गीता गैरोला अपने यथार्थ को लिखती भी हैं। उनके संस्मरणात्मक गद्य की एक महत्वपूर्ण पुस्तक कुछ समय पहले प्रकाश में आयी थी। वे कुछ समय पूर्व गम्भीर रूप से अस्वस्थ भी रहीं और उन दिनों का दस्तावेज़ सम्भावना प्रकाशन हापुड़ से छप कर आ रहा है।
एक महत्वपूर्ण पुस्तक उनकी कविताओं की शीघ्र ही प्रकाश में आने को है! ‘समकाल की आवाज़’ शृंखला में प्रकाशित होने जा रहे इसी संग्रह से उनकी कुछ कविताऍं अनुनाद के पाठकों के लिए।
शेष
यहीं डोल रही है
तुम्हारी खुशबू से गमकती हवा
हाथी पर्वत की चोटियां और
नृसिंह मंदिर का फलक
बर्फ की पारदर्शी चादर से
ढक गया है
सर्दीली हवा से कांच की खिड़की
के अधखुले पट हिल रहे हैं
चीड़ और देवदार की चटकती
लकड़ी की निर्झर महक से
मन की गहन गुफाएं
रसमग्न हैं
आकाश तत्परता से छह ऋतुओं को
अपनी अंगुलियों में फेर रहा है
उत्तर से अष्ट मुखी शंख
अशेष रह गए स्पर्शों के अदृश्य आलापों को
स्वर लहरियों में फूंक रहा है
आकाश है बर्फ है
पानी है पेड़ है
बारहों ऋतुओं में ठहरा
तुम्हारा स्पर्श
शेष रह गया है
***
तुम्हारा नाम
काले घने नैनी पर झुके बादलों से
स्वाती नक्षत्र में निकली और ठहर गई
पहली बूंद तुम्हारे लिए
बर्फ की सफेदी के बीच
खिला इक्का दुक्का बुरांश की
लाल बर्फ में तैरती पंखुरिया
तुम्हारे नाम
ताजी बर्फ के ऊपर मध्यमा से लिखा
तुम्हारा बिना लिखा नाम गूंजने लगा
आसमान के मौन में घिर आए मौसम की
ठिठुरन तुम्हारे नाम
खिड़की की कांच पर जमी भाप पर
तर्जनी से लिखा तुम्हारा नाम
भाप के साथ हवा में बिखर गया
कोहरे से ढकी नैनी में तैरते बत्तखों के जोड़े ने
चोंच मिला कर चुम्बन लिया
नैनी की अथाह गहराई में
कौन जन्मा होगा
तुम्हारे नाम के साथ
शेर के डांडे से हटे बादलों के बीच
नीले टुकड़े से झांकती पूर्ण चंद्र की
सीढ़ियों पर प्रतीक्षा रत उजली हंसी
भोर के तारों को नक्षत्रों से उतार लाती है
तुम्हारे नाम के साथ लिखती है
आसमान उजास बर्फ और
नैनी के विस्तृत वक्षस्थल पर तैरती
बत्तखों की एक जोड़ी
***
वैदेही
देह में रह कर विदेह होना
स्त्री–सूत्र है हृदय का
इसका विस्तार अनंत आकाश तक है
देह के अंतर से
देह के अंतरस्थ तक
विस्तृत मुखर मौन में
व्याप्त
जीवन मृत्यु के राग में
छह ऋतुओं के बारह मौसम
शेष होते हैं
अनंत दिगंत तक
निशेष होते हुए
गोधूली बेला के आगमन में
बहती मंद पवन के साथ
अशेष हो जाना
वैदेही
***
बैरागी-सी
दुआएं दी और शाप भी
दीप जलाए मंदिर के अंधेरे कोनों में
जीवन बना लिया
रात्रि के सूर्य को
मृत्यु से छांव दी
बरसते रेगिस्तान से
सरदीली हवाएं आती रही
शमशान की चिता से
मौन के स्वर उठे
मृत्यु से जीवन सांसे आने लगी
बैराग से राग जागा
अंधकार से जला दीप
उड़ते जल से मुक्ति हुई
अंत के अंदर से अनंत निकाला
सातों इच्छाओं की स्मृति से
निकाला मलय पवन
भ्रमर के पंखों से लिया पराग
पाताल लोक तक झुकाया ब्रह्मांड
समय के एकांत में घूमती
मै
प्रेम राग की बैरागी
***
घर
लाल छत वाला
जिसकी खिड़कियां खुलती हों
घने बांज के जंगल में
गुच्छे बुरांस के
आनंद से देहरी पर झूमते हों
हवाएं आराम करती हों
आकाश के दाह में
पृथ्वी के एक छोर पर
हिम जल से भरा गदेरा आकुलता से बहता हो
धूप को चुराने को
बारिश से लिखें प्रेम
किताबों से भरा हो एक कमरा
जिसमे लिपटा हो समय
किसी उजले कोने की जमीन पर
बिछा हो एक बिस्तर
जो मन के कोलाहल को मौन से जोड़ दे
दरवाजों पर स्वप्न खड़े हो
बसंत मालती की महक लिए
रसोई के किनारों पर ठहरी हो मेरे नाम की बूंद
बेपरवाह पत्तियां करवटें बदलती रहे
दूर सामने वाले खेत में फूलो से भरा रहे पदम वृक्ष
उसकी छाया में मेरी सुबहें कोमल ऋषभ में
गाती रहे राग भैरव
दूर अनंत से एक फाख्ता किताबों के मध्य
सेवती रहे अपनी आने वाली संतति
और बसंत अपनी नमी को सहेज कर
बेपरवाह नंगे पैरों से चलती जिंदगी को
एक दरवेश की तरह सहलाता रहे
घर की देह में
एक घर बनाना था
***
मेरे आंगन में बसंत
बसंत
तुम लौट के आना
जैसे आते हो हर बार
आंगन के केंद्र में
एक स्वप्न पड़ा है भुरभुरी मिट्टी के बीच
चुपके से उतरना एक शाम
बांसुरी में भरे मालकौंस
मन की सोलह ऋतुओं में उतरना
गिराना प्रेम की सोलह बूंदे
जब तुम कहोगे
मै दसों दिशाओं की आकुलता लिए
दरवाजे पर गिरा हूं
तुम्हारी आश्वस्ति में
तुम्हे लेने आया हूं
मेरे हृदय वास में
पतझड़ के साथ वसंत रहता है
विदाई ही मेरा मिलन स्थल है
तुम केंद्र को देखना
एक स्वप्न रखा है
चुपके से छूना
कोमल पत्तियां प्रतीक्षा रत
***
पुकारो
पृथ्वी पर
पर सोलह कलाओं से
परिपूर्ण चांद रात है
मीत मेरे
वृष्टिजल से सिंचित देह
अर्द्ध मूर्च्छाओं में है
लौकिक आलौकिक पोटली की
ध्वनियां अचेत है
अनात्म प्राण
छोड़ता है सुगंध
आठोत्तरी के एक सौ आठ दाने
ब्रह्मांड से छिटके नक्षत्रों की तरह
अपनी उद्दाम इच्छाशक्ति से
अविच्छिन्न
अंगुलियों की पोरों पर थिरक रहे है
ओ अनाम
इस अचेतन को
पृथ्वी के अंतिम सिरे से
पुकारो
***
एक एक पंक्ति अपने आप में संपूर्ण कविता है। संवेदनाओं और प्रकृति सौंदर्य से परिपूर्ण गीता जी का काव्य बहुत ही समृद्ध है। उनके उज्जवल और स्वस्थ जीवन के लिए अनंत शुभकामनाएं।