रेल
(1)
माँ बाप ने तो
केवल चलना सिखाया
जिसने दौड़ना सिखाया
वह तुम थी ….
रेल
भारतीय रेल….
(2)
जब मेरे मन में पहली बार
घर से भागने का विचार
कौंधा
तो सबसे पहले
तुम याद आई थी,
रेल..
भारतीय रेल
फ़िर जिस ने भागने से मना किया
समझाया और लौटाया भी,
वह तुम थी!
रेल
भारतीय रेल…
(3)
कुछ भी हो
इस देश में बहुतेरे लोग
मेरी तरह
कर्जदार हैं तुम्हारे,
वह तुम हो..
जो कभी तगादा नहीं करती!
रेल
भारतीय रेल…
(4)
कोई भी हो
बँधा तो रहता ही है,
जात पात में
ऊँच नीच में
पर तुम हो
केवल! तुम…
जो इस बंधन से मुक्त,उन्मुक्त हो,
रेल
भारतीय रेल…
(5)
ज़िन्दगी तो रोज ही
उतर जाती है पटरी से
पर एक तुम हो
जो गुजार देती हो अपना जीवन
पटरियों पर ही
रेल
भारतीय रेल…
यात्राएँ
1-
बिना पैसे की यात्राएँ
ज्यादा रोचक होती हैं
ठीक वैसे ही,
जैसे ज़िन्दगी !
2-
किताबें बोझ हो सकती हैं
मगर
यात्राएँ नहीं,
किताबों के पात्र
यात्राओं में
ज़्यादा सहज होते हैं..
3-
किसान की भाषा में कहूँ, तो
यात्राएँ,
खाद-पानी होती हैं,
बिना इनके
लहलहाना संभव नहीं।
4-
बिना कैमरे के भी
होती हैं
यात्राएँ,
गवाही के लिए
चाँद है, सूरज है
और तस्वीरें …….
उसे रास्ते दफना के
एल्बम बना देते हैं।
5-
किताबों में बहुत हद तक
झूठ हो सकता है,
मग़र यात्राएँ……
यात्राओं में ऐसा कुछ नहीं होता।
किताबों में भूत होते हैं
यात्राओं में नहीं होते,
कहीं नहीं-
सिर्फ़ डराते हैं..
6-
कुछ करें न करें..
पर आदमी को
सूखने नहीं देती हैं,
यात्राएँ..
7-
छोटी बड़ी नहीं होती,
सुरीली होतीं हैं
यात्राएँ…
सिर्फ़ यात्री पहचानते हैं,
इनके
सुर और ताल
गाँव, घर और शहर
याद न करना घर की
रोटी
घर का दाना
शहर की दुनिया में जब आना
मत घबराना
बड़ी खोखली है यह
दुनिया
थोड़ी चोचली है यह दुनिया
किसिम-किसिम के जीव यहाँ पर
इनसे बचकर आना-जाना
मत घबराना…..
शहर की दुनिया में
जब आना
गली शहर की मुस्काती
है
फ़िर अपने में उलझाती है
इस उलझन में फँस मत जाना
शहर में रुकना है मज़बूरी
गाँव पहुँचना बहुत ज़रूरी
गाँव लौटना मुश्किल है पर
मत घबराना…
समय-समय पर आना-जाना
चाहे जितना बढ़ो
फलाने
स्याह पनीली आँखों से तो
मत टकराना
धीरे-धीरे बढ़ते जाना
कुछ भी करना,
हम कहते हैं घूँस न खाना
शहर की दुनिया में जब आना
मत घबराना…..
जब भी लौटा हूँ मैं
घर से
अम्मा यही शिकायत करती
झोला टाँगे जब भी निकले
मुड़कर कुछ क्यों नहीं देखते
अब कैसे तुम्हें बताऊँ अम्मा
क्या-क्या तुम्हें सुनाऊँ अम्मा
तुमको रोता देख न पाऊँ
तू रोये तो मैं फट जाऊँ…
सच कहता हूँ सुन लो अम्मा…
यही वज़ह है सरपट आगे बढ़ जाता हूँ
नज़र चुराकर उस दुनिया से हट जाता हूँ
आँख पोंछते रोते-धोते थोड़ी देर तक
पगडंडी पर घबराता हूँ
किसी तरह फ़िर इस दुनिया से कट जाता हूँ
वही सबेरा
शाम वही है
साल बदलने से
क्या होगा?
ताम वही सब, झाम वही सब,
अपने अल्लाह राम वही सब,
साल बदलने से क्या होगा ?
टिकट काटती लड़की
हल्की पतली नाक
और चमकती आँख
गेहुँआ रंग, घने बालों में
हल्का होंठ हिलाकर बोली
चलो बरेली चलो बरेली
बस के अंदर टिकट काटती
टिकट बाँटती लड़की….
गले में काला झोला
टाँगे
हँस-हँस कर बढ़ती है आगे
बहुत आहिस्ता पूछ रही है
कहाँ चलोगे??
कान के ऊपर फँसा
लिया है
उसने एक कलम
हँसकर शायद छिपा लिया है
अपना सारा ग़म
उसी कलम से लिखती जाती
बीच-बीच में राशि बकाया,
बहुत देर से समझ रहा हूँ
उसकी सरल छरहरी काया….
बस के अंदर कोई
फ़िल्मी गीत बजा है
देखो कितना सही बजा है…
“तुम्हारे कदम चूमे ये दुनिया सारी
सदा खुश रहो तुम दुआ है हमारी।”
घूम के देखा अभी जो
उसको,
टिकट बाँटकर
सीट पे बैठे
पता नहीं क्या सोच रही है
किसके आँसू पोंछ रही है.
कलम की टोपी नोच रही है..!
बहुत सुन्दर रचनाएँ
अतिसुन्दर। संकलन
आपकी रचना बहुत सुन्दर है। हम चाहते हैं की आपकी इस पोस्ट को ओर भी लोग पढे । इसलिए आपकी पोस्ट को "पाँच लिंको का आनंद पर लिंक कर रहे है आप भी कल रविवार 9 अप्रैल 2017 को ब्लाग पर जरूर पधारे ।
चर्चाकार
"ज्ञान द्रष्टा – Best Hindi Motivational Blog