देवेश पथ सारिया के पास जीवनानुभवों का एक समृद्ध विस्तार है। भारत से ताईवान तक के रहवासी होने के अनुभव और धरती से अंतरिक्ष के कार्यक्षेत्र के अनुभव उन्हें जीवन और उसकी हलचलों को देखने की एक निजी दृष्टि देते हैं। यह दृष्टि उनकी कविताओं में दिखाई देती हैं। वे न सिर्फ़ हिन्दी के समकालीन सृजन-संसार में रचनात्मक आवाजाही रखते हैं, बल्कि अपनी कविताओं में इस संसार से संवाद भी करते हैं। कवि की इन कविताओं का अनुनाद पर स्वागत है।
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ताइवानी बैंक में एक दिन
हल्का-सा जी दुखा
टिक मारते हुए
बैंक के फॉर्म में आय के तीन विकल्पों में से
सबसे कम सालाना कमाई वाले विकल्प पर
मुझे ढांढ़स बंधाने को
बैंक कर्मचारी कहती है
वह भी उसी आय वर्ग में ठहरती है
हम दोनों तय करते हैं
राष्ट्रपति त्साई से कहेंगे
हमारी तनख्वाह बढ़ाएं
फॉर्म के अगले कोष्ठक में पहुंचाएं
हवाई हाय-फ़ाइव दे, हम हंसते हैं
बैंक कर्मचारी ने देखे हैं
हमारी आय वर्ग में सबसे कम कमाने वाले लोग
और, उच्चतम आय वर्ग में शामिल व्यक्ति भी
वह बताती है—
रईस लोग
बड़े गंभीर होते हैं
फॉर्म में टिक मारते समय।
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लोक
तुम उसे किसी गिनती में नहीं गिनोगे
और उसे इसकी ज़रुरत भी नहीं है
तुम्हारे बाज़ार की भीड़ में शामिल होने
वह यहाँ आया ही नहीं है
मिट्टी में सना
मां-बोली से बंधा वह
लोक कोई ‘चोखी ढाणी’ नहीं है
न ही भव्य सुपर मार्केट के किसी
‘विलेज-थीम’ रेस्त्रां में
माहौल बनाने को टंगी
बोरी और लालटेन
लोग-लुगाई, माटी-बोली से बनता है-
लोक, एक अलहदा नैसर्गिक रंग
देश, बहुतेरे लोकों का समुच्चय
लोक गायक के सुर, तानसेन की नायीं*
लोक गायिका, कोयल माई
लोक देवता, सबसे बड़ा पनमेसरा
लोक कवि, गोबर में सनी भैंस को
चंदन लेपित देखता।
*की नायीं – की तरह
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विद्रोही तगड़ा कवि था
(रमाशंकर यादव विद्रोही के लिए)
ओ आदिवासी, मेरे वनवासी
ओ नर-वानर
जेएनयू के बीहड़ में घूमते
पेड़ों के नीचे सोते
खांसते, बलगम थूकते
थकती रही देह तुम्हारी
तुम्हारे दम तोड़ने के बाद
घुलमिल गए निस्सीम के साथ
तुम्हारी कमीज़ की जेब में बैठे दोनों बाघ
बीड़ी के धुएं का छल्ला बनाते हुए
तुम्हारे प्रस्थान के बाद गुजरे वर्षों में
बुलंद हुई है औरतों की आवाज़
वे मांगने लगी हैं कल्पों का हिसाब
लगी हैं बिछाने अपनी अदालतों की मेज़
पसीने में लथपथ वे मुस्कुराती हैं
आसमान में तैरते बादल को देख
क्रुद्ध हैं अब भी तुम पर
पुरोहित, राजा और सिपाही
वे नहीं रखना जानते
मृतक विद्रोही के सम्मान की भी मर्यादा
धरती में गहरे जमा हुआ भगवान
देखता है तमाशा तमाम
तुम्हारे मरण पर मसीहा
ईश्वर के स्तुति गीत गाते हैं
नहीं जानते वे
कि मरा हुआ विद्रोही
मसीहाओं से और ऊँचा हुआ जाता है
आती है तुम्हारे लिए पुकार
मोहनजोदड़ों के तालाब की अंतिम सीढ़ी से
मिस्त्र के पिरामिड और चीन की दीवार बनाने में
मरखप गए मजदूरों की हड्डियां
