यहां
आशीष नैथानी की तीन कविताएं दी जा रही हैं। वे हैदराबाद में साफ़्टवेयर इंजीनियर हैं
और हिंदी से बाहर के अनुशासन से कविता में आने वाले इन कवियों को मैं हमेशा उत्सुकता
और उम्मीद से देखता हूं। दिखता है आशीष में सहज ही चले आ रहे साधारण-से रूपकों को अचानक लक्ष्य तक पहुंचाने देने की ख़ासी सम्भावना है। आशीष नैथानी का एक संग्रह भी प्रकाशित है, हैदराबाद में जिसके लोकार्पण की कुछ रपट नेट पर मुझे दिखी हैं। मनुष्यता के पक्ष में एक सही राजनीतिक विचार के साथ वे अपनी रचना-यात्रा आगे बढ़ाएं – इस उम्मीद और शुभकामना के साथ अनुनाद पर कवि का स्वागत है।
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शिलान्यास
फिर
एक नेताजी कर गए शिलान्यास;
करोड़ों
की डील,
लाखों
का विमोचन,
अब
कोई सड़क बनेगी
या
कोई पुल
या
बिछेगी रेल की पटरी
कागजों
पर |
फिर
कागज़ दफ़्न हो जायेंगे फाइलों में,
फाइलें
अलमारियों में,
अलमारियाँ
दीवारों में |
गाँव
के बच्चे पैदल ही जायेंगे स्कूल,
महिलाएँ
काटेंगी घास उम्रभर
और
पुरुष पत्थर तोड़ेंगे,
बूढ़े
बीमारी से दम |
और
वो कागज़
जो
अलमारियों में सुरक्षित हैं,
जिन
पर बनी हैं सड़कें,
दीमक
सफ़र करेंगी उन पर
इधर
से उधर
नई
काली डामर युक्त सड़कों का
जायका
लेते हुए |
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मँहगाई
मँहगाई
का अहसास
उस
दिन से हुआ
जब
माचिस की डिबिया पर
‘सील‘ लगनी बंद हो गई,
और
कम हो गई
तीलियों
की सँख्या भी |
ये
ईमानदारी से विमुखता का
एक
सोपान भर था |
फिर
ये दुर्घटना
हर
व्यवसाय,
हर
उत्पाद और
हर
व्यवस्था में हुई |
और
जारी है… |
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फीकापन
एक
लम्बी रात
जो
गुजरती है तुम्हारे ख्वाब में,
तुम्हें
निहारते हुए
बतियाते
हुए
किस्से
सुनते-सुनाते हुए ।
और
जब ये रात ख़त्म होती है,
सूरज
की किरणें
मेरे
कमरे में बने रोशनदानों से
झाँकने
लगती हैं,
मेरी
नींद टूट जाती है तब ।
तुम्हारे
ख्वाब के बाद
नींद
का इस तरह टूट जाना,
महसूस
होता है गोया
कि
जायकेदार खीर खाने के बाद
कर
दिया हो कुल्ला,
और
मुँह में शेष रह गया हो
महज
फीकापन ।
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इस स्तभ के लिए एक अनुरोध
(अनुनाद
पर प्रकाशन के लिए बिलकुल नए कवियों की कविताएं मुझे मिलती हैं। यदि उनमें कुछ सम्भावना
है तो मेरा दायित्व बन जाता है, उन्हें साझा करने
का। फेसबुक ने कई नई सम्भावनाओं को अनुनाद तक पहुंचने ही राह दी है। अब इन नए कवियों
की कविताएं ‘नया’ लेबल के तहत अनुनाद पर दिखेंगी। मैं प्रकाशित किए जा रहे कवि की इतनी छानबीन करना
ज़रूरी समझता हूं कि कहीं वो राजनीतिक रूप से फासिस्ट ताक़तों के पक्ष में तो नहीं।
बाक़ी मैं इस उम्मीद पर छोड़ता हूं कि आगे की उम्रों की कविता और विचार दोनों सही
दिशा में विकास करेंगे। अनुनाद के पाठकों से भी निवेदन है कि यदि फेसबुक या किसी
और स्त्रोत से आपको पता लगे कि अनुनाद पर प्रकाशित कोई लेखक समाजविरोधी तथा किसी साम्प्रदायिक
विचारधारा का है तो मुझे सूचित करने की कृपा करें।)
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आशीष एक होनहार युवा कवि हैं,इनकी ज्यादातर कविताये मैंने पढ़ीं है
ये तीनों कविताये भी बहुत सुंदर हैं ,शब्दों का चयन बख़ूबी किया गया है ,
हिन्दी कबिता मैं इनका रुझान देख् कर बहुत खुशी होती है ,ये मेरे पसंदीदा काबी हैं
मेरी शुभ कामना इनके साथ है