अनुनाद

रीसम हेले- चयन और प्रस्तुति: यादवेन्द्र

रीसम हेले अफ़्रीकी देश इरीट्रिया के सबसे लोकप्रिय कवि हैं — उनकी लोकप्रियता कविताओं की विषय वस्तु और लोक संस्कारों में रची बसी शैली के कारण तो है ही..इस लिए सबसे ज्यादा है कि बीस बरस दुनिया के तमाम देशों में घूमने और रहने वाले हेले ने 1994 में नवस्वतन्त्र देश इरीट्रिया लौट कर कवितायेँ लिखने के लिए अंग्रेजी जैसी भाषा नहीं चुनी बल्कि करीब पाँच हजार साल पुरानी और लिखित साहित्य के दायरे में लगभग मृतप्राय टिग्रिन्या भाषा चुनी.पिछले कुछ सालों में प्रकाशित उनके दो  भाषाओँ के कविता संकलन बेहद लोकप्रिय हैं. यहाँ प्रस्तुत हैं हेले की कुछ कवितायेँ
तुम्हारी बहन
बेटी बहन
तुम्हारी अपनी प्यारी सी बेटी
तुम्हारी माँ की बेटी
उसकी बहन की और भाई की बेटी
तुम्हारे पिता की बेटी
उनकी बहन और भाई की बेटी
तुम्हारे भाई और बहन की बेटी
तुम्हारे बुजुर्ग भाई की बेटी
तुम्हारी बुजुर्ग बहन की बेटी
चाहे कोई भी स्त्री हो
इस शहर की बेटी
तुम्हारे पड़ोस की बेटी
तुम्हारे मुल्क की
बेटी और बहन
तुम्हारी खुद की बहन
तुम्हारी खुद की बेटी
तुम्हारी नानी दादी और माँ
तुम्हारी मंगेतर और तुम्हारी पत्नी
एक एक अदद बेटी
अंग और अंश है तुम्हारा
चाहे खुद की प्यारी बेटी हो
बहन की बहन या उसकी भी बहन हो
इज्जत करो
इन सब के
एक एक के हक़ की .
***
विदेशी मदद
माँगो!
मैं दे रहा हूँ!
माँगो!
मैं और ज्यादा दे रहा हूँ!
इतना कुछ देने के बाद भी तुम
मुझे क्यों अपमानित करते हो?
इसलिए कि तुम
मुझे माँगने के लिए उकसाते हो.
***
कुत्ते की दुम
“मैं ज्यादा अच्छे ढंग से नाचता हूँ”
अपनी दुम से कुत्ते ने कहा:
“चलो हम मुकाबला करते हैं”.
जब बहुत थक गया तो
कुत्ते ने दुम को कुतर डाला..
पैरों से रौंद कर मिट्टी में
चलता बना वहाँ से
और जाते जाते गुर्राते हुए बोला:
“बदतमीज…ढंग से पेश आया करो “.
***
प्यार से प्यार के लिए
दिन के उजाले में प्यार
मेरे प्यारे
चमकता है जैसे चमके सूरज…
मैं तो इसकी आँच में जलकर
पतीले की तली जैसा कालाकलूटा हो जाऊंगा
या बाल्टी भर पसीना बहाता हुआ
चक्कर खा कर गिर ही पड़ूंगा…
पर फ़िक्र काहे की?
मेरी प्रियतमा
दमक रही है सूरज की मानिंद.
गिरती है और लिपट जाती है मेरे बदन पर
और साँस लेने लगती है मेरी आत्मा की गहराई में पैठ कर
कितना भला लगता है
जब वो हौले हौले सुलगाती है
अपने प्यार की लौ से मेरा प्यार
जैसे तीली छुआ कर धू धू कर जला दे
कोई सूखी लकड़ी.
***
ज्ञान
सबसे पहले धरती, इसके बाद हल:
इस तरह ज्ञान आता है अंदर से
निकल कर ज्ञान से.
हम इस बात को जानते हैं
नहीं भी जानते हैं इसको .
हम ये भी नहीं जानते कि हमें इसका ज्ञान है.
हम यही जानते हैं कि हम इस बाबत कुछ नहीं जानते .
हम सोचा करते हैं
कि एक वस्तु बिलकुल दूसरे जैसी दिख रही है…
यह नींबू ..वह संतरा ..
पर तभी तक जब तक हम
स्वाद नहीं चखते कसैलेपन का .
***
मानो या  न मानो
याद करो कि इटालियन लोगों ने हमपर हमले किये
और हमें सिखाया :
खाना खा लो पर मुँह मत खोलो .
अंग्रेजों के हमलों का स्मरण करो
जिन्होंने सिखाया :
जो बोलना हो बोल लो पर
खाना मत खाना .
अम्हाराओं के हमले याद करो
जिन्होंने बताया ;
ना तो मुँह खोलो ..और
खाना भी मत खाओ .
मेरा कहा मानों या मत मानों ..
ये सब हमें नष्ट करना चाहते थे .
***
अपनी भाषा
तुम टिग्रिन्या के बारे में क्या जानते हो ?
यह इरीट्रिया की बेटी है
और सम्मान चाहती है
जैसे तुम चाहते हो अपने लिए इज्जत
इसको चुनौती दोगे
तो यह भी तुम्हें देगी
उसी तरह ललकार .
इसको बखूबी मालूम है
संकट से सुरक्षा की तरकीब
कि कैसे जीवित रहना और उबरना है
हमलावर भाषाओँ से बच कर;
उनके शब्द …उनके नाम
करना पड़ेगा इनका एक एक कर संहार …
***

0 thoughts on “रीसम हेले- चयन और प्रस्तुति: यादवेन्द्र”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top