अनुनाद

वीरू सोनकर की दस कविताएं

वीरू सोनकर सोशल मीडिया पर सक्रिय उन नौउम्र कवियों में हैं, जिनकी कविता मैं अकसर उत्सुक के साथ पढ़ता हूं। ये कविताएं मुझसे कहती हैं कि जल्द तुम्हें हम पर लिखना होगा। मैं उस कहन को कुछ देर के लिए मुल्तवी करता हूं। इतना ज़रूर कहूंगा कि वे विचार और उसके सामाजिक / साहित्यिक रचाव में ख़ुद को रचने लगे हैं, राजनीतिक रचाव अभी देखना बाक़ी है। यह देखना भी सुखद है कि उनकी कविता में गैरज़रूरी विमर्श की भंगिमा नहीं है। अनुनाद पर वीरू सोनकर की कविताएं पहली बार छप रही हैं। इस नौजवान साथी का स्वागत और कविताओं के लिए उनका शुक्रिया भी। 
*** 

1

जैसे पेड़ अभिशप्त है
अपने गीले पैरों के लिए,
जैसे पहाड़ अपनी पथरीली खाल के लिए
हवा ख़ुद की घुमक्कड़ी के लिए

विडंबनाएं अभिशप्त है
समय का चेहरा बनने के लिए,
और
आदमी अभिशप्त है
इसी समय में होने के लिए

2

चुप्पियों के जवाब में
चुप्पी !
एक बेहद अनुशासित रिवाज़
पहली चुप्पी वेदना की
दूसरी चुप्पी निर्ममता की…

मैं पहली चुप्पी गढ़ता हूँ !

3

वे चाहते थे
उन पर चर्चा हो
वे चाहते थे
जो उन्होंने चाहा है
ठीक, वैसे ही हो,

अंत में,
वे ख़ूब सराहे गए…

लोगों ने उन्हें
तानाशाह के तौर पर याद रखा
और उनके चर्चे
उनके बाद भी लगातार होते रहे

एक उदहारण के रूप में वे बेहद सफल रहे

जैसा उन्होंने चाहा था !

4

एक सूखी पत्ती
क्या है ?
कुछ भी तो नहीं,
एक चीज़ के तौर पर
ये पत्ती मुझे निराश करती है…

और जब मैं
इस उम्मीद में
इस सूखी पत्ती को,
नदी में छोड़ता हूँ
की ये नदी के आखिरी सिरे को छुएगी
बिना डूबे !
तब भी
वह पत्ती कुछ नहीं होती,

पर
ये नदी जानती है,
इस पत्ती के
न डूबने की वह उम्मीद ही
इस नदी को
एक नदी बनाती है

वरना वह भी
एक बेमक़सद बहता पानी ही तो है…..

5

एकांत के शोर में
कान
बेतरह बजते है
और कोशिश करता हूँ
और
और भी गहरे छुपने की

मेरी गोल अँधेरी सुरंग बहुत बातूनी है
बहुत ही ज्यादा,
मैं घबरा कर भाग निकलता हूँ

बाहरी शोर में
कितनी चुप्पियाँ
चुपचाप मेरे साथ-साथ चल रही है……..


6

हवा आपके बगल से
गुजरते हुए
ढेर सारा चन्दन
आपके पसीने में घोलती है
 

आप
हवा सूंघ कर
बहुत आराम से कह देते है
घर के बगल में बाग़ होने का यही फायदा है….

आप हवा के गुनाहगार होते है !

क्योंकि आप जानते है,
अब चन्दन बाग़ों में नहीं मिलते
बाग़ में तो हवा भी नहीं मिलती
हवा
ठीक वहीँ मिलती है
जहाँ हम हवा चाहते है
और हवा हमेशा,
ढेर सारा चन्दन साथ लेकर चलती है……….

7

मेरे घर में लकड़ी की मेज है
लकड़ी, पेड़ का हिस्सा है
घर में पानी है
नदी का,
घर को बनाने में लगा है
गिट्टी, ईटा और सीमेंट
यानी पहाड़ और जमीन का हिस्सा

मैं घबराता हूँ
अगर सब
अपना अपना हिस्सा मांगने आ गए
तो क्या होगा

क्या होगा अगर,
पेड़ जमीन और पहाड़ ने पूछ लिया
क्या तुमने दिया किसी को अपना हिस्सा !

8

उमस भरे दिन में
एक गिलहरी
आपको चौंका सकती है
अपनी आवाज़ से,
और आप
कोशिश करते है
ठीक वैसे ही बोलने की
काफ़ी है आपका इतना भर जानना
कि वह पेड़ कितना जरुरी है
उसमें
आपके बच्चों की ध्वनि शिक्षिका रह रही है

9

मैं दौड़ रहा हूँ
तेज़ बहुत तेज़
आपके लिए ये ख़बर हो सकती है
पर यक़ीन मानिये
मेरा दौड़ना
वो भी सर पर पैर रख कर दौड़ना
बेहद जरुरी है

आप कह सकते हो,
ये बावला हुआ है
यूँ ही दौड़ रहा है

पर जनाब,
हो सके तो दौड़िये
आप भी मेरे साथ

कल एक अफ़वाह सुनी थी मैंने,
ठिठके लोगो़ के शहर में
कोई तो एक
दम लगा कर दौड़ा

और वह पा गया था
चलते फिरते लोग का शहर

लोग बताते है
अपने जैसे लोग पा कर
वह खूब हँसा !

तुम मेरा भागना
एक घटना बना दो
ताकि इस अफवाह से मेरे साथ साथ
ये पूरा शहर भाग निकले

ठिठका हुआ शहर
अगर भागेगा
तब यक़ीन मानो
ज़्यादा नहीं भागना होगा

तब शायद वह चलते फिरते लोगो वाला शहर,
खुद यहाँ आ जाये

10

सड़क के एक किनारे
ये सोचना,
यहाँ से बिना चले
कहीं भी जाना संभव है क्या ?

अभी सुना था
लोग कह रहे थे
ये सड़क अमुक स्थान को जाती है
मुझे देखना है
बिना मेरे चले ये कहाँ जाती है

दूसरी ओर से आते लोग
कुछ अलग
राय रखते है

कुछ के घर तक
ये सड़क जाती है
कुछ के गांव के बाहर तक ही,
और किसी के कॉलेज तक ही,

और
अभी-अभी
अचानक से लगा,
ये सड़क कहीं नहीं जाती,
सिर्फ़
मेरे तक आती है
*** 
इन कविताओं में से ज़्यादातर कवि द्वारा फेसबुक पर साझा की जाती रही हैं।

0 thoughts on “वीरू सोनकर की दस कविताएं”

  1. कवितायेँ फेसबुक पे पढ़ते रहते हैं। निस्संदेह क़ाबिले-तारीफ हैं सारी कवितायेँ।
    ज़िन्दगी की तल्ख़ हकीकत को बयां करती हुई।
    बधाई

  2. बहुत अच्छा लिखते है सोनकर जी…..बहुत अच्छी कविताएं हैं……सोनकर जी का दृष्टि फलक विशाल हैं….विशेषकर नए आयामों के सन्दर्भ में……….

  3. अभिषेक मिश्रा

    अद्भुत कवितायें हैं. लम्बे समय के बाद ऐसी कवितायें पढने को मिलीं, वीरू सोनकर जी को बहुत बहुत धन्यवाद और बधाई.

  4. वीरू की कविताएँ फेसबुक पर पढ़ी हैं. उनका कविता लिखने का अंदाज़ संवादात्मक है, जो कि आकर्षित करता है. बड़ी आसानी से वे अपने पाठकों से संवाद स्थापित कर लेते हैं.

  5. वीरू की जिन रचनाओं को शामिल किया गया है वो भी काबिले-तारीफ़ है ..एक लय में किसी युवा कवि की दस कविता पढ़ लेना भी हिंदी कविता के लिए उपलब्धि से कम नहीं है | वीरू के पास दर्शन है और उसकी कविता समाज और देश-काल से जुडी हुई बात कहती है | वीरू को शामिल करने के लिए अनुनाद का आभारी हूँ |

  6. गहरे अर्थो वाली कविताएं,फेसबुक पाई इन कविताओं को नहीं पढ़ा था…..चयन के लिए शिरीष जी को धन्यवाद!!!

  7. आज देर शाम से वीरू को पढ़ रहा हूँ | उसी की वाल की लिंक से इस जानिब भी आ गया | तेवर है इसमें शिरीष भाई ! संवारिए, तराशिये !! अपनी चौंकाने और आकर्षित करने वाली शैली की अकुलाई हुई नई पीढ़ी आप जैसे मित्रों की ज़िम्मेदारी भी है |

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