अनुनाद

राजेश सकलानी की एक कविता

राजेश सकलानी अत्यंत महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उम्र के लिहाज से देखें तो कुमार अम्बुज, लाल्टू, एकांत श्रीवास्तव, कात्यायनी के समकालीन बैठेंगे। हालाँकि वे उतने सक्रिय नहीं रहे और न ही उन पर पर्याप्त चर्चा हुई। उनका एक संग्रह सुनता हूँ पानी गिरने की आवाज़ प्रकाशित है पर उपलब्ध नहीं। मुझे इसकी एक प्रति अशोक पांडे के अनुग्रह से प्राप्त हुई है। मैं इस संग्रह पर लिख भी रहा हूँ। जल्द ही अनुनाद पर राजेश जी की कुछ और कविताएँ और अपना लिखा उपलब्ध कराऊंगा। अभी प्रस्तुत है उनकी एक कविता।
उस सन तक आते हिंदी फ़िल्मों का नायक

करूणा और प्रेम का संगीत लेकर कहीं
ग़ुम हो गया

गल्ली मोहल्ले से गुज़रते उसका स्वर
रेडिओ पर सुनाई पड़ जाता

हमारा ध्यान बँटा कई चीज़ें अब
हमारे साथ नहीं हैं

ख़ास चीज़ों में दोपहरों में
सुरीलापन नहीं लगता

नगर में किसी फ़िल्म की हवा रहती
उसकी कथाओं से हम समाज में
सम्बंधित रहते
कोई गुनगुनाता कोई धुन लेकर
आगे बढ़ जाता
गाते सब मिलकर एक ही गाना

जाना मिलकर रोना हाल के अँधेरे में
हमारे कालेज का स्टंट नायक घूसों से
दुश्मन का मुंह सुजा देता
पर वह किसी को मार डालना नहीं चाहता था
पापियों के चेहरों के बारे में कई किंवदंतियाँ
रहतीं
सेंसरबोर्ड खलनायक से पराजित नहीं होता

किन्हीं दिनों का गीत गूंजता है
किसी वर्ष की साँसे
क़रीब आती हैं।
***

0 thoughts on “राजेश सकलानी की एक कविता”

  1. अच्छी लगी कविता… इसे नॉस्टेल्जिक होना कहा जाए या कुछ और… लेकिन यह छूती है. आपके कारण एक और अच्छे कवि से परिचय हुआ. महेश वर्मा

  2. आपने यह बहुत अच्छा काम किया है.राजेश सकलानी बहुत महत्वपूर्ण कवि हैं . उनकी जितनी चर्चा होइनी चाहिये थी , नहीं हुई.साहित्यिक केन्द्रों से सायास दूरी बनाये रखने वाले इस जन-पक्षधर कवि पर लिखने के लिये धन्यवाद!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top