अनुनाद

अनुनाद

पंखुरी सिन्‍हा की कविताएं


बातों का पुलिंदा
सब सच नहीं है,
अभिलेखागार के कागजों में,
प्रमाण सिर्फ कागज़ का होना है,
उसकी बातों का सच नहीं,
हज़ार चिट्ठियां हैं,
अँगरेज़ साहब की,
लाट साहब को लिखी हुई,
मुनाफे की कहीं कोई बात नहीं,
बेकार हैं मेरी सांझ और सुबहें,
ख़ाक छानते इन चिट्ठियों की,
केवल धूल है,
इन अक्षरों में,
या सच कहे बगैर,
बात कहते जाने की कला,
सच को छिपाने का कौशल दर्ज है,
इन चिट्ठियों में।
*** 

पिछले साल के वादे
पिछले साल के नहीं,
चार साल पहले के,
कि बत्ती आएगी उस कस्बे में,
आई भी,
पर इतनी महंगी,
कि खरीदी जा सके,
जलाया जा सके,
बिजली का एक बल्ब,
खुद के खरीदे पैसों से।
***

लोक धारणाएं
कहीं दर्ज नहीं,
बस, धारणाएं उनकी,
रवाएतें, अपेक्षाएं,
कि कैसे रहे हम,
और कहाँ भी रहे हम,
क्या कहें,
क्या कहें,
इन धारणाओं से बाहर का कहना,
गलत जगह पर,
गलत बात का कहना होगा,
इन धारणाओं से बाहर का रहना,
गलत ढंग से रहना होगा,
तय है सब सही और गलत,
इंच भर भी मतभेद नहीं,
सभी जेष्ठ, श्रेष्ठ हैं, निर्णायक मंडल,
पितृ सत्ता से भी ज्यादा पैनी मातृ सत्ता,
पुरुष नहीं है प्रेमी,
पुरुष अधिकारी है,
क्या सभ्यता का संकट है कोई?
जिन मूल्यों को बचाने का युद्ध है,
वो आखिर क्या हैं?
***

टूट जाएँ तार जैसे
टूट गया हो मन से शरीर का नाता जैसे,
अगवा किसी वेश्या की तरह नहीं,
बुढ़ापे के पैरालिटिक स्ट्रोक की तरह नहीं,
गोली लगने से हुए स्ट्रोक की तरह नहीं,
गोली मरवा कर मरवा देने की तरह नहीं,
किसी कार दुर्घटना द्वारा लकवा ग्रस्त बना दिए जाने की तरह नहीं,
उस लड़की की तरह भी नहीं,
जो एक लम्बे समय से देख रही थी,
दवा की भी, और किराने की दुकान में भी,
कुछ वशीभूत सी,
ब्लेड के पैकेट,
बस देखने में उसे, देर तक, पाती निजात,
उन अदृश्य ताक़तों की गिरफ्त से,
कसती जाती थी, पकड़ जिनकी,
और निकल नहीं पा रही थी,
जिनके चंगुल से वह,
और सोच भी रही थी,
अपनी नब्ज़ काटने को,
ऐसे नहीं, तारों का टूटना,
किसी बौद्धिक गुलामी की तरह भी नहीं,
या उसके अचानक एहसास की तरह,
बस इस तरह कि अरसे से हम कह रहे हों,
बातें,
अपनी आवाज़ में किसी और की,
आतताइओं की,
बस, कि अरसे से हम कह रहे हों,
बातें,
अपनी आवाज़ में कहवाई गयीं।
*** 


अवगत

बस एक दिन अवगत होना,
इस बात से,
कि या तो हम देख नहीं पा रहे,
उससे परे,
जो हमें दिखाया जा रहा है,
या जो विश्वास हैं,
हमारे,उससे परे,
या सुन नहीं पा रहे,
जो हमें सुनाया जा रहा है,
उससे परे,
या आवाज़ उसकी,
उस किसी की भी,
जो तलबगार है,
या अपनी भी,
या सिर्फ वक़्त की।
***


परिचय

पंखुरी सिन्हा
संपर्क– 510, 9100, बोनावेंचर ड्राइव, कैलगरी, SE, कैनाडा, T2J6S6
403-921-3438-सेल फ़ोन
जन्म -18 जून 1975
शिक्षा –एम , इतिहास, सनी बफैलो, 2008,
             पी जी डिप्लोमा, पत्रकारिता, S.I.J.C. पुणे, 1998
            बी , हानर्स, इतिहास, इन्द्रप्रस्थ कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, 1996
अध्यवसाय-BITV, और ‘The Pioneer’ में इंटर्नशिप, 1997-98,
               FTII में समाचार वाचन की ट्रेनिंग, 1997-98,
               राष्ट्रीय सहारा टीवी में पत्रकारिता, 1998—2000

प्रकाशनहंस, वागर्थ, पहल, नया ज्ञानोदय, कथादेश, कथाक्रम, वसुधा, साक्षात्कार, अभिव्यक्ति, जनज्वार, अक्षरौटी, युग ज़माना, बेला, समयमान, आदि पत्र पत्रिकाओं में, रचनायें, प्रकाशित,

किताबें – ‘कोई भी दिन‘ , कहानी संग्रह, ज्ञानपीठ, 2006
            ‘क़िस्साकोहिनूर‘, कहानी संग्रह, ज्ञानपीठ, 2008
            कविता संग्रहककहरा‘, शीघ्र प्रकाश्य,

पुरस्कारपहले कहानी संग्रह, ‘कोई भी दिन‘ , को 2007 का चित्रा कुमार शैलेश मटियानी सम्मान,
           -‘कोबरा: गॉड ऐट मर्सी‘, डाक्यूमेंट्री का स्क्रिप्ट लेखन, जिसे 1998-99 के यू जी सी, फिल्म  
               महोत्सव में, सर्व श्रेष्ठ फिल्म का खिताब मिला

           -‘एक नया मौन, एक नया उद्घोष‘, कविता पर,1995 का गिरिजा कुमार माथुर स्मृति पुरस्कार,
           
अनुवाद– कवितायेँ मराठी में अनूदित,
            कहानी संग्रह के मराठी अनुवाद का कार्य आरम्भ,
               उदयन वाजपेयी द्वारा रतन थियम के साक्षात्कार का अनुवाद,

सम्प्रतिडिअर सुज़ानाशीर्षक कविता संग्रह के साथ, अंग्रेज़ी तथा हिंदी में, कई कविता संग्रहों पर काम,
न्यू यॉर्क स्थित, व्हाइट पाइन प्रेस की 2013 कविता प्रतियोगिता के लिए, ‘प्रिजन टॉकीज़‘, शीर्षक पाण्डुलिपि प्रेषित,पत्रकारिता सम्बन्धी कई किताबों पर काम,माइग्रेशन और स्टूडेंट पॉलिटिक्स को लेकर, ‘ऑन एस्पियोनाज़’,एक किताब एक लाटरी स्कैम को लेकर, कैनाडा में स्पेनिश नाइजीरियन लाटरी स्कैम,
और एक किताब एकेडेमिया की इमीग्रेशन राजनीती को लेकर, ‘एकेडेमियाज़ वार ऑफ़ इमीग्रेशन’। 


0 thoughts on “पंखुरी सिन्‍हा की कविताएं”

  1. वर्तमान के सच को उकेरती हैं- पंखुरी सिन्हा की रचनायें
    बातों का पुलिंदा,टूट जायें तार जैसे,अवगत
    सहज कहन पर मन को टटोलती हुई
    सुंदर रचनाओं के लिये बधाई
    अनुनाद का आभार

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