अपने तखल्लुस अडुनिस (मूल नाम: अली अहमद सईद असबार) से पूरी दुनिया में जाने जाते कवि आधुनिक अरबी कविता के शिखर पुरुष माने जाते हैं जिनके बीस से ज्यादा संकलन प्रकाशित हैं.सीरिया के एक किसान परिवार में 1930 में जन्मे अडुनिस बचपन से पढाई में होशियार थे और एक खुले मुकाबले में तत्कालीन सीरियाई राष्ट्रपति की एक कविता प्रभावशाली ढंग से सुनाने के पुरस्कार स्वरुप एक फ्रेंच स्कूल में दाखिला पा गए.कालेज की पढाई पूरी करते हुए राजनीतिक स्तर पर सक्रिय हुए जिसके कारण उन्हें अपना देश छोड़ना पड़ा और वे लेबनान जा कर बस गए.अपनी कविताओं में विश्व की आधुनिक काव्य धारा का समावेश करने और नए नए प्रयोग करने के कारण वे चर्चा में रहे पर अरबी साहित्य की मुख्य धारा में बहुत सहज स्वीकार्य नहीं रहे.उन्होंने लम्बे समय तक प्रयोगवादी प्रवृत्ति को केंद्र में रखने वाली अरबी की महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिका का संपादन किया.लेबनान यूनिवर्सिटी में साहित्य के प्रोफ़ेसर रहे लेकिन वहाँ के गृहयुद्ध से तंग आकर पेरिस चले गए और वहाँ की सोरबों यूनिवर्सिटी में अध्यापन किया.आम तौर पर अपनी कविता में सीधे सीधे राजनैतिक प्रतीकों से परहेज करने वाले इस विश्वप्रसिद्ध अरबी कवि को एडवर्ड सईद ने आज का सबसे ज्यादा साहसी और विचारोत्तेजक कवि माना था…हांलाकि सीरिया सहित समूचे अरब जगत की तानाशाही सत्ता का मुखर विरोध करने वाले कवि को साहित्य शास्त्र की किताबों में कविता को भ्रष्ट करने वाला तक बताया गया है.अडुनिस को कई सालों से साहित्य का नोबेल पुरस्कार का हकदार माना जा रहा है और उनका नाम संभावित सूची में होता है. वियतनाम युद्ध के समय उन्होंने अमेरिका का दौरा किया था और कुछ लम्बी कवितायेँ लिखी थीं..इनमें से एक कविता है न्यूयार्क का शवदाह जिसमें वे प्रसिद्ध अमेरिकी कवि वाल्ट व्हिटमैन की रूह से संवाद करते हैं और अमेरिका की साम्राज्यवादी नीतियों का बहुत कड़े शब्दों में प्रतिकार करते हैं.इन्ही नीतियों के कारण अमेरिका को एक बड़े अग्निकांड का सामना करना पड़ता है…9 /11 की घटना के समय बार बार इस कविता का हवाला दिया गया और उन्हें पश्चिम विरोधी और अरबी उग्रवाद समर्थक बताने की कोशिश की गयी.हाल में अरब में उठी लोकतंत्र समर्थक आँधी को समर्थन देने के बहाने लीबिया में सैनिक हस्तक्षेप करने की अमेरिकी नीति का विश्व व्यापी विरोध हुआ और दुनिया ने ओबामा के अश्वेत चेहरे के पीछे छिपा हुआ बुश और निक्सन का असली चेहरा पहचान लिया. इस सन्दर्भ में अडुनिस की उस महत्वपूर्ण कविता के कुछ सम्पादित अंश साथी पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं।
न्यूयार्क का शवदाह
धरती को एक नाशपाती की निगाह से देखो
या देखो किसी स्त्री के वक्ष के रूप में॥
इस फल और मृत्यु के बीचों बीच ही पलता रहता है
इंजीनियरिंग का एक अनोखा करतब: न्यूयार्क…
इसको चाहो तो डूबे हुओं को कुछ दूरी पर ही
निर्विकार भाव से कराहते हुए टुकुर टुकुर ताकता हुआ
जिबह के लिए कदम बढ़ाने वाला चार टाँगों पर खड़ा
शहर कह सकते हो। *
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न्यूयार्क दरअसल एक स्त्री है
जो इतिहास की मानें तो कस कर पकड़े हुए है
एक हाथ से आज़ादी नाम का फटा पुराना चीथड़ा
और साथ साथ उसका दूसरा हाथ व्यस्त है
धरती का गला घोंट कर ठिकाने लगाने में।
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न्यूयार्क दुनिया के बटुए में एक सूराख है
जिस से उन्माद का आवारा झोंका
वेगवान प्रवाह की मानिंद बाहर निकल जाये।
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स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी जैसी तमाम मूर्तियाँ जमींदोज हो जाने दो…
लाशों के अब उगने लगे हैं नाख़ून
जैसे उगा करते हैं मौसम आने पर फूल…
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पूरब दिशा से वेगवती हवाएँ अपने पंख फैलाए आएँगी
और जड़ से उखाड़ फेंकेंगी तम्बू और ऊँची अट्टालिकाएं।
पिट्सबर्ग,बाल्टीमोर,कैम्ब्रिज एन आर्बोर, मेनहट्टन, यूनाइटेड़ नेशंस प्रिंसटन और फिलाडेल्फिया
सब जगह मुझे दिखाई दिए अरब के नक़्शे ही।
देखने में इसकी शक्ल किसी पैंतरेबाज शातिर घोड़ी से मिलती है
जो इतिहास को पीठ पर लादे गिरती पड़ती चली जा रही है…
और अब निकट ही है नरक का घुप्प अँधेरा और उसकी कब्र।
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हार्लेम… तुम्हारे लोग पलक झपकते बिलकुल उसी तरह गुम हो जाया करते हैं
जैसे गुम हो जाता है मुँह में ब्रेड का निवाला
तुम्हें तो अब अंधड़ बन कर सब कुछ उलट पुलट करना ही होगा
दुर्बल पत्तियों की तरह फूँक मार कर सब को उड़ा दो।
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जब आग लगी हो आपके पेट में
तो मेघगर्जन ही अंतिम उपाय बचता है।
जब आपको जकड़ दिया जाये जंजीरों से
तो आपके मन में ललक उठती है कि अब विध्वंस ही हो जाये।
ईश्वर और माओ ठीक ही तो कहते थे: युद्ध में फौजों की भूमिका बेहद अहम होती है
पर लड़ाइयाँ सिर्फ उनके बलबूते नहीं जीती जा सकतीं…
सबसे निर्णायक होते है आदमी
फौजें कतई नहीं।
आखिरी विजय या आखिरी पराजय की बात क्यों करते हो
इनमें से किसी का भी वास्तविक वजूद नहीं है।
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खुद से ही एक अरब होने के नाते
ऐसे जुमले मैं वाल स्ट्रीट पर बार बार दुहराता रहता हूँ
जहाँ बल खाती हुई सोने की नदियाँ जाकर मिल जाती हैं
अपने उदगम से।
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गर्द और कूड़े के ढेर से निर्मित
इम्पायर स्टेट
गंधा रहा है इतिहास की सड़ांध से …
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हम एक कालिख भरे उलटपुलट के दौर में जी रहे हैं
और हमारे फेफड़ों में प्रवाहित हो रही है
इतिहास की गहराईयों से निकल कर आती हुई प्राणवायु।
हम अपनी निगाहें उठाते हैं आकाश की ओर
पर ऑंखें फूटी हुई हैं
और खुद को कब्रों में घुसा कर ओझल हो जाना चाहते हैं
जिस से बच जाये और नाउम्मीदी और हताशा।
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सुबह सुबह मैं चौंक के जगता हूँ, चीख पड़ता हूँ
निक्सन,आज तुमने कितने बच्चे हलाल किये?
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पैगम्बर जैसे सवाल पूछने के लिए बड़ा जिगर चाहिए॥
क्या मैं यह भविष्यवाणी कर दूँ
कि अब आँखें नहीं माथा अंधा हुआ करेगा। ॥
कि अब जुबान नहीं बल्कि शब्द निष्प्राण और बाँझ हुआ करेंगे।
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एक घड़ी घंटी बजा कर बताती है समय
दूसरी तरफ पूरब से आती है एक चिट्ठी
किसी बच्चे के रक्त से लिखी…
मैं इसको तब तक निगाहें गडा कर पढता रहता हूँ
जब तक बच्चे की गुडिया बन नहीं जाती गोला बारूद या रायफल …
***
व्हीटमैन, अब हमारी बारी आने दो
हम दोनों अपनी समझ से निर्मित करें नयी सीढियाँ
एक साझा बिछौना बुनें अपने कदमों की मार्फ़त…
या हम सबकुछ धीरज धर कर देखते रहें?
आदमी एकदिन मर जाता है
पर बची रहती हैं उसकी धरोहर
अब हमारी बारी आने दो..
आओ हम बन जाते हैं आज कातिल..
और वक्त हमारे साझेपन के दरिया के ऊपर तैरता रहे:
न्यूयार्क से न्यूयार्क जोड़ दो
तो बन जाता है शवदाह
न्यूयार्क में से न्यूयार्क निकाल दो
तो उग आता है सूरज।
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और कितने शहर न्यूयॉर्क बनने को तड़प रहे हैं।
अश्वार साब कि गहरे भावो वाली कविताए पढवाने के लिए शुक्रिया !
सादर !