वैद्यनाथ
मिश्रा,यात्री या फिर सबसे प्रसिद्ध व लोकप्रिय नाम बाबा नागार्जुन हिंदी एवम् मैथिली साहित्य के क्षेत्र में बहुत
प्रसिद्ध नाम हैं|उनका साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण नाम रहा हैं |वैद्यनाथ मिश्रा से लेकर बाबा नागार्जुन
तक की उनकी यात्रा कुछ भी रही हो किन्तु उनकी रचनाधर्मिता एवम् काव्य संसार के
अंतर्गत अति विस्तारित एवम् विशाल फलक पर फैला क्षेत्र निश्चित रूप से उन्हें अपने
तत्कालीन साहित्यकारों तथा परवर्ती लेखकों से बिलकुल अलग स्थापित करता हैं|
बाबा नागार्जुन के साहित्यिक
संसार में उनकी लेखनी का ज़ोर सभी विधाओं तथा विषयों पर निरंतर दिखाई देता हैं
किन्तु उनकी पूरी रचनाधर्मिता में सबसे ग्यादा मुझे या शायद सभी को आकर्षित करती
हैं वाह हैं उनकी साफ़गोईपन तथा व्यंग | सीधे-सीधे बिना किसी लागलपेट के बेबाकी के
साथ यदि कोई कवि लिखने की जुर्रत कर सकता हैं,तो वह हैं बाबा नागार्जुन |यह उदाहरण
इस बात को और स्पष्ट करता हैं :-
रामराज्य में अबकी रावण नंगा हो कर
नाच था
सूरत-शक्ल वही हैं बिलकुल बदला केवल ढ़ाचा
नेताओं की नीयत बदली फिर तो अपने
ही हाथों
भारतमाता के गालों में कास कर पड़ा
तमाचा हैं ||1
डॉ. नामवर सिंह ने नागार्जुन की
कविता को ‘मूल्य निर्णय’ की कविता कहा हैं
वे लिखते हैं “कविता में तार्किक अन्विति
ही एकमात्र अन्विति नहीं होती हैं|यहाँ यदि मूल्य-निर्णय देना आवश्यक हो तो
तार्किक अन्विति कविता में अपेक्षाकृत घटिया किस्म की अन्विति हैं, शायद इसलिए नए
कवियों ने इसका प्रयोग व्यंगात्मक ढ़ंग की कविताओं के लिए किया हैं|उदहारण के लिए
नागार्जुन की प्रसिद्ध किविता “पांच पूत भारत माता के”जिसमे कवि क्रमशः ‘पांच’ की
संख्या से उतरकर ‘शून्य’तक पहुचता हैं और कविता ख़त्म होती है ‘अंडा’पर|
पांच पूत भारत माता के दुश्मन
था खूंखार
गोली खाकर एक मर गया बाकी रह
गए चार |
चार पूत भारत माता के चारो
चतुर प्रवीण
देश निकाला मिला एक को बाकी रह गए तीन |
तीन पूत भारत माता
के लड़ने गए वो,
अलग हो गया उधर एक अब बाकी रह गया दो|
दो बेटे भारत माता के छोड़ पुरानी टेक ,
चिपक
गया हैं एक गद्दी से बाकी रह गया एक |
एक पुत्र भारत माता का कंधे पर हैं झंडा ,
पुलिस पकड़ कर जेल ले गयी बाकि रह गया अंडा |2
कबीर की तरह ‘घर फूंककर तमाशा
देखने वालों’ में नागार्जुन का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। नागार्जुन ने हमारे
समाज में चले आ रहे महाजनी ठेकेदारों,पूंजीपतियों और नए-नए आये उधोगपतियों पर तीखे
व्यंग किये हैं –
लाख-लाख श्रमिकों
की गर्दन कौन रहा हैं रेत
छीन चुका हैं
कौन करोड़ों खेतिहरों के खेत
किसके बल पर कूद
रहे हैं सत्ताधारी प्रेत|”3
नागर्जुन ने जिंदगी की किताब को अच्छी तरह पढ़ा
