अनुनाद

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10वां विश्व हिंदी सम्मलेन(एक छात्र प्रतिभागी के नोट्स) – शिव त्रिपाठी

        

                     
1०वाँ विश्व हिंदी सम्मलेन का आयोजन 10-12 सितम्बर 2015 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में संपन्न हुआ वैश्विक परिदृश्य पर हिंदी की एक ठोस पहचान बनाने तथा उसे यथेष्ठ सम्मान दिलाने के लिए और हिंदी को वैश्विक प्रचार प्रसार के लिए विश्व हिंदी सम्मेलन की परिकल्पना राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा द्वारा 1973 ई0 में की गयी थी| इसका एक प्रमुख उद्देश्य हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ में आधिकारिक भाषा का दर्ज़ा दिलाकर विश्व भाषा के रूप में स्थापित करना भी था| अब तक 9 विश्व हिंदी सम्मलेन नागपुर, नई दिल्ली, पोर्ट लुई (मारीशस में दो सम्मेलनहुए), पोर्ट ऑफ स्पेन, त्रिनिदाद एंड टोबैगो, लन्दन(यु.के), पारामारिबो(सूरीनाम), न्यूयार्क(अमेरिका) और जोहान्सबर्ग(द० अफ्रीका) में आयोजित हो चुके हैं|

10वें विश्व हिंदी सम्मेलन के विमर्श का मुख्य विषय रहा  “हिंदी जगत:विस्तार एवं संभावनाएँ|” मुख्य विषय के अतिरिक्त उप विषय भी निर्धारित किये गये थे, ‘विदेशनीति और विदेशों में हिंदी,प्रशासन में हिंदी,विज्ञान क्षेत्र में हिंदी तथा संचार और सूचना प्रद्योगिकी में हिंदी| इन्ही उप-विषयों पर तीन दिन तक समानांतर सत्रों में निर्धारित सभागार में विमर्श हुआ| जिस प्रकार से यह सम्मेलन अपने आयोजन, वैचारिकी और उद्देश्यों को लेकर शुरू से ही विवादित रहा तो यह आवश्यक हो जाता है कि हम इसकी वैचारिकी, विषय विभाजन, विमर्श के मुद्दे, आमंत्रित विद्वानों, अतिथियों तथा विशिष्ट अतिथियों को ध्यान में रखते हुए इनका यथार्थ विश्लेषण करें और यह सुनिश्चित करें कि अपने स्थापनापरक उद्देश्यों की पूर्ति में 10वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन कहाँ तक सफल रहा है |

यह सम्मेलन विदेश विभाग भारत सरकार के द्वारा आयोजित किया किया गया था| स्थानीय संरक्षक के रूप में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं सक्रिय थे| स्थानीय सहयोगी सदस्य के रूप में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय एवं अटलबिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय भी पूर्णतः सक्रिय थे| एक अन्य सहयोगी के रूप में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा भी था| भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी नगर के लाल परेड मैदान में सम्मेलन स्थल को भव्यता दी गयी थी|हम अगर इसके भव्यता की बात करे तो देखतें हैं कि सम्मेलन स्थल का पंडाल करीब 60 हजार वर्गफुट का था |इसके आलावा चार अलग-अलग सभागृह बनाये गये जिसमे समानांतर सत्र चले इन चारों सभागृह के नाम थे-
1-रोनाल्ड स्टुअर्ट मैक्ग्रेगर सभागार
2-अलेक्सेई पेत्रोविच वारान्निकोव सभागार
3-विद्यानिवास मिश्र सभागार
4-कवि प्रदीप सभागार

इन्ही से सटा हुआ एक अन्य राजेंद्र माथुर सभागार भी था जिसमे हिंदी के शोधपत्र भी पढ़े जा रहे थे| इन सबके अलावा 14 हजार वर्गफुट के दो पंडाल प्रदर्शनियों के लिए बनाये गये थे
1-सोमदत्त बखौरी प्रदर्शनी कक्ष
 2- डॉ.मोटुरि सत्यनारायण प्रदर्शनी कक्ष
जिसमे एक में मध्यप्रदेश की गौरव गाथा दर्शायी जा रही थी वही दूसरे में अनेक मल्टीस्टारर कम्पनियां जैसे कि एप्पल, माइक्रोसाफ्ट, गूगल,सी-डैक जैसी अन्य, ने अपने उत्पादों की प्रदर्शनी लगा रखी थी|दो जलपान गृह भी बनाये गये थे-
1-   दुष्यंत कुमार जलपानगृह (केवल प्रतिनिधि)
2-   काका कालेलकर जलपानगृह (केवल विशिष्ट अतिथि)

