मेरा पालतू कुत्ता
जो पहले चिडि़यों को हैरत से तका करता और भौंकता था
घात लगाने लगा है आजकल उनपर
छोटे पिल्ले से जवान होते हुए
उसमें खेलने की बजाए खाने की हसरत जागने लगी है
बेटा कुछ और बड़ा हुआ
मेरे कंधे तक आने लगा है
खेल में वह लेग स्पिनर हो गया है स्कूल टीम का
संगीत में बजाने लगा है तबला तीन क़ायदों के साथ
वाचालता में वक्ता हो गया है
वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में ज़ोर-आजमाइश करता हुआ
आजकल उसकी किताबें कुछ और कठिन हुई हैं
एल सी एम एच सी एफ
फ्यूचर कंटीन्यूीअस टेंस
ओरिजन ऑफ यूनीवर्स वगैरह होती हुई
अभी वह पांचवी में है
पर मैं बारहवीं के बारे में सोचने लगा हूं आजकल
मेरी नौकरी की जगह भी भरने लगी है
नवनियुक्त प्राध्यापकों से
पुराने रौबीले चेहरे प्रोफेसरों के मूंछदार
कड़क आवाज़ वाले नहीं दिखते आजकल
शिरीष कहकर बुलाने वाले कुछ ही बचे हैं
सर कहकर बुलाया जाने लगा है अब मुझे
शायद कनपटी पर दो-चार सफ़ेद हो चले बालों के कारण
पर मूंछें उतनी रोबीली नहीं मेरी
और न ही आवाज़ उतनी कड़कदार
घर में पत्नी़ आधी ख़ुश
आधी उदास
अपनी गृहस्थी़ की सफलता में उसने
अख़बार तक पढ़ना छोड़ दिया है आजकल
मैं ख़ुद भी हथेली पर तम्बाकू-चूना घिसने के बजाए
निकोटिन की मेडिकेटेड च्यूइंगम चबाने लगा हूं
भीषण है यह शब्द – आजकल
भाषा में
बहुत स्थानिक इसका प्रवाह
मुझे लाता -ले जाता हुआ
इसका ठहराव
किसी बम के फटने या गोली चलने से ठीक पहले जैसा
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कविता के ही शब्दों में, "भीषण है यह..", और ''भाषा में बहुत स्थानिक'' बहुत वैश्विक ''इसका प्रभाव''. लेकिन इतना फ़िक्रमंद भी क्या होना? इतना नया भी तो है इस ''आजकल'' में – गौतम बाबू का तबला, तबले और गणित का बीजगणित, निकोटिन, लेग स्पिन, कंधे तक पहुँचता हुआ आपका आसन्न यौवन. फिर भी? कवि लोग भी न…
is aajkal ko yahin thaam diya jaye bandhu…..nahin to aage chal ke yah khunkhaar daitya ban jayega……apne samay se ru b ru karati khub imaandaar aur pardarshi kavita…
yadvendra
!!!!!!!!!!!!
कुछ अजीबो गरीब मगर निःसंदेह रोचक लेखन…
आज पहली बार देखा आपका ब्लॉग..
अच्छा लगा.
शुभकामनाएँ.
सचमुच आजकल,हमारे जमाने से ज्यादा भयावह है।
बहुत अच्छा ..
सर कहकर बुलाया जाने लगा है अब मुझे
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मैं खुद भी हथेली पर तम्बाकू चुना घिसने के बजाय