तुम्हारे अस्थि कलश से
कुछ कण राख मांगती हैं
उनकी ध्वनि की आवृत्ति नहीं है
अंध भक्तों की श्रव्य परास में
उनकी चीख़ कभी नहीं सुनाई दी
आकाओं की जमात को
और उनकी पिछलग्गू पाँत को
आकाशीय घटक तत्व तुम्हारा
बूँद बन गिरा है एक नदी में
नदी जो भले न रही हो
तुम्हारी नानी की आंख
जा मिली है उसी सागर में
कोई नहीं मरा तुमसे पहले
न किसी का भाग्य विधाता
न कोई बूढ़ा काका
तुम्हारी चिता जले अब सालों हुए
फिर भी हैै गूंजता यह स्वर-
“विद्रोही बहुत तगड़ा कवि था”।
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उम्मीद, पखेरु का घर
रोहित ठाकुर जब लगाते हैं
अपनी कविताओं के साथ
प्रयाग शुक्ल के बनाए चित्र
तब आभास होता है सहसा
कि शब्दों का ढांचा
चित्र में खड़ा है
इमारत, झाड़फानूस या किसी और तरतीब-सा
और जो पसरा है कैनवास पर
वही कविता बनकर बह निकला है
मसलन, एक बंद दुनिया के कोटरों में
कोने लांघने की मायूस कोशिश करते लोग
उम्मीद, एक पखेरु का घर
हर चित्र में
बहने को आतुर
एक कविता होती है
कहीं होता है कोई चित्र
कविता की आत्मा को दर्शाता
बहुत कम चित्रों को मिल पाता है उनका कवि
बहुत कम कविताओं का उनका चितेरा
सबके नसीब में कहाॅं होता है सोलमेट?
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उनका वैमनस्य
बिच्छू का डंक उतारने के मंत्र में
चुटकी लेते हुए वे जोड़ देते हैं
विरोधी खेमे के नेता का नाम
बिच्छू के प्रतीक के तौर पर
हास्य तात्क्षणिक होता है
जबकि मंत्रों में हुई घालमेल चिरंजीवी
उनका वैमनस्य
भाषा में जड़ें जमा रहा है
प्रदूषित करता हुआ
भविष्य के होठों को।
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वैज्ञानिक शोध ने मुझे सिखाया
कि किसी परिणाम के कोई मायने नहीं
जब तक उसमें त्रुटि ना बताई जाए
एक छोटे से पैमाने से मापकर
जो हम बोल देते हैं फटाक से—
फलाँ वस्तु की लंबाई तीन सेंटीमीटर
बिना त्रुटि के है वह बकवास
या मात्र एक आभास
वास्तविकता के आसपास
त्रुटि आंकलन के तरीकों में है एक यह भी
कि दोहराते जाओ मापन का कार्यक्रम
अनंत बार में पहुंच जाओगे शुद्धतम मान तक
अनंत एक आदर्श स्थिति है
वह केवल सैद्धांतिक रूप में संभव है
शुद्धता अस्ल में, एक मिथक है
बहुत करीब से परखने पर
कुछ भी नहीं होता आदर्श
सममितता की होती है अपनी सीमा
माइक्रोस्कोप से देखने पर धूल
त्रिविमीय विस्तार में समान त्रिज्या की
गोलीय रचना नहीं होती
एक बढ़िया कैमरे से ज़ूम करके देखने पर
रेंगने वाला वह लंबा कीड़ा मुझे लगा
पुरानी हिंदी फिल्मों के खलनायक जैसा
दुराचारी नहीं, कैरीकेचर-सा
‘घर-घर मिट्टी के चूल्हे हैं’
इससे आगे की पंक्ति
मुझे मेरे एक रिश्तेदार ने सुनाई थी—
‘पैंट के नीचे सभई नंगे हैं’
उस दूर के रिश्तेदार को
मेरे क़रीबी रिश्तेदार
ख़ानदान की नाक कटाने वाला बताते थे।
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अँधेरे के असफल जिप्सी
लगभग सभी बच्चों की
कल्पनाओं में
शामिल रहती है
सितारों की फंतासी भरी दुनिया
ताज़ा जवान ख़ून
भावनाओं के फिसलन भरे मोड़ पर
हो जाना चाहता है एक जिप्सी