सबसे बड़ा आकर्षण जो था वह था मुख्य मंच जिसमे उद्घाटन और समापन समारोह संपन्न हुए यह मंच जो की रामधारी सिंह दिनकर सभागार में बनाया गया था जो कि कुल 4700 वर्गफुट में बना था| इस मंच में सायंकाल में अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया|

भोपाल के लाल परेड में प्रवेश करते ही भारी-भरकम पुलिस दस्ते से हमारा सामना हुआ| एक पल को लगा की हम किसी अति संवेदनशील सामरिक महत्व के बैठक में भाग लेने आयें हैं| खैर आगे परिचयपत्र की जाँच हो जाने के बाद हमारी नज़र मुख्य पंडाल के विशाल तोरणद्वार पर पड़ी| जिसे देखकर प्रसन्नता के साथ-साथ अपने हिंदी व्याकरण ज्ञान पर संशय प्रतीत होने लगा तोरणद्वार पर जो विशालकाय हिंदी शब्द लिखा हुआ था उसमे अर्द्ध व्यंजन ‘न्’ के साथ ही अनुस्वार का प्रयोग भी ग्लोब के रूप में किया किया गया था जिससे हिंदी शब्द कुछ इसतरह “हिंन्दी”, दिख रही थी| तोरणद्वार का दूसरा मुख्य आकर्षण था हिंदी साहित्य के कुछ प्रसिद्ध रचनाओं की विशालकाय पुस्ताकाकृति| जिनमे क्रमशः रामचरितमानस, गोदान, सूरसागर, कामायनी, चंद्रकांता, पृथ्वीराज रासो, मैला आँचल तथा शेखर एक जीवनी थी|बहुत माथापच्ची करने के बाद मै इनके पीछे छिपे उद्देश्यों को समझने में असफल रहा हालाँकि यह मेरी सीमा भी हो सकती हैं|तत्पश्चात्य पंडाल में प्रवेश हुआ| अंदर व्यवस्था में अनेक स्वयंसेवक थे जिनमे किसी पार्टी विशेष की छाप स्पष्ट दिखाई दे रही थी| पूरे पंडाल की सजावट और लगे साहित्यकारों की पोस्टर नुमा चित्रों के चुनाव में दक्षिणपंथी सोच स्पष्ट झलक रही थी| R.S.S. और संत समाज के अनेक साधुओं को विशिष्ट अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था| जिनका साहित्यिक योगदान कार्यक्रम के आयोजकगण  ही जानते होगें | हिंदी भाषा की सर्वसमावेशी विशेषता को नजरंदाज करते हुए वैचारिक तालिबानीकरण की परम्परा शुरू करते हुए प्रारंभ से ही हिंदी साहित्य के बड़े व प्रबुद्ध साहित्यकारों व भाषाविदों को आमंत्रित ही नही किया गया था| जिसका हिंदी समाज ने अनेक सत्रों पर अपने-अपने तरीके से विरोध भी किया था| विरोध की परम्परा,एक स्वस्थ्य बहस, एक स्वस्थ्य वैचारिकी को जन्म दे सकती हैं| और साहित्य ही इस परम्परा का संवाहक होता है| यदि हिंदी साहित्य के विश्व सम्मलेन में ही इस प्रकार की वैचारिकी हठधर्मिता दिखाई जा रही है तथा भाषा,साहित्य व साहित्य सम्मेलन को राजनैतिक पैतरेबाजी के हथकंडे के तौर पर प्रयोग किया जा रहा हो तो हिंदी के भविष्य के विषय में आशंका उठना लाज़िमी है, यह सोंचते हुए मै मुख्य पंडाल की तरफ बढ़ चला और सीधे दिनकर सभागार पंहुचा जहाँ उद्घाटन समारोह होना था| कुछ कुछ ही समय पश्चात प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी, सुषमा स्वराज, शिवराज सिंह चौहान, केशरीनाथ त्रिपाठी, मृदुला सिन्हा, रामनरेश यादव, किरण रिजिजू, डॉ.हर्षवर्धन के साथ मंच पर पहुँचे| ऐसा प्रतीत हो रहा था कि विश्व हिंदी सम्मेलन का मंच न होकर के सत्तासीन पार्टी  की राजनीतिक रैली हो| मंच में किसी भी साहित्यकार के लिए कोई भी स्थान नही था| उद्घाटन कार्यक्रम के आरम्भ में स्वागत भाषण शिवराज सिंह चौहान के पढने के बाद सुषमा स्वराज जी ने प्रस्तावना वक्तव्य दिया|सुषमा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारा 1०वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन साहित्य केन्द्रित न हो कर भाषा केन्द्रित है इसीलिए इसमें हमने साहित्यकारों को आमंत्रित नही किया है| परन्तु सुषमा जी इस बारे में कुछ भी नही बोली कि R.S.S. के जिन कार्यकर्ताओं और साधुओं को विशिष्ट अतिथि बनाकर आमंत्रित किया गया था वो कौन से भाषाविद लोग थे या जिन भी हिंदी के विद्वान या प्रबुद्ध लोगो को आमंत्रित किया गया उनमे से कितने भाषाविद है और उन्होंने हिंदी भाषा के विकास में कितना योगदान दिया है| यह भी बताय कि इसबार जो सामान्तर सत्र चलेंगे उनकी अध्यक्षता कोई साहित्यकार या भाषाविद न करके भारत सरकार के मंत्री करेगें| साथ ही सफाई भी देते हुए कहाँ कि अन्य आयोजनों में जो भी निष्कर्ष निकलकर आते हैं उनकी फाइल और संस्तुतियां तत्संबंधी विभाग को भेज दी जाती हैं परन्तु विभाग का मंत्री उसपर ध्यान नही देता है इसलिए उनको यहाँ अध्क्षता करवाई जा रही है जिससे जो भी संस्तुतियां आयेगी उनके संज्ञान में रहेगी साथ ही साथ वह अपने जिम्मेदारी से बच नही सकता हैं| 

