आएगा

ओह ! तो इस तरह लिया जायेगा इम्तिहान हमारे सब्र का
इस तरह अभ्यस्त बनाया जायेगा धीरे-धीरे
अँधेरे का
हमारी आँखों को

पर ज़बान तक आने से पहले ही
अपने भीतर दबा लिया मैंने इस वाक्य को

बस एक बार मन ही मन दोहराया सिर्फ़!

***

0 thoughts on “राजेश जोशी की एक कविता”

  1. ऐसी कोई मशीन तब बनाई जाएगी जब उस की कोई कमर्शियल उपयोगिता होगी. तब तक अन्धेरे का हिसाब हम कवियों को को ही रखना होगा अपने दिमाग की झनझनाती नसों और पेट की ज़ख्मी आँतों में. राजेश जोशी की कविता हमेशा आगे कुछ और जोड़ने के लिए उकसाती है. सुन्दर कविता.

  2. राजेश जी का, उनकी साधारणता में असाधारणता का क्या जवाब.. अभ्यास..अँधेरे का, अच्छी कविता है. मेरे तो प्रिय कवि हैं राजेश जी, यहाँ उन्हें प्रस्तुत करने का आभार..

  3. इनकी और कवितायेँ पढने को चाहिए … मैं बहुत दिन से इन्हें खोज रहा था … शुक्रिया आपका इसे शुरू करने का

  4. is kavita ko yahan lagaane ke liye aabhar…rajesh joshi ji ki kavita se yuva kavi sikh sakhte hain..ki kaise shabdon ka aadambar khada kiye bagair aam bol chal ki bhasa mein badi kavita sambhav hai….jo aam pathak tak pahunch sakti hai…….

  5. कृष्णमोहन झा

    दुख के साथ लिखना पड़ रहा कि यह राजेश जोशी की बहुत कमज़ोर कविता है।

  6. शिरीष जी, धन्यवाद, इसे साझा करने के लिए… सचमुच राजेश जी साधारणता में असाधारण की अत्यंत अर्थवान प्रस्तुति करते हैं. उनकी और कविताओं का यहाँ इन्तजार रहेगा.

  7. जो मीटर पढ़ने आया है उसके मन, दिमाद और घर में किसी भी हिंदी के कवि के मन, घर और दिमाग से बहुत गहरा अंधेरा छाया है भाई । उस अंधेरे में देखने-झाकने की जरूरत है। एक बिल-बाचने वाला किसी भी हालत में स्टेट(राज्य) का प्रतिनिधि और बढ़ते अंधेरे का जिम्मेदार नहीं हो सकता। बाकी कृष्ण मोहन झा से सहमत हूँ।

  8. कितनी सही बात कही बोधिसत्व जी ने. यह वे कविता के भीतरी पाठ तक गए जबकि बाकी लोगों ने शायद एक बड़े कवि की सिर्फ़ तारीफ़ करना ही मुनासिब समझा. राजेश जोशी जी मेरे प्रिय कवि हैं पर इस कविता के बारे में मेरी राय भी यही है.

  9. कृष्णमोहन झा

    राजेश जोशी की एक कमज़ोर कविता और उसकी तारीफ़ पढकर मैं सदमें में हूँ। हम अपने कवियों को खूब प्यार करें…उन्हें सराहें…लेकिन हरबड़ी में लिखी उनकी कमज़ोर कविताओं को ऊपर न चढाएँ।इससे न कवि का भला होगा और न हमारा। कैसी विडम्बना है कि हम एक तरफ बाज़ारवाद का विरोध करते हैं और दूसरी ओर बाज़ार के नुस्खे का शिकार हो जाते हैं। कविता या किसी रचना का मूल्यांकन करते समय ब्रैंड को अनदेखा किया जाना चाहिये।…आश्चर्य मुझे यह हुआ कि राजेश जोशी कैसे लिख सकते हैं ऐसी कविता।'वर्ग' की मोटी समझ रखनेवाले भी जानते हैं कि जो लोग मीटर पढने आपके घर आते हैं वे कौन लोग होते हैं। उनकी साइकिल…उनके कपड़े…उनकी चप्पल…और उनका चेहरा… क्या राजेश जोशी भूल गए हैं वे सब? और जोशी जी क्या प्रौद्योगिकी उनकी है? क्या बात है…प्रौद्योगिकी की सारी सुविधाओं का उपभोग मध्यव्रर्ग करता है,जिसका हिस्सा खुद आप भी हैं मगर उसे उस बेचारे के खाते में डाल दिया। सिर्फ डाला नहीं, उसे स्टेट का प्रतिनिधि भी बना डाला। और हाँ,बिजली का इस्तेमाल हम सिर्फ अपने घर को रौशन करने के लिए ही नहीं करते…रोज़ बिजली के नए सामानों से जो बाज़ार भरता जाता है…वे चीज़ें कहाँ जाती हैं?… क्या कविता सिर्फ मुहावरे और विट में ही सही होती है?

  10. main krishan mohan jha se sirf itna sahmat hun ki hame brand nahin rachna ko dekhna chahiye….lekin unki anya baton se main sahmat nahin…pahli bat to ye ki kavita mein meter wale se sawal karne bhar se wah state ka representative nahin ho jata…dhyan se dekhye kavita mein meter padhne wala bhi apni baat rakhta hai aur aakhir mein kavi apni frustration us par nahin nikal kar [yah samajh lene ke bad ki un dono ki sthiti ek hi jaisi hai] apni bhul sudharta hai..
    ..par zabaan tak aane se pahle hi…apne bhitar daba liya maine is vakya ko…bas ek bar man hi man dohraya sirf…….kya ant tak pahunchte pahunchate kavi jan nahi leta hai ki meter padhne wale se sawaal karne ka koi fayada nahin..kyunki kavi aur uski niyati ek jaisi hai..aur kavita ki asal takat is baat mein hi hai ki hum sawaal unse poochne mein nakaam hain jinse pooche jaane chahiye..jo andhera paida kar rahe hain aur ek saajish ke tahat hume uska abhayast bana rahein hain…yahi baat kavita kahti hai..
    ..

  11. Bhai bodhisatva Jee,krishan mohan jha jee aur ragunee jee main is bat se sahamat hoon ki har bada kavi hamesha hi saree achhee kavitayen naheen likh sakata hai. na to nagarjun ki saree kavityayen achhee hain na shamsher ki aue na hee tirlochan. Yahann tak main apki baat se sahamat hoon. Lekin rajesh ki is kavita ke bare mein aap jo samajh rahe hain va bilkul galat hai isee kavita main ek kuchh line hain use padhen jo aap login par fit baithati hai – hamare samay ki yah bhee ek ajeeb dikata hai/ek seedhe sadhe vekya ko bhee log seedhe sade vakya ki tarah naheen lete? hamesha dudne lagate hain usme doosara arth>
    kripya kavita ko kavita mein antarnihit disha mein samajhane ki koshish karein anpne poorvagrah se naheen is kavita mein meter bachane vala bhee bechara hee hai. Kavi ne use andhera paida karne wala naheen kahga hai.

  12. bhai krishna mohan jha se: is kavita ki khoobsoorti yahi hai ki wah aapke dwara kalpit varg charitra se aane wale 'bijliwale' ko rajya ke pravakta ki tarah pesh karti hai. par gaur se dekhiye miyan yah bijliwala rajya ka pratinidhi nahin uska victim hai: rajya dwara manufactured consent ka ek victim! rajesh joshi jaisa kavi aur kuchh bhi ho is bijliwale ke varg charitra aur uske victimhood se anjan nahin ho sakta! baki aap sukhanvar mujhse behtar hain.

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