अनुनाद

हिन्दी साहित्य, समाज एवं संस्कृति की ऑनलाइन त्रैमासिक पत्रिका

कमल जीत चौधरी की नई कविताएं

कमलजीत चौधरी
कमल जीत चौधरी मेरे लिए अग्निशेखर के बाद कविता में जम्‍मू की एक अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण किन्‍तु अलहदा आवाज़ है। हिन्‍दी में सीमान्‍तों की कविता जिस तरह से विकसित हो रही है, यह घटना आने वाले वक्‍़त में कविता का एक बड़ा प्रस्‍थान बिन्‍दु साबित होने वाली है। मैं अलग-अलग राज्‍यों से एक-एक नाम का ही कुछ अधूरा-सा उल्‍लेख करूं तो नरेश चन्‍द्रकर और केशव तिवारी जैसे अग्रजों से लेकर अजेय, विजय सिंह, प्रभात, नीलोत्‍पल, नित्‍यानन्‍द गायेन, मोनिका कुमार, विमलेश, नीलकमल, अनुज लुगुन, विजय गौड़-महेश पुनेठा आदि कई नाम एक साथ याद आ जाते हैं। इनमें नीलोत्‍पल ज्ञानपीठ से छपे संग्रह की और अनुज भारतभूषण अग्रवाल पुरस्‍कार की वजह से एक बार केन्‍द्र में आते हैं लेकिन फिर ख़ामोशी अपने ख़ास सीमान्‍त को चुन लेते हैं। इन सभी में कोई हड़बड़ी नहीं है। ग़नीमत है कि भौतिकी का घूर्णन नियम कविता में लागू नहीं होता और सीमान्‍त की यह कविता अपने विषय, लहजे और स्‍वभाव में कहीं से भी केन्‍द्र की ओर नहीं खिंचती।

कमल जीत चौधरी छोटी कविताएं लिखते हैं किन्‍तु अपनी विशिष्‍ट अर्थच्‍छायाओं से एक बड़ी जगह घेरते हैं। उनकी भाषा में जम्‍मू घाटी की ख़ुश्‍बू है लेकिन उनके विषय देश-देशान्‍तर की घटनाओं से एक विशेष सैद्धान्तिकी में प्रेरित होते हैं। यहां प्रकाशित कविताओं को देखें तो इनमें कोपेनहेगेन की बैठक को सफल बताता वनमहोत्‍सव मनाता लकड़हारा है, दादी की के हाथों से पोते के हाथों तक मिट्टी  को मिट्टी का दुश्‍मन बनाने के ग्‍लोबल षड़यंत्रों से घिरी घड़े की यात्रा है, लम्‍बे आदमी का क़द के बहाने सदी के महानायक के रूपक में निम्‍नमध्‍यवर्ग में पूंजी के बढ़ते प्रभाव की सुलझी हुई पड़ताल है। उत्‍तराखंड की हालिया त्रासदी में घिरा मैं प्रकृति के बेलगाम दोहन और पूंजीवादी विकास के ढांचे पर टिप्‍पणी करती कविता अश्‍वमेधी घोड़ा का मर्म बेहतर समझ पा रहा हूं। हड़ताली पोस्‍टर का साफ़ बयान और शेर कहां है का खुला रूपविधान – इन दो छोरों पर कमल जीत चौधरी का अपना शिल्‍प युवतर हिन्‍दी कविता में अलग से पहचाने जा सकता है। वे पहले भी अनुनाद पर छपे हैं। यहां उनका पुन: स्‍वागत और इन कविताओं के लिए आभार।

 शार्पनर 

 हम आँगन उठा लाए  हैं 
 घर की लॉबियों में 
 आकाश टांग-टूंग आए हैं
 बालकनियों में

 सावन को गैलरी में रखे
 चार-छह गमलों में  
 सूरज को मॉन्टी पर उगता छोड़ 
 पार्कों में घूमने से पहले 
 पैरों को कारों में भूल आए हैं 

 टेबुलों पर ग्लोब घुमाते
 मोबाइल-कंप्यूटर चलाते 
 पेंसिलों को छीलते-छिलाते –

 हम शार्पनर होते जा रहे हैं। 
 **** 


 अश्वमेधी घोड़ा 

 तुम्हे पेड़ से हवा नहीं 
 लकड़ी चाहिए 
 नदी से पानी नहीं 
 रेत चाहिए 
 धरती से अन्न नहीं 
 महँगा पत्थर चाहिए 

 पक्षी मछली और साँप को भूनकर
 घोंसले सीपी और बाम्बी पर 
 तुम अत्याधुनिक घर बना रहे हो 
 पेड़ नदी और पत्थर से 
 तुमने युद्ध छेड़ दिया है 
 पाताल धरती और अम्बर से ….

 तुम्हारा यह अश्वमेधी घोड़ा पानी कहाँ पीएगा !
 ****


 पहाड़ 

 पहाड़ झुके-झुके 
 चलते थे द्वापर में 
 पहाड़ झुके-झुके 
 चलते हैं कलियुग में
 पहाड़ धरती की पीठ पर कुब्जा हैं –

 कृष्ण कहाँ हैं।
 ****

 फ़र्क  – १ 

 बारिशें
 ख़ूब बरसीं 
 आँगनों का 
 फ़र्क किए बगैर –
 तुम ढूँढ़ते रहे 
 छत ओढ़कर 
 अपने हिस्से का भीगना !
 ***

 फ़र्क  – २ 

 बादल क्यों बरसे
 आँगनों का फ़र्क किए बगैर 
 वे जान क्यों नहीं पाए 
 तारे गिनती कच्ची छत का सौन्दर्यशास्त्र 
 छत ओढ़कर भीगने वालों से 
 कितना अलग है !
  ****

 घड़ा 

 मेरी मिट्टी की दादी 
 खरीदती थी 
 मिट्टी के आमदन से 
 मिट्टी  के भाव का 
 मिट्टी का घड़ा 
 घड़े पर ठनकती थी 
 दादी की उंगलियाँ ठन ठन ठन !!!
 घड़ा बोलता था –

 मैं पक्का हूँ।

 आज पे-कमीशनों की दुनिया में 
 मैं ढो रहा हूँ 
 ठण्डे ब्राण्डेड घड़े 
 बीच बाज़ार खड़े 

 ठनक मेरी उँगलियों में भी है 
 पर बोलने के लिए 
 मिट्टी का घड़ा नहीं है !

 जीवन के बाहर जाती  दादी
 घर में बचाकर रखे पुराने
 एकमात्र मिट्टी के घड़े को
 जीवन के बाहर ले जाना चाहती है 
 वह जानती है –

 आज अन्दर के जीवन
 और 
 जीवन के अन्दर 
 मिट्टी को मिट्टी का दुश्मन बनाया जा रहा  है। 
  ****

 अमेरिका 

 कोपेनहेगन की बैठक 
 सफल बता रहा है –

 लकड़हारा वनमहोत्सव बना रहा है।
 ****

 हड़ताली पोस्टर 

 कैसे मानूं कायनात है 
 स्याह काली रात है 
 कील जड़े बूटों में 
 खून हमारी जात है 
 चौक नहीं यह श्‍मशान है 
 सकते में मेरी जान है
 गोलियों का अभ्यास है 
 यह काया उनकी घात है 
 दिल्ली दिल्ली दिल्ली 
 यह भी कोई बात है 

 कैसे मानूं कायनात है ….
 ****

 शेर कहाँ हैं 

 काले चश्मे पहने 
 कुर्सियों पर बैठे 
 सियार शेर के लिबास में हैं 
 सलाहकार लोमड़ियाँ अपने कयास में हैं 

 भरे हुए तालाब में मछलियाँ मर रही हैं
 हरी टहनियों पर फ़ाख्‍़ताएँ सूख रही हैं 
 दो तरफ़ा रेंगते केंचुए चुप हैं 
 हिरन चौकड़ी भरने में खुश हैं 
 दिन में धूप सेंकते गीदड़ रात में ठण्डाते रोते हैं 
 पीठ थपथपाते ही कुत्ते भौंकते हैं .

 सूंड़ हवा में लहरा 
 हाथी यह भांपने के प्रयास में हैं –

 जंगल तो यही है
 ये शेर कहाँ हैं!
 ****

  लम्बे आदमी का कद
 
  सुबह और शाम की लम्बी
  परछाईयों के साथ
  एक लम्बा आदमी
  पैर तिजोरी में छोड़
  लम्बे होने की
  नई परिभाषा गढ़ता
  एक टेलीविजन शो में
  हॉट सीट घुमाता
  कोटि – कोटि प्रणाम पाता
  एक आदमी को करोड़पति बना रहा है
  मीट्ठी आंच पर
  खाली कढ़ाही में कड़छी घुमा रहा है
  मेरी थाली से रोटी चुरा रहा है …
  उसे घड़ियाँ बेहद पसन्द हैं
  वह घड़ियों से समय नहीं
  समय से घड़ियों को देखता है
  मुट्ठी पर मुट्ठी रखे अंगूठे काटता है
  लम्बा आदमी सदी का महानायक कहलाता है  
  देश के सबसे अमीर भगवान को भेंट चढ़ाता है
  भगवान उस पर खुश रहता है
  अपनी जन्मतिथि भूल गए लोग
  उसका जन्मदिन मनाते हैं
  एक दूसरे की ईंटें चुराकर
  उसका मन्दिर बनाते हैं
  सरकार उसका डाक टिकट जारी करती है
  वह फिल्म में
  अन्यायी ठाकुर के जुल्म से टकराता है
  जीवन में एक ठाकरे से डरता है
  वह अपनी मिट्टी के हक़ में नहीं बोलता
  जबकि वह जानता है
  उसकी मिट्टी से हर कोई
  बर्तन तो मांझना चाहता है
  पर उस पर पेड़ कोई नहीं लगाना चाहता
  जिस वक़्त दायाँ हाथ जेब में डाले
  महानायक अपनी लम्बाई पर डोल रहा है
  कैमरे के सामने अग्निपथ – अग्निपथ बोल रहा है
  उसी वक़्त एक दोपहर का सूरज
  उसकी सुबह और शाम को छोटा करता
  अपनी पूरी उर्जा के साथ
  रश्मियों को कसता
  तनकर खड़ा हो गया है
  उसके सर के ऊपर नोकदार तम्बू सा
  यह दोपहर का सूरज
  यह जनसड़क का सूरज
  उसे जला नहीं रहा
  बस बता रहा है –
  देखो सदी के सबसे लम्बे नायक
  तुम्हारा कद
  तुम्हारे जूते से बड़ा नहीं है।
  ****
 
 सम्पर्क : –
 कमल जीत चौधरी 
 गाँव व डाक – काली बड़ी 
 तहसील व जिला – साम्बा { १८४१२१ }
 ई मेल – kamal.j.choudhary@gmail.com 
 दूरभाष – 09419274403


  

0 thoughts on “कमल जीत चौधरी की नई कविताएं”

  1. Apne jeevan mei imandari, sachhai or haq ke baat thok ker kehna our kender ki pervah kiye begar hashiye per chalna tumare shabdoe ko kavita bna deta hai…mere dost…chote bhai..aise hi age jao our apni baat kho…alama iqbal ne kha ki allah ke sheroin ko kabhi chehra chupane ke nobet nahi aati…baki rha krishan vo to tumare saath he hai

  2. कमलजीत जी की कविताएँ हाल ही में मैंने स्वर -एकादश में भी पढ़ीं , अच्छा लगा . यहाँ फिर उनकी कविताएँ पढ़कर अच्छा लगा . कवि मित्र को बहुत -बहुत बधाई . अनुनाद पर इन्हें प्रस्तुत करने के लिए आपका आभार .
    -नित्यानंद गायेन

  3. कमलजीत चौधरी अपनी गंभीर सृजनशीलता से समकालीन युवा और युवतर हिंदी कवियों के बीच नोटिस में आने लग गए हैं।एक बहुत बड़ी आश्वस्ति है पूरे देश में अलग -अलग स्थानों पर सक्रिय हिंदी जगत के ये ज़िम्मेदार नागरिक और इनमें जम्मू निवासी होनहार युवतर कवि कमलजीत का तेज़ी से स्थान बनाना मेरी अतिरिक्त प्रसन्नता का कारण है।

  4. कमलजीत की कविता अपने राजनैतिक तेवरों केआर कारण बहुत मानीखेज हो जाती है, ज़रूरी भी

  5. kamaljeet Ki Kavita Ka Swar Atyant Sdha Aur Anunaad-May Hai. Tewar Bhari Vaicharikta Ka Uchit Anupat In Kavitaon Ko Rachna Ki Kasauti Pr Khra Sabit Krne K Liye Pryaptt Hai. Kamaljeet Bhai Ko Badhai. Shirish Bhai Ki Tippadi Bhi Mahattavpurn Hai. Punah Badhai.

  6. What a surprise !U r a poet also !Great . After reading dese poem I can say I have a best friend wid saluteable emotions n feelings . thanks a lot my dear.
    *Diskit Angmo*

  7. Kamal Jee aapke atirikt maine shyad syllabuss ki poetry hi padi hai wo bhi matric tak.lekin aapki ye rachnain padkar apni botany me dooba kuch aur sochne ko majbur ho gaya hu. Bahut hi acchha dil paya hai aapne. Congratulation . keep going .
    – prof. Yash paul.

  8. Ekdam alag svabhavik andaz vibhin rangon me . sampreshneey aur prasangik. Aapko aur Shirish jee ko hardik Dhanyavad. – Naresh Khajuria { J & K }

  9. kamaljeet choudhary ji aapko bahut bahut mubarakh ho aapki kavitain phir se anunaad m shapi h…, sir apney samkalin yuva kavioo aur hindi kavitao m aapni vishishat pehchan bna li h…, aapki kavitoo ko pedkar prerna milti aur humari soi hui chetna ko jkjorti h… meray leay khushi ki baat yeh h ki humare jammu aur kashmir se bhi bahut achey kavi nikal rhe h…..muje asha h ki aney baley smey m kamaljeet ji sahitya k itihas m aapni vishishat shaap shodeygey …., aapki sabi kavitain bahut achi h sir ek baar phir se mubarakh ho…….,.,.

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