बच्चे में
कूट-कूट कर भरी होती है
जिज्ञासा
और युवाओं के पास
होते हैं कुछ इंक़लाबी नारे—
कुछ कर गुज़रना
या सिमटना बेफ़िक्री में
आसपास,
इन बच्चोंं और युवाओं के
होते हैं
कुछ अड़ियल वयस्क, प्रौढ़ और बुज़ुर्ग
जिनकी ठसक और दख़ल से
ख़ैरियत से आबाद रहते हैं
आजीविका के अधिक सुरक्षित विकल्प
जिज्ञासाएं रीत जाती हैं
जिप्सीपन भी कहाँ रह पाता है ज़िंदा
बूँद-बूँद रिसता
ख़ाली होता है घड़ा
परियों की कहानियों
और जुनूनी गीतों का
एक ‘सुरक्षित’ काम में लट्टू की तरह नाचते
किसी दिन देखते हैं ये
आँखें फाड़ तारे देख रहे आदमी को
और एक हूक सी उठती है
कहीं भीतर
जब कभी मिलते हैं ये
किसी अन्य असफल जिप्सी से
फुसफुसाते हैं-
“सब कुछ छोड़ हिमालय चले जाना है”
‘हिमालय पर …’
सोचते हुए
पुराने फिल्टर पेपर पर
उभरने लगता है भुतहा अतीत।
परिचय
सम्प्रति: ताइवान में खगोल शास्त्र में पोस्ट डाक्टरल शोधार्थी। मूल रूप से राजस्थान के राजगढ़ (अलवर) से सम्बन्ध।
1. कविता संग्रह: ‘नूह की नाव’ (2021) : साहित्य अकादेमी, दिल्ली से।
2. कथेतर गद्य: ‘छोटी आँखों की पुतलियों में (ताइवान डायरी)’ सेतु प्रकाशन, दिल्ली से शीघ्र प्रकाश्य।
3. अनुवाद: ‘हक़ीक़त के बीच दरार’ (2021): वरिष्ठ ताइवानी कवि ली मिन-युंग के कविता संग्रह का हिंदी अनुवाद।
अन्य भाषाओं में अनुवाद/प्रकाशन: कविताओं का अनुवाद अंग्रेज़ी, मंदारिन चायनीज़, रूसी, स्पेनिश, बांग्ला, मराठी, पंजाबी और राजस्थानी भाषा-बोलियों में हो चुका है। इन अनुवादों का प्रकाशन लिबर्टी टाइम्स, लिटरेरी ताइवान, ली पोएट्री, यूनाइटेड डेली न्यूज़, स्पिल वर्ड्स, बैटर दैन स्टारबक्स, गुलमोहर क्वार्टरली, बाँग्ला कोबिता, कथेसर, सेतु अंग्रेज़ी, प्रतिमान पंजाबी और भरत वाक्य मराठी पत्र-पत्रिकाओं में हुआ है।
साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशन: हंस, नया ज्ञानोदय, कथादेश, परिकथा, कथाक्रम, आजकल, वागर्थ, वर्तमान साहित्य, पाखी, अकार, अहा! ज़िन्दगी, कादंबिनी, मधुमती, बनास जन, बया, बहुमत, समयांतर, समावर्तन, अक्षरा,उद्भावना, जनपथ, नया पथ, कथा, साखी, आधारशिला, दोआबा, परिंदे, प्रगतिशील वसुधा, शुक्रवार साहित्यिक वार्षिकी, कविता बिहान, साहित्य अमृत, मगध, शिवना साहित्यिकी, गाँव के लोग, किस्सा कोताह, कृति ओर, ककसाड़, सृजन सरोकार, अक्षर पर्व, निकट, मंतव्य, गगनांचल, मुक्तांचल, उम्मीद, विश्वगाथा, पतहर, उत्तरा, उदिता, रेतपथ, अनुगूँज, प्राची, कला समय, प्रेरणा अंशु, पुष्पगंधा आदि।
वेब प्रकाशन: आउटलुक, सदानीरा, जानकीपुल, पोषम पा, दि लल्लनटॉप, डीएनए हिन्दी, हिन्दीनेस्ट, हिंदवी, कविता कोश, इंद्रधनुष, अनुनाद, बिजूका, पहली बार, समकालीन जनमत, संस्कृति मीमांसा, पोयम्स इंडिया, दालान, शब्दांकन, अविसद, कारवां, हमारा मोर्चा, साहित्यिकी, द साहित्यग्राम, लिटरेचर पॉइंट, अथाई, हिन्दीनामा।
समाचार पत्रों में प्रकाशन: राजस्थान पत्रिका, दैनिक
भास्कर, नवजीवन, प्रभात ख़बर, दि सन्डे पोस्ट।
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