अनुनाद

मलय की दो कविताएं



रात में   

इस रात में
सितारों जैसे
हज़ार हज़ार लोगों से मिलता हूं
                 हिलता हूं अंदर तक
अपनी ज़मीन से
                 जड़ों में छन जाता हूं

रात में भी
सुबह जैसी यह सुगंध
लोगों के साथ दौड़ती है
बिजली की कौंध ज्‍यों
                         रास्‍ता रचती है
                      हमें हरा करती है
रचती है बड़ा करती है
सुबह होने के क़रीब
                           खड़ा करती है
                            बड़ा करती है
***

मशक्‍़क़   

मिनट मिनट की मशक्‍़क़त से
वेतन का सवेरा पाता हूं
और मंहगाई की रात में
न चाहकर भी
नंगा हो जाता हूं

ज़माना जिन्‍दगी को चीरकर
धज्जियों की सजावट में
मन लगाता है

मशक्‍़क़त की आंखें लाल हैं
रात को सो नहीं पाता
और इस दिन में भी
दिन
हो नहीं पाता
***

मलय
जन्‍म 19 नवम्‍बर 1929…. सहसन गांव, जबलपुर में।

प्रकाशित पुस्‍तकें
कविता संग्रह – हथेलियों का समुद्र, फैलती दरार में, शामिल होता हूं, अंधेरे दिन का सूर्य, निर्मुक्‍त अधूरा आख्‍यान(लम्‍बी कविता), लिखने का नक्षत्र।
कहानी संग्रह – खेत
आलोचना – व्‍यंग्‍य का सौंदर्यशास्‍त्र
परसाई रचनावली के सम्‍पादक मंडल के सदस्‍य।

सम्‍पर्क : टेलीग्राफ गेट नं. 4, कमला नेहरू नगर, जबलपुर(म.प्र.)
***
एम.एफ. हुसैन की पेंटिंग गूगल छवि से साभार

0 thoughts on “मलय की दो कविताएं”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top