हैं, इसलिए उनकी व्यंग्य कविताएं कबीर की तरह ‘आँखिन की देखी’ हैं। वे किसी स्वप्न
लोक की उपज न हो कर इसी ऊबड़-खाबड़ भूमि की उपज हैं | नागार्जुन ने अपने समाज में
व्याप्त समस्या तथा बुराइयों को जितनी गहराई तथा धमाकेदार तरीके से उठाया हैं
उअतना शायद कबीर के अलावा किसी ने नहीं उठाया हैं |बाबा जी का मुख्य हथियार हैं –‘व्यंग्य’| ऐसा
हथियार जिसकी मार से या आज के भाषा में कहूँ कि उनके इस हथियार की राडार से शायद
ही कोई भ्रष्ट राजनीतिज्ञ,धर्म के अवैध ठेकेदार,लोलुप अफसरशाह और वाह सभी जो शोषण
को बढ़ावा दे रहे हैं,बचे हो |वह राजनीती पर अपने उस अचूक हथियार का प्रयोग करते
हुए कुछ इस तरह दिखाई देते हैं :-
जनता वाले परेशान है
बूढों की चतुराई से
जनता वाले परेशान हैं
उसी इंदिरा ताई से
जनता वाले परेशान हैं अपनी मूत पिए कैसे
जनता वाले परेशान हैं
नब्बे साल जिए कैसे ||4
नागार्जुन समाज में तानाशाही अफ़सर तथा राजनीतिज्ञों से मिली
भगत पर करारा तमाचा लगते हैं उनकी एक कविता ‘वह तो था बीमार’ में इस पर चोट करते हुए
लिखते हैं :-
मारो भूख से फ़ौरन आ
धमकेगा थानेदार
लिखवा लेगा घर
वालों से ‘वह तो था बीमार’
अगर भूख की बातों
से तुम न कर सके इंकार
फिर तो खाएंगें
घरवाले हाकिम की फटकार
ले भागेगी जीप लाश को सात समुन्दर पार
अंग-अंग की चिर फाड़
होगी फिर बारम्बार
मरी भूख को मारेंगे
फिर सर्जन के औज़ार
जो चाहेगी लिखवा
लेगी डॉक्टर से सरकार (कविताकोश से साभार)
इस तरह पूंजीपतियों के सत्ताधीशों से सांठ –गांठ
का भंडाफोड़ करते हुए नागार्जुन कहते हैं
:-
खादी ने मलमल से अपनी सांठ-गांठ कर डाली5
बाबा ने
शोषितों की आवाज उठायी तथा अपनी कविता ‘वे और तुम’ में मध्यवर्गीय बुद्धिजीवी वर्ग
पर सवाल उठाते हैं :-
वे लोहा पीट रहे हैं
तुम मन को पीट
रहे हो
वे पत्तर जोड़
रहे हैं
तुम सपने जोड़
रहे हो |(कविताकोश से साभार)
बाबा
नागार्जुन ने अवसरवादी,चरणवंदनागीरी,चाटुकारों से समाज को अलग करने तथा उनकी
करतूतों के साथ एक नयापन देते हुए रैदास के पड़ का प्रयोग करते हुए बड़ी ही साफ़गोईपन
से अपनी,अमरीकी राष्ट्रपति जानसन पर लिखी गयी कविता में दर्शातें हैं कि :-
हम काहिल हैं
हम भिखमंगे,तुम हौ औढरदानी
अबकी पता चला
हैं प्रभु जी,तुम चन्दन हम पानी
हम निचाट धरती
निदाध की,तुम बादल बरसाती
अबकी पता चला
हैं प्रभु जी,तुम दीपक हम बाती (कविताकोश से साभार)
गाँधी जी ने भारत के लिए एक रामराज्य का आदर्श
रखा |उनका सपना पूरा करने तथा उनके आदर्शों पर चलने वाले सर्वोदय समाज के कथनी और
करनी पर उन्होंने बहुत ही चुटीले ढ़ंग से अंतर स्पष्ट करते हुए अपनी कविता लिखी
‘तीनों बन्दर बापू के’(१९६९)
करे रात दिन
टूर हवाई ,तीनों बन्दर बापू के
बदल-बदल कर
चखे मलाई,तीनों बन्दर बापू के (कविताकोश से साभार)
नागार्जुन जी साफ़-साफ़ कहते हैं
