अनुनाद

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शायक आलोक की कविताएं




शायक की दस कविताएं पहले अनुनाद पर लग चुकी हैं। शायक के मुहावरे में कोई फेरबदल तब से कमोबेश नहीं हुआ है और मुझे यह बात अच्छी लगती है। पहले कभी लगा था कि शायक को अपने थोड़े-से फेसबुक सम्पर्क के चलते (कविकर्म को लेकर) ज़्यादा गंभीर हो जाने की सलाह दूं पर ग़ालिब याद आए कि बने हैं दोस्त नासेह, फिर याद आया हरिशंकर परसाई का निबन्ध, जिसमें उन्होंने लोगों की रोक-टोक पर ख़ूब तीखा लिखा है। पुरखों की याद ने मुझे रोक लिया। वास्तविकता भी यही है कि सलाह-मशविरे अकसर किसी भी कवि की मौलिकता और ऊर्जा के विरुद्ध जा सकते हैं। यहां शायक की चंद नई कविताएं हैं, नई इस अर्थ में कि किसी ब्लॉग पर ये पहले बार आ रही हैं – फेसबुक पर ज़रूर शायक ने इन्हें साझा किया है। कविताओं पर प्रतिकिया पाठक देंगे।    

(शायक प्रतिभाशाली फोटोग्राफर भी हैं। उनकी कई तस्वीरें मेरी याद में हैं। मेरे नए संग्रह पर भी उन्हीं की खींची एक तस्वीर है। उस तस्वीर के लिए नहीं, कविताओं के लिए, शुक्रिया कवि…)  


1.
वह मेरी लगभग तमाम बातों से सहमत थी
उसने भी माना कि चींटियों की लंबी गुजरती कतार रेलगाड़ी सी दिखती है
और यह भी मान लिया बेहद आसानी से कि रेलगाड़ी के गुजरने पर पुल का थरथराना
वस्तुतः पुल की एकाकी ज़िन्दगी में उत्सव की थाप है
वह जिसकी प्रतीक्षा में रहता है

उसने सहमति जताई कि पुल पर रेलगाड़ी से गुजरते जब पैसे फेंके जाएं
तो किनारों पर फेंके जाए ताकि तैराक मल्लाह बच्चा गोता लगाकर पानी से हवा मिठाई निकाल सके

इस सहमति पर वह उल्लासित थी कि जैसे पुल नदी के दो किनारों को जोड़ता है
वैसे ही एक दूसरे से जुड़े रहने के लिए हमें लंबी रेल यात्राएं करनी चाहिए
और जब जब गाड़ी किसी पुल से गुजरे
तो हम हाथ थाम लें
खिड़की से एक साथ नीचे नदी में झांके 
और कुछ पैसे फेंक दें

उसने विरोध के लिए एक सांस खींची लेकिन उसे बीच में ही छोड़ दिया
और सर हिलाकर सहमति जता दी कि इस बार हम लौटेंगे
तो अपनी इच्छा से नहीं लौटेंगे

हमारी असहमति बस घर के उस दरार को पाटने को लेकर थी
जहाँ चींटियों की रेलगाड़ी गुजरती थी
पर थरथराता हुआ पुल नजर नहीं आता था. 
***
2.

माय लार्ड
उसकी हत्या के लिए तो नहीं किन्तु मेरी आत्महत्या के लिए आप मुझे सजा सुना सकते हैं
हाँ मैं जिंदा हूँ फिर भी यह बयान
आप भले मेरा गला टटोल निश्चिंत हो सकते हैं कि जान निकालने के लिए अभी इसको दबाया जाना बाकी है
लेकिन सच में मैं आत्महत्या कर चुका हूँ

माय लार्ड वह भी पराजित था मेरी ही तरह
और जब वह अपने कमरे में लेटा पराजय पर विचार कर रहा था
तब मैं अपने कमरे में लेटा आत्महत्या की योजना बना रहा था  
यकीनन उसके फैसले को मेरी योजना से यकीन मिला होगा
उसका कमरा मेरे कमरे से बस चार फर्लांग की दूरी पर ही तो है

माय लार्ड
यह लाश उसकी है पर आत्महत्या मैंने की है
मुझे उसकी हत्या के लिए नहीं मेरी आत्महत्या के लिए सजा सुनाई जाए.
***
3.
तुम्हारी कार की सीट बेल्ट वह जादुई चीज है
जो मुझे सलीब में टंगा जीसस बना देती है
और मैं खुश होता हूँ मेरी मैरी मैगडेलन कि
मेरे साथ की चालक सीट पर बैठी
मेरे बराबर के सलीब में टंगे रहने तक तुम साथ देती हो
शुक्रगुजार हूँ कि सलीब पर टंगना भी तुमसे ही सीखा.
***
4.
मेरे बेटे
तुम अक्षर पहचानना सीख गए हो
तुम घुमावदार व सपाट दो प्रकार से लिख सकते हो
तुम कमाल हो कि तुम शब्दों से वे वाक्य बना सकते हो
जो हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में काम आएगा

तुम पानी लिखते प्यास की और दूध लिखते खीर की कल्पना कर सकते हो

मुझे संतोष है मेरे बेटे कि अब तक तुम्हारे पाठ में
चिड़िया पौधे मछली बारिश आपस में बोल बतिया लेते हैं
मैं तुम्हारे हाथ चूमता हूँ जिनसे तुमने उड़ सकने वाला कछुआ बनाया

मेरे बेटे अब हाशिया खींचना सीखो
कि लिखने रचने में हाशिया-बरदार का उम्र भर ख्याल रखना. 
***
शायक

0 thoughts on “शायक आलोक की कविताएं”

  1. बहुत बढ़िया सर जी
    अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर मैं आपके ब्लॉग को फॉलो कर रहा हु मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है

  2. शायक के व्यक्तिगत उल्लास और चंचलता से परे हट कर यदि हम कवि का मूल्यांकन सिर्फ उसके कवि कर्म से ही करे तो कैसा रहेगा ?
    …………………….

    निसंदेह शायक एक बड़ी लकीर खीच रहे है
    कुछ बात है जो बाकी कवियों से अलग कतार में उन्हें खड़ा कर रही है….कविता पढ़े जाने के बाद भी याद रहती है
    आप 100 कविताओ में से शायक की कविता को छांट कर अलग कर सकते है उनकी अपनी शैली की यही सफलता है

    ब्लॉग पर पोस्ट कविताओ में से पहली कविता और सबसे अंतिम कविता "मेरे बेटे" विशेष रूप से प्रभावित कर गयी,

    कहना चाहता हूँ कि मेरे बेटे कविता एक बहुत बड़ी कविता है
    यह कविता याद रखी जानी चाहिए

    यह कविता शायक की व्यक्तिगत उपलब्धि न मान कर हम आज के कविताई दौर की चुनिंदा सफलताओ में रख सकते है…

    अंत में,
    शायक अपने मन के कवि है उन्हें अपनी राह बहने का पूरा हक़ है कविताये बेहद आकर्षक है शब्द याद रहते है

    बहुत बधाई शिरीष सर !

  3. मुझे सभी कवितायें बहुत अच्छी लगीं…. ताज़ी हवा के झोंकों सी…
    शायक…मात्र शब्द नहीं पिरोते.कुछ रहता है ऐसा जो बिना संवाद जोड़ लेता है….

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