कैसा प्रेम
स्त्री ने पूछा,
कैसा प्रेम?
पुरुष ने कहा,
किसान सा!
शिकारी सा नहीं,
बेरहमी से जो ख़त्म करते हैं,
अपनी चाहत को.
किसान,
सहलाता है मिटटी को,
हाथो-पांवों से धीरे-धीरे…
मेहनत में चोरी नहीं,
आँखों में फल की मीठी प्यास,
असीम धीरज, सुखद आस,
***
तृप्त हैं
!!!
कभी-कभी,
लगता हैं यूँ,
पेड़ पर बैठी बुलबुल..
गर्दन हिलाती इधर-उधर , ऊपर-नीचे…
मानों कोई बच्चा तारें हिला रहा हो.
कोयल बोली जा रही है जैसे…
चला दी हो किसी ने टेप.
यूँ ही,
हथौड़ा मारता लोहार,
पानी निकालता किसान,
वर्क बनाता आदमी,
ट्रेन से निकलती भीड़,
मेरा-तुम्हारा प्रेम,
ऐसे हैं, जैसे..
सब के धागे, सबकी नियति,
धर दिए गए हैं,
किसी न किसी के हाथ में,
और हम,
अपने एकरस जीवन के,
अबाध गति की जड़ता से तृप्त हैं.
कभी-कभी,
लगता हैं यूँ,
पेड़ पर बैठी बुलबुल..
गर्दन हिलाती इधर-उधर , ऊपर-नीचे…
मानों कोई बच्चा तारें हिला रहा हो.
कोयल बोली जा रही है जैसे…
चला दी हो किसी ने टेप.
यूँ ही,
हथौड़ा मारता लोहार,
पानी निकालता किसान,
वर्क बनाता आदमी,
ट्रेन से निकलती भीड़,
मेरा-तुम्हारा प्रेम,
ऐसे हैं, जैसे..
सब के धागे, सबकी नियति,
धर दिए गए हैं,
किसी न किसी के हाथ में,
और हम,
अपने एकरस जीवन के,
अबाध गति की जड़ता से तृप्त हैं.
***
आप
चाहें,
तो
सराय कह सकते हैं.
रिश्तों में यह फटन,
मलहम की तलाश में गुज़ारते ज़िन्दगी,
दरारें भरने
को…
वक्त का चूना हर
बार कम पड़ जाता.
रिश्तों में नौकरी
करते-करते…
बना चुके हैं 4 /4 के केबिन.
तुम्हारा तुम
होना,
और मेरा मैं…
सुखद अनुभूति है,
पर जिस्मों की
जुम्बिश के परे
हमारी पहचान
एक जोड़े मैं बैठ
नहीं पाती
अब ताले
खोलने-बंद करने को मैं
रिश्ता कहता हूँ,
आप चाहें,
तो सराय कह सकते
हैं.
***
मोनालिसा
मोनालिसा,
सदियों से देखती आ रही है,
अपने चाहने वालों को,
सबने तारीफ ही
की,
कर रहे हैं, करेंगे.
उसकी आँखें
बोलती होंगी हर बार
सुनो जी, क्या देखते हो यूं मुंह बाए,
कुछ नया कहो, कुछ अलग बताओ
मैं थक गई मुस्कराकर, यूं झूठी-मूठी
उसकी आँखे खोजती
होंगी
आँखों का जोड़ा
जो अपने शब्दों
से
उसकी पुतलियों
में नरमी भर सके
आत्मा तर कर सके
मोनालिसा !!
तुम नादान तो
नहीं !!
यह क्या बचकानी
हरकत तुम बार-बार करती हो !!
तुम्हारा तुम
होना ही तुम्हारी नियति है
तुम शकुंतला हो, मृगनयनी हो, चित्रलेखा हो
तुम पारो हो
मोनालिसा, पारो !!!
एक भव्य, आलीशान शोपीस !!!
जब-जब बनाई
जाएँगी मोनालिसा,
तब-तब चाहने
वालों की कतार लगती रहेगी.
***
नुस्खा तैयार किया है
बस में, मेट्रो में, ऑटो में
दीख जाएगा, कोई न कोई,
हीनता का मारा,
अपनी कमियों को
छुपाने में
कामयाब.
महंगे से महंगे
कपडे, अत्तर, जूते
और क्या-क्या…
जिसके पास नहीं,
वह मुंह बाये
खड़ा,
जिसके पास है,
वह उससे महंगे
को देखता.
होंठो पर जमी
चमक,
दिली मुस्कान की
गारंटी नहीं,
न ही मेक-अप घटा
सकते है
झुर्रियों से
झांकते तनाव
घास न उधर हरी
है, न इधर,
चमक के पीछे,
अथक संघर्ष, घिनौने शोषण की कहानिया हैं
पर, मैं-तुम नशा किये हुए हैं…
हीनता, एक सनकी खुशी का नाम है
मेरा-तुम्हारा
हीन होना एक जाल है
जाल, जिससे निकलना गंवारा नहीं.
बचने का चिराग
हो, तब भी, ख्वाहिश नहीं.
मैं-तुम इस जाल
को कुतर नहीं सकते,
इसे तो कुतर
सकता है एक रद्दी वाला
चायवाला या
रिक्शेवाला
हीराबाई या
हिरामन,
कोई तन्नी गुरु
या अस्सी का कोई टंच फटीचर,
या ऐसे बहुत, जिन्होंने,
खुश रहने का
नुस्खा खुद तैयार किया है.
***
आस
गिलहरी
फुदकती रही दिन भर,
सूर्य की
गरमी को पीते रही दिन भर.
रात कहीं
ठिठुर गुजारी होगी अक्तूबर की.
अभी यहाँ,
अभी वहाँ,
अभी ऊपर,
अभी नीचे,
अपनी मद्धम
आवाज़ से भरती रही नीरवता,
पुतली में
धरे आस से भरती रही संसार,
वह जब तक
रही सामने,
खिलता रहा
मन,
उगते रहे
वृक्ष.
भरता रहा
मन.
लहलहाता
रहा मन.
***
सदियों से देखती आ रही है,
अपने चाहने वालों को,
सबने तारीफ ही की,
कर रहे हैं, करेंगे.
उसकी आँखें बोलती होंगी हर बार
सुनो जी, क्या देखते हो यूं मुंह बाए,
कुछ नया कहो, कुछ अलग बताओ
मैं थक गई मुस्कराकर, यूं झूठी-मूठी
उसकी आँखे खोजती होंगी
आँखों का जोड़ा
जो अपने शब्दों से
उसकी पुतलियों में नरमी भर सके
आत्मा तर कर सके
मोनालिसा !!
तुम नादान तो नहीं !!
यह क्या बचकानी हरकत तुम बार-बार करती हो !!
तुम्हारा तुम होना ही तुम्हारी नियति है
तुम शकुंतला हो, मृगनयनी हो, चित्रलेखा हो
तुम पारो हो मोनालिसा, पारो !!!
एक भव्य, आलीशान शोपीस !!!
जब-जब बनाई जाएँगी मोनालिसा,
तब-तब चाहने वालों की कतार लगती रहेगी.
दीख जाएगा, कोई न कोई,
हीनता का मारा,
अपनी कमियों को छुपाने में
कामयाब.
महंगे से महंगे कपडे, अत्तर, जूते
और क्या-क्या…
जिसके पास नहीं,
वह मुंह बाये खड़ा,
जिसके पास है,
वह उससे महंगे को देखता.
होंठो पर जमी चमक,
दिली मुस्कान की गारंटी नहीं,
न ही मेक-अप घटा सकते है
झुर्रियों से झांकते तनाव
घास न उधर हरी है, न इधर,
चमक के पीछे,
अथक संघर्ष, घिनौने शोषण की कहानिया हैं
पर, मैं-तुम नशा किये हुए हैं…
हीनता, एक सनकी खुशी का नाम है
मेरा-तुम्हारा हीन होना एक जाल है
जाल, जिससे निकलना गंवारा नहीं.
बचने का चिराग हो, तब भी, ख्वाहिश नहीं.
मैं-तुम इस जाल को कुतर नहीं सकते,
इसे तो कुतर सकता है एक रद्दी वाला
चायवाला या रिक्शेवाला
हीराबाई या हिरामन,
कोई तन्नी गुरु या अस्सी का कोई टंच फटीचर,
या ऐसे बहुत, जिन्होंने,
खुश रहने का नुस्खा खुद तैयार किया है.