:-
छील रहे
गीता की खाल
उपनिषदें
हैं इनकी ढाल
इधर सजे
मोती के थाल
उधर जमे
सतजुगी दलाल
मत पूछों
तुम इनका हाल
सर्वोदय
के नटवर लाल (कविताकोश से साभार)
नागार्जुन जी का काव्य
तथा उनका व्यंग्य समाज में सत्य को खोजता हैं यह एक ऐसा व्यंग्य है जो भीड़ के अन्दर धंसकर सत्य को खोजने का माद्दा रखता है
समाज के किसी सत्य का सामना जब उनसे होता है तो उनकी कविता आकार लेने लगती है इसी
तरह वह शिक्षा व्यवस्था के वास्तविकताओं को इस प्रकार स्पष्ट करते हैं :-
खून
पसीना किया बाप ने एक जुटाई फ़ीस
आँख निकल
आयी पढ़-पढ़ के नंबर आये तीस
शिक्षा
मंत्री ने कहा सीनेट में –अजी शाबास
सोना हो
जाता हराम यदि ज्यादा हो जाते पास
फेल
पुत्र का पिता दुखी है सिर धुन रही है माता
जन गण मन
अधिनायक जय है भारत भाग्य विधाता (कविताकोश से साभार)
नागार्जुन
हमारे समाज में आज के कवि पर शिरीष कुमार मौर्य के एक संस्मरण में अपनी सीधी सी प्रतिक्रिया देते दिखाई है – “कवि अपनी लेकर
प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया और अन्यथा प्रोत्साहन की आकांक्षा में पुराने कवियों की
तरफ भागते हैं जबकि कविताओं को जनता के बीच जाना चाहिए |जनता ही किसी को कवि बना
सकती हैं,कोई पुराना कवि या आलोचक नहीं|”6
नागार्जुन
ने भ्रष्टाचार,अवसरवादिता जैसी सामाजिक कुरीतियों पर चोट की |राजनीति की गरिमा तथा
लोकतंत्र के मायावी जाल को तार-तार करते हुए उसके वास्तविक चेहरों को सामने लाते
हैं पूंजीपति वर्ग के शोषण एवम् अत्याचारों का विरोध करते हैं तथा मजदूरों,किसानों
एवम् छात्रों के हित की बात को बड़े जोरदार ढ़ंग से समाज के सामने रखते हैं बाबा
नागार्जुन एक सशक्त कवि होते हुए एक समाज सुधारक की भूमिका निभाते हैं डॉ. नामवर
सिंह उन्हें कबीर की परंपरा के कवि मानते हैं |
संदर्भ :-
1.नागार्जुन की कविता में व्यंग्य बोध –डा० रमाकांत शर्मा
(फिर-फिर नागार्जुन,संपादक –विश्वरंजन),पृष्ठ -367
2.कविता के नए प्रतिमान –डा०नामवर सिंह ,पृष्ठ-144
3.जनशक्ति,14
अगस्त ,1960
4.नागार्जुन का विक्षोभ रस,(हिन्दी कविता का अतीत और
वर्तमान-मैनेजर पाण्डेय),पृष्ठ -96
5.नागार्जुन की कविता में व्यंग्य बोध –डा० रमाकांत शर्मा
(फिर-फिर नागार्जुन,संपादक –विश्वरंजन),
6.लिखत-पढ़त,शिरीष कुमार मौर्य,पृष्ठ-32
(शिवप्रकाश त्रिपाठी, हिंदी विभाग, डी.एस.बी.परिसर के शोधार्थी हैं।)
इन्दू-इन्दू मलिका-मलिका क्या हुआ है आपको , सत्ता के मद में आकर के भूल गयी हो बाप को ! बाबा नागार्जुन
नागार्जुन ने जन-जीवन के संघर्ष को वाणी दी है।
मीरा के बाद नागार्जुन ऐसे कवि हैं जो प्रतिद्वन्दी को सीधा उसके नाम से संबोधित करते हैं, ललकारते हैं। नाम लिए बिना निशाना साधने की संभ्रांत कोशिश न करके अपना ठेठपना दिखाते हैं।
बिल्कुल।