तत्पश्चात  माननीय नरेन्द्र मोदी जी का उद्बोधन हुआ जिसमे मोदी जी ने भाषा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए भाषा को सर्वग्राही बताया तथा उसे विलुप्त होने से बचाए रखने का आग्रह किया अब ये आग्रह खुद से था या समाज से ये स्पष्ट नही हुआ| हिंदी भाषा की सुगमता की ओर ध्यान दिलाते हुए उन्होंने कहा कि मैंने इतनी अच्छी हिंदी चाय बेचते हुए सीखा है,साथ ही भाषाविदों को सुझाव दिया कि हिंदी को अखिल भारतीय स्वरुप प्रदान करने के लिए हिंदी में तमिल,बांग्ला,कन्नड़ आदि भारतीय भाषाओँ से शब्द लिए जाये जिनका हिंदी में स्थानापन्न पर्यायवाची शब्द नही है| हिंदी समाज जो कि माननीय प्रधानमन्त्री जी की तरफ आशापूर्ण नजरो से देख रहा था कि वह इस मंच से हिंदी के विकास व प्रचार-प्रसार के विषय में कोई नई उद्घोषणा करेगें, केंद्र सरकार की तरफ से कोई नई पहल करेगें तथा हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने की एक सार्थक पहल करेगें, उसे निराशा ही हाथ लगी|
कार्यक्रम-
 10 सितम्बर 2015 :  
Ø  उद्घाटन समारोह – स्थल: रामधारी सिंह दिनकर सभागार
Ø  स्वागत वक्तव्य- शिवराज सिंह चौहान
Ø  सम्मेलन प्रस्तावना- सुषमा स्वराज
Ø  उद्घाटन उद्बोधन- नरेन्द्र मोदी
Ø  विमोचन–गगनांचल पत्रिका  विशेषांक (द्वारा नरेन्द्र मोदी एवंअशोकचक्रधर)
Ø  विमोचन-प्रवासी साहित्य: जोहान्सबर्ग से आगे    (नरेन्द्र मोदी जी एवं कमलकिशोर गोयनका)
Ø  धन्यवाद ज्ञापन- अनिल वाधवा (सचिव विदेश सरकार)

