अनुनाद

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फ्रांसीसी बास्क समुदाय का लोककाव्य : अनुवाद और प्रस्तुति – यादवेन्द्र

यूरोप की सबसे प्राचीन भाषा मानी जाने वाली बास्क भाषा अन्य इंडो यूरोपियन भाषाओँ से बिलकुल अलग है इस लिए एक वैज्ञानिक मत ये है कि यूरोप के वर्तमान बाशिंदों के आने से पहले बास्क भाषा ही बोली जाती थी…बाहरहाल इस बहस में न पड़ते हुए हम यह जान लें कि आज बास्क समुदाय उत्तर मध्य स्पेन और दक्षिण पश्चिम फ़्रांस के बीच बँटा हुआ है.स्पेन में तो बास्क भाषा को द्वितीय राज भाषा का दर्जा मिला हुआ है पर फ़्रांस में यह एक उपेक्षित और दमित अल्पसंख्यक भाषा है।

बर्तसो फ़्रांसिसी अधिकार वाले बास्क समुदाय के बीच प्रचलित लोक काव्य है जिसे सामूहिक तौर पर काव्यात्मक मुकाबले के रूप में कोई विषय ले कर गाया जाता है.

 


कुछ दिन पहले मैं गया एक अड्डे पर
देखा दो दो गबरू जवान भिड़े हुए थे बहस में
दोनों अच्छे खासे घरों के बास्क लग रहे थे
पर एक दूसरे को समझने के मामले में बिलकुल अड़ियल
उदास मन से मैं बैठ गया उनकी बातें सुनने

ठीक ठीक नहीं समझ पाया मैं
क्या कहना चाहता है उनमें से एक
क्योंकि बोल रहा था वो विदेशी जुबान
इतना समझ आया बोल रहा है
कि उसको अपनी धरती की बहुत चिंता है
और क्या हुआ जो इस पर अधिकार कोई और देश जमाये है
हमें रोकता कौन है आजाद होने से
जिंदाबाद हमारा बास्क देश..वो बोला
पर बोला फ्रेंच भाषा में.

इस पर दूसरे ने तुनक कर बास्क भाषा में कहा:
हम क्यों छोड़ दें अपनी भाषा
यही तो है जो हमें उनसे करती है जुदा
बाकी सारे बर्ताव में तो हम
बरसों पहले उनकी तरह ही बन चुके हैं फ्रेंच.

दोनों जवान थे पर थे एक अदद दरख़्त की तरह
एक भारी भरकम तना था तो दूसरा था पत्तियों की मानिंद
हाँलाकि मुझे कभी पसंद नहीं आया
पहाड़ पर जिंदगी गुजार देने के बावजूद
ओक का वृक्ष अपनी नुकीली चिकनी पत्तियों के साथ.

एक कर रहा था देश की तारीफ
जैसे किया करते हैं विदेश से आए सैलानी
और दूसरा था कि कसीदा पढ़े जा रहा था
दमनकर्ता की इस देश के लिए तरक्की की योजनाओं का
हमारी भाषा में
इसको साफ़ साफ़ क्यों न कहें
कि हम घिरते जा रहे हैं गहरे धुंधलके के अंदर
एक साथ कैसे बजा सकते हैं हुक्म दो दो आकाओं के.

ऐसे तीखे नोक झोंक में उलझ के हम
सिवा अपनी एका भंग करने के और हासिल करेंगे क्या
मैं कोशिश में हूँ खंड खंड जोडूँ एक साथ
चाहे हो हमारी भाषा या फिर हो देश
दोनों आखिर हैं तो एक ही सचाई के भिन्न भिन्न रूप

भाइयों बहनों सुनो सुनो
मुमकिन नहीं कि आप बना डालें इन्सान
जोड़ जोड़ के यहाँ वहां से किसी कंकाल के टुकड़े
धरती है हमारा दिल तो भाषा है उसकी आत्मा
और इनको बाँटना ठीक नहीं..मर जायेगा वो भी
जो सब कुछ आज जिन्दा है दिख रहा.

कुछ लोग बात करते हैं सिर्फ धरती की
और भूल जाते हैं भाषा की बात
दूजे हैं जिन्हें याद रहती है सिर्फ भाषा
धरती उनके जहन में नहीं
असल में कैसे जुदा हो सकते हैं एक दूसरे से
धरती और भाषा
देखो कैसे दोनों हमें समझाने की कोशिश कर रहे हैं
कि बिलकुल ही संभव नहीं उनका जीवित रहना
एक दूसरे के बगैर…
***
युर्गी जुर्गेंस के ब्लॉग से साभार , बास्क से अंग्रेजी तर्जुमा खुद उनका है.
चयन और प्रस्तुति : यादवेन्द्र

***
बास्क देहाती गाँव का चित्र गूगल से साभार

0 thoughts on “फ्रांसीसी बास्क समुदाय का लोककाव्य : अनुवाद और प्रस्तुति – यादवेन्द्र”

  1. सुन्दर्. आज कल हम फेस बूक पर *भोटी* भाषा और भोट देश को ले कर फेस बूक पर बहस चला रहे हैं. मज़ा आया पढ़ कर.

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