अनुनाद

अनुनाद

हर्षिल पाटीदार की कविताएं

   पिता   

वे सिर्फ एक छत ही नहीं,
पेपरवेट भी थे.
जैसे ही हटे,
हम
कागज के पन्नों-से
बिखरते चले गए.
***

   यथार्थ    

जब मैं स्वयं को
सम्पूर्ण रूप से
पवित्र समझ चुका था,
उसी समय
एक मच्छर ने
फटी बनियान से बाहर झांकती पीठ पर बैठ
मेरा खून चूस लिया
और उड़ेल दिया ले जाकर,
वही कही, जहाँ मक्खियाँ भिनभिