स्त्री संसार पुरुष कवियों की कविता में आता है तो अभिव्यक्ति में अपने साथ कई जोखिम लाता है, ऐसे ही जोखिमों का सफलता से सामना करते हुए कई अर्थच्छायाओं के बीच अपनी ख़ास आकृति रचती है मृत्युंजय की यहां दी जा रही कविता। दुनिया और अपनी देह पर लगे घावों को सिलने चली कुशल जर्राह संगतिनों के सधे क़दमों की आहट देती इस कविता और इसे हम तक पहुंचाने के लिए मृत्युंजय का स्वागत।
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पतली ब्लेड जैसी छुरी से
मन है कटा
लहू के पहले, भयानक सफेदी से
भरा
भरा
यह आत्मलोचन का समय
अनचक खड़े हैं रक्त के कण
घर से इस औचक निष्कासन पर
सर्वग्रासी जाल फैला जा रहा है दर्द का
परस्पर एक-दूजे को संदेशा भेजते
हर एक मन को खबर करते
मसानी खामोशी को मथ रहे
हैं, चींटियों के झुंड व्याकुल
इसी क्षण के दृश्य टुकड़े
चतुर्दिक बिखरे हुए
फैला हुआ पैनोरमा
समय की पीठ पर हैं दर्द के से नीलगूँ
बहुल शाखा वृक्ष दु:ख के
इस नील वन में हिंस्र पशु हैं
नुकीले तेज पंजे
और दांतों की भयानक वक्रता है
पिताओं की पुरानी क्रूरतायें
आधुनिकता से गले मिलतीं
कि जैसे किसी प्राक्तन वृक्ष पर चढ़ती अमरबेली
‘रकत क आँस, मांस कै लेई’
से बनी हैं भव्य वे अट्टालिकाएँ
जितने आज तक के प्रगति और विकास सब हैं
रचे जाते रहे हैं हड्डियों की नींव पर
हिंस्र पशुओं से भरे वे नील वन
घर की दरारों में व्यवस्थित
लपलपाती शाख, पत्ते ब्लेड जैसे
चीर देते खाल
चीर देते खाल
सो परिवार के ऊंचे दरख्तों से लटकते ही रहे सब ख्वाब
आँगन में चुनी जाती रहीं कब्रें, बजती रही सांकल
समय का रथ सजीला हाँकते हैं
धनी-मानी मनु के बेटे
पट्टी आँख पर रोपे हुए
टट्टर की संधों से सटे हैं कान
कैद कर दी गई वह
अपने बदन में
पृथ्वी से प्रकृति से और बहनों से नहीं मिलने दिया जाता
भाषा कीलित की गई है
शक्ति औ’ संपत्ति से
उनके तईं ताकत भरी गई
युगों के बरबर-पने की मूर्तियाँ है शब्द
उन्हीं से लिखी जाती रही है अपहृत लाड़ली की कथा
हकीकत की कड़ी चट्टान पर अपमान के हैं सींखचे
गर्दन हाथ पैरों में खड़ी बेड़ी मशक्कत कर रही है
भरा दिल है
और आँखें चुप्प के पीछे भभकती आग में
छटपटाती मछलियां
बुर्के सरीखी
रात काली दे रही पहरा
लिए पंजे नुकीले
चाँद-तारे मढ़े, देवरों-पतियों-पिताओं
ने खींच दी रेखा
ने खींच दी रेखा
दम घुट रहा है
हवा की गठियल अंगुलियाँ गले पर
खड़ा है उस पार अनेकों राष्ट्र-शीशों का नया रावण
छिन्नमस्ता हो, बढ़ी आओ, यही है शर्त उसकी
डाल गलबहियाँ बुलाते, मुसकुराते
राम-लक्ष्मण
राम-लक्ष्मण
तो हजारों बरस की हत्या-प्रथाएँ
यों नवीकृत हो रही हैं
सामराजों की ढली बेला
नए साधन जुगाड़े जा रहे
चरम बर्बरता मनोरंजन बनी जाती
अनोखे आर्यव्रत में चीख
उठती, गूँजती किलकारियाँ
उठती, गूँजती किलकारियाँ
वहशी दुनिया-गाँव का मुखिया, दलाल
उसके खनकते डॉलरों में खेलते हैं
हेड-हंटिंग का पुराना खेल
प्रेत-लीला चल रही है
धान के खेतों तलक पसरी हुई
छांह गड़ती है नवेले भूतपतियों-भूमिपतियों की
गर्दन टूटती है
ईंट के रंदे बढ़े जाते सिरों पर
अंगुलियाँ पैर की हैं काँपती
कस कर पकड़तीं सखी धरती को
धधकती आग के मैदान हैं वे खेत भट्ठे कारखाने
जिनको तैरकर घर तक पहुंचना
सही साबुत असंभव है
काठ की यह देह
जलती सुलगती है रोज
और घर, खामोश दिखता बहुत गहरा एक दरिया
जिसके तली में हैं काँच के टुकड़े
नुकीले गर्दन में बंधा पत्थर
हर क्षण डूबती है देह एक-इक
सांस की खातिर
सांस की खातिर
पूरा ज़ोर हिम्मत और आशा
सब लगा होता यहाँ है दांव पर
जीभें काट ली जातीं यहाँ पर
सदा से यह है रवायत
जंगलों के हरेपन में, खदानों
में
में
पहाड़ों की बर्फ
और नदी घाटी हर कहीं पर
फौज-फाटा, पुलिस पी ए सी अंगरेज़ हाकिम के नए वंशज,
भूरे साहबों के काठ-पुतले
देह में वे गाड़ देते राष्ट्र का झण्डा
खिलखिलाते, अधमरी पृथ्वी कुचलते मार्च करते
क्रूरता की आधुनिक वहशी ऋचाएं बद रहे हैं
गगनचुंबी नये महलों में अनवरत
हो रहे अनुवाद इनके
हो रहे अनुवाद इनके
अंगरेजी में, जिसमें लिखा जाना
अंततः है शक्ति का पुरुषार्थ
अंततः है शक्ति का पुरुषार्थ
सुनहिल अक्षरों में
चरम अनुकूलनों का दौर भयकर
सत्ता और संस्कृति की विराट मशीनरी
देह की घिर्री बना सृजित करती नई
परिभाषा सुख की मुक्ति की आज़ाद मन की
मनस पर प्रेतबाधा सी घुमड़ती
देह रंगती
मानिंद गोश्त के सौंदर्य की कीमत नियत करती
अपने से अलग की गई वह मैत्रेयी
हजारों साल के इतिहास के
पत्थर तले
पत्थर तले
कुचला गया, आत्म उसका
पितृसत्ता और पूंजी के द्विविध पंजे फंसी
है छटपटाती
लहू बहने के ठीक पहले
यहीं बिखरा हुआ है
तीक्ष्ण चाकू से कटा वह समय
इसी क्षण की
छटपटाहट
गूँजती है एक नारे में
पिघल कर, कैदखाने फांद सारे, सड़क पर
जोड़ कांधा, बढ़ रहा दल गाँव-कस्बों ओर
जहां से आएंगीं वे
बसूला,धागा-सुई ले
कुशल जर्राह संगतिन वे
सधे कदमों बंधी मुट्ठी
अद्भुत मसृणता गति भरी दुनिया
और मन को छीलने करने बराबर
समय के जख्म सीने,
हड्डियों में प्राण भरने
देश-दुनिया को नया करने।
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चित्र गूगल इमेज से साभार