दिव्या श्री हिन्दी की युवतर कवि हैं। उनकी कविताएं अपने क्रिया-व्यवहार और अनुभव में आंचलिक के तद्भव से लेकर शास्त्रीयता के तत्सम तक एक बड़े कैनवास पर उकेरी गई कविताएं हैं। अनुनाद पर दिव्या श्री का यह प्रथम प्रकाशन है। एक अत्यन्त प्रतिभावान और संभावनाशील कवि का यहां स्वागत है। दिव्या श्री जैसी नयी ऊर्जा के साथ अनुनाद के लिए पुन: सक्रिय होना हमारे लिए सुखद है।
– अनुनाद
बारिश ईश्वर का दिया तोहफ़ा नहीं
वे बहनें नहीं आती हैं नैहर सावन में
जिनके भाई नहीं होते
वे कल्पना में ही व्यतीत करती हैं माह
नहीं लगातीं आलता अपने पांव में
मेंहदी का रंग फीका लगता है उन्हें
सप्ताह भर पहले से ही
वे नहीं जातीं बाजार
सजी राखियां देखकर
भाई याद आता है उन्हें
बारिश ईश्वर का दिया तोहफ़ा नहीं
आंसुओं की नदी है उन बहनों के लिए
जिन्हें एक धागा नसीब नहीं हुआ
सावन माह है हरियाली का
ये नहीं समझ पाईं वे बहनें
जिनकी आँखें रहीं हमेशा भरी-भरी
बिन गुनाह पश्चाताप में डूबी बहनें
हर बार सुन लेती रहीं वे बातें
जो कहे जाते हैं अब भी अबूझ शब्दों में
कई बहनों का भाइयों के इंतज़ार में नहीं हो सका मुंडन
कई बहनें अपने से बड़े को ‘खाकर‘ ही पैदा हुई
और कई तो पीठिया के जन्म लेते ही निगल गई उसे।
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कुंजी
ताला बनाने से पहले
बनाई जाती है उसकी कुंजी
प्रेम चुनने से पहले जीवन सुनिश्चित करता है मृत्यु
कहानी पूरी जिंदगी होती है
कविता उसका निचोड़
मैंने जीवन को जीवन की तरह नहीं जिया
दुःख में अपनी हथेली की जगह
उसे ही मान लिया वो हथेली
जिसकी गर्माहट में दुःख पिघलकर पसीना हुआ करता था
दुःख अब भी है, हथेली बहुत दूर
ये दुःख अब उन सभी दुखों से भारी है!
मन जितना व्यथित है
आँखें उतनी ही सूनी
एक प्रेम के चले जाने से
कितने निरर्थक हो जाते हैं हम
जबकि प्रेम का जाना कभी बुरा नहीं होता
बुरा होता है, प्रेम के जाने को सहन न कर पाना
उसके जाने के बाद
पहली बार लिख रही हूँ कविता
मेरे प्रिय कवियो और प्रेमियो !
माफ़ करना मुझे
मैंने लिखने की कोशिश भर की है
***
याद रहे ओ जाँ- निसार
लिख सकती हूँ अपनी कविता में
वे सारे दर्द जो तुमने दिए थे
गुलाब के फूल से लेकर उसके कांटों तक का
बखान कर सकती हूँ मैं
प्रेम में ही नहीं
तक़लीफ़ में भी कविताएँ ही साथ देती हैं
गर पूछो मुझसे सबसे महफ़ूज़ जगह
तो कमरे का अंधेरापन होगा वह
न होगी रोशनी, न डर होगा उसे खोने का
जैसे सबसे माक़ूल होता है एक तरफा प्रेम
कि प्रेम की हिफ़ाज़त ख़ुद ख़ुदा ने भी नहीं की
मैं तो शहज़ादी ठहरी एक ग़रीब बाप की
हमारे बीच
केवल दुआ-सलाम भर के रिश्ते नहीं थे
ओ परवरदिगार, मेरे मौला
इल्तिज़ा है मेरी
मेरे महबूब को उसकी मुहब्बत क़ुबूल हो
पर याद रहे ओ जाँ- निसार
आजिज़ी में भी दरख़्त अपने पत्ते बदलते हैं
जड़ें नहीं।
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मेरी कविताएँ मेरी मृत्यु से शापित है
सबसे पहला ख़त शब्दों से नहीं
स्पर्शों से लिखा गया
उसमें अक्षर नहीं भाव थे
देह नहीं आत्मा थी
साथ नहीं प्रेम था
मैंने पहले ही ख़त में कर दी चूक
प्रेम की जगह दुःख लिखकर
गोया दुखद ही रहा मेरा जीवन
मैंने ख़त लिखने की उम्र में कविताएँ लिखीं
कविताओं में प्रेम की जगह स्त्री अस्मिता की बात कही
जब उम्र ख़त लिखने की नहीं रही
दूर बैठा प्रेमी वक़्त-बेवक़्त याद आने लगा
वर्षों पहले हम एक-दूसरे से दूर हुए थे
कविताओं ने हमारी दूरियों में भी एक नई जगह दी थी
दुनिया कहती है कवि ज़िंदा रहते हैं अपने शब्दों में
अपनी मृत्यु को कवि जो कविता कहता है
कविताएँ कवि के मरने के बाद ज़िंदा रखती है यदा-कदा
पर यक़ीनन कवि अपनी कविताओं में कितनी बार मरता है
यह कौन जानता है?
मेरी कविताएँ मेरी मृत्यु से शापित है।
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एक बूंद आँखों का पानी
स्वप्न देखती हूँ
पीली फ्राक पहन कर
मैं सरसों के खेत में झूम रही हूँ
मगर फूल खिलने बाकी हैं अभी
बगल के खेत में कोई बच्चा चारा काट रहा है
मैं हतप्रभ हूँ देखकर
ऐसा कोई नहीं जो उसे
क्षितिज की रोशनी का रास्ता बता दे
उदासी से भरी हुई मैं
कि अचानक मेरे आँसू लुढ़कत- लुढ़कते
कलियों पर जा गिरे
सरसों के फूल लहलहा उठे
सूर्य अस्त होने को है
उसकी लालिमा ने क्षितिज का रास्ता ढूंढ़ लिया है
एक बूंद आँखों का पानी
मन के कीचड़ को साफ कर जाता है
और बारिश की बूंदें
सावन जैसी हरियाली का उत्सव मनाती हैं।
***
परिचय
दिव्या श्री, कला संकाय में स्नातक कर रही हैं। कविताएं लिखती हैं। अध्ययन में अंग्रेजी साहित्य एक विषय है और अनुवाद में भी रुचि रखती हैं। बेगूसराय बिहार में रहवास।
प्रकाशन: हंस, वागर्थ, वर्तमान साहित्य, समावर्तन, ककसाड़, कविकुम्भ, उदिता, इंद्रधनुष, शब्दांकन, जानकीपुल, अमर उजाला, पोषम पा, कारवां, साहित्यिक, हिंदी है दिल हमारा, तीखर, हिन्दीनामा, अविसद।
ईमेल आईडी: divyasri.sri12@gmail.com
तुम अद्भुत हो divyshri
मेरा आशीष ! खूब लिखो ।
Nyc💙
अच्छी लगी कविताएं
बारिश ईश्वर का दिया तोहफा नहीं
दिव्या श्री अपनी कविताओं में प्रयोगधर्मिता के साथ ही नवीन और पुरातन के संतुलन का ताना बाना बुन रही है।