उद्घाटन सत्र के पश्चात भोजन की व्यवस्था दुष्यंत कुमार सभागार(प्रतिनिधि) तथा काका कालेलकर सभागार(विशिष्ट अतिथि) में थी | तत्पश्चात विभिन्न समानांतर सत्रों का प्रारम्भ हुए,जिसकी अध्यक्षता मंत्रीगण कर रहे थे और हालात ये थे की वह किसी की बात सुनने को तैयार नही थे मात्र और मात्र अपने विभाग और सरकार द्वारा शुरू की गयी योजनाओं का बखान किये जा रहे थे| साथ ही अन्यत्र भी सत्र चल रहे थे(उनकी भी हालत कमोबेश यही थी) जो निम्न हैं-            
 समानांतर सत्र –  10-सितम्बर 2015
       सभागार – रोनाल्ड स्टुअर्ट मैकग्रेगर                 विषय- विदेशनीति में हिंदी
अध्यक्ष- श्रीमती सुषमा स्वराज (विदेश मंत्री एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री)
संयोजक – विपुल

      सभागार- अलेक्सेई पेत्रोविच वारान्निकोव             विषय -प्रशासन में हिंदी
अध्यक्षता – शिवराज सिंह चौहान (मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश)
संयोजक – डॉ. हरीश नवल

     सभागार-विद्यानिवास मिश्र                        विषय- विज्ञान क्षेत्र में हिंदी
अध्यक्षता- डॉ. हर्षवर्धन (विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्री, भारत सरकार )
संयोजक-श्रीमती किंकिणी दासगुप्ता
     सभागार –कवि प्रदीप           विषय- संचार एवं सूचनाप्रोद्योगिकी में हिंदी
अध्यक्षता- श्री रविशंकर प्रसाद (मंत्री,सूचना एवं संचार प्रद्योगिकी, भारत सरकार)
संयोजक- डॉ. रचना विमल
मुख्य वक्ता – श्री अशोक चक्रधर,बालेन्दु शर्मा दधीच,आदित्य चौधरी आदि 

समानांतर सत्र –  11 -सितम्बर 2015 (सत्र-पूर्वाह्न)
      सभागार – रोनाल्ड स्टुअर्ट मैकग्रेगर  
      विषय- विधि एवं न्यायक्षेत्र में हिंदी और भारतीय भाषाएँ
अध्यक्ष- केशरीनाथ त्रिपाठी (महामहिम राज्यपाल- प.बंगाल)
संयोजक – श्री प्रदीप  
                             
     सभागार- अलेक्सेई पेत्रोविच वारान्निकोव           
     विषय –बाल साहित्य में हिंदी
अध्यक्षता – डॉ. बालशौरी रेड्डी
संयोजक – श्रीमती ऊषा पुरी

     सभागार-विद्यानिवास मिश्र                        
     विषय- हिंदी पत्रकारिता और संचार माध्यमों में भाषा की शुद्धता  
अध्यक्षता- श्रीमती मृणाल पाण्डेय
संयोजक-श्री राजेंद्र
वक्ता- श्री ओम थानवी, श्री आलोक मेहता,डॉ.नरेन्द्र कोहली,श्री राहुल देव
      
     सभागार –कवि प्रदीप          
      विषय- देश और विदेश में प्रकाशन : समस्याएं एवं समाधान   
अध्यक्षता-श्री बलदेव भाई शर्मा (राष्ट्रीय पुस्तक न्यास)
संयोजक- श्री प्रभात कुमार
मुख्य वक्ता- श्री अशोक गुप्त , श्री राजनारायण गति (मॉरिशस)

समानांतर सत्र –  11 -सितम्बर 2015 (सत्र-अपराह्न् )
      सभागार – रोनाल्ड स्टुअर्ट मैकग्रेगर  
      विषय- गिरमिटिया देशों में हिंदी
अध्यक्ष- श्रीमती मृदुला सिन्हा (महामहिम राज्यपाल- गोवा)
संयोजक – श्री मनोहर पुरी
                             
     सभागार- अलेक्सेई पेत्रोविच वारान्निकोव           
     विषय –विदेशों में हिंदी शिक्षण-समस्या और समाधान
अध्यक्षता – डॉ. प्रेम जनमेजय
संयोजक – श्री सतीश मेहता

     सभागार-विद्यानिवास मिश्र                        
     विषय- विदेशियों के लिए भारत में हिंदी अध्ययन की सुविधा   
अध्यक्षता- कमलकिशोर गोयनका
संयोजक-डॉ.अवनीजेश अवस्थी

      सभागार –कवि प्रदीप          
      विषय- अन्य भाषा-भाषी राज्यों में हिंदी   
अध्यक्षता-प्रो. एस.शेषारत्नम 
संयोजक- श्री वाई. लक्ष्मी प्रसाद

12 सितम्बर को पूर्वाह्न विभिन्न समानांतर सत्रों में संस्तुतियां पढ़ी गयी| लंच के पश्चात समापन समारोह प्रारम्भ हुआ| विद्वानों को विश्व हिंदी सम्मान प्रदान किया गया| मंच में अजीब सी व्यवस्था की गयी थी सभी सम्मानित विद्वानों को राजनेताओं के पीछे बैठाया गया था| हालाँकि ये कोई अचम्भित करने वाली बात नही रह गयी थी बाकी के दो दिनों की व्यवस्था और क्रियाकलापों को देखते हुए|

समापन सत्र की अध्यक्षता भारत सरकार के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने की| उनके समक्ष तीन दिन तक चले सम्मेलन में जो भी संस्तुतियां पारित की गयी उसे पढ़ा गया| समापन भाषण देते हुए राजनाथ जी ने हिंदी भाषा की वैज्ञानिकता, वर्णों के वैज्ञानिक संयोजन क्रम पर भी बात की तथा राष्ट्रभाषा व राजभाषा के मुद्दे को भी उठाया | उन्होंने कहा कि जहाँ तक मेरा मानना है हिंदी राष्ट्रभाषा बनाये जाने के सर्वथा योग्य है और ऐसा किया जाना चाहिए| ऐसा बोलते हुए शायद वह भूल गये कि वह किसी चुनावी सभा को संबोधित नही कर रहे थे अपितु वह भारत सरकार के गृहमंत्री है और उनकी सरकार केंद्र में पूर्ण बहुमत में हैं तथा हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने काम सरकार का है|

अंततः 10वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन हिंदी सम्मेलन न होकर विश्व हिन्दू सम्मेलन बन गया था| पुरे कार्यक्रम की रुपरेखा व आयोजन में आर.एस.एस. और भाजपा इकाई सक्रिय भूमिका में थी और उसकी वैचारिकी का प्रभाव जगह-जगह परिलक्षित हो रहा था | इस पूरे आयोजन से हिंदी के वरिष्ठ और प्रबुद्ध तथा महत्वपूर्ण विद्वानों, साहित्यकारों तथा भाषाविदों को एक वैचारिक संकीर्णता प्रदर्शित करते हुए दूर रखा गया था | विश्व हिंदी सम्मेलन के मंच को एक राजनैतिक दल विशेष और विचारधारा विशेष का मंच बना दिया गया| हिंदी के उत्कर्ष एवं विकास के लिए कुछ ठोस करने की जगह पर केवल बयानबाजी की गयी और घिसीपिटी पुरानी बातों को दोहराया गया| सारे राजनेताओं ने अपने-अपने भाषण में इस बात को जरुर दोहराया कि आज वे जिस जगह पर खड़े हैं वह पद और प्रतिष्ठा उनको हिंदी के कारण ही मिली है, उन के अन्दर आत्मविश्वास हिंदी ने ही जगाया है, परन्तु हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के मुद्दे पर इनके अंदर का आत्मविश्वास समाप्त हो जाता है | अतः निष्कर्ष रूप में कहना होगा कि समस्त हिंदी जनों को मिलकर अपने-अपने स्तर पर हिंदी के विकास और उत्थान के लिए प्राणप्रण से प्रयास करना होगा| सरकार अथवा इस प्रकार के आयोजनों से हिंदी के विकास की आशा करना बेमानी होगी |       
     
(शिव त्रिपाठी कुमाऊं वि.वि.नैनीताल में हिंदी के शोधार्थी हैं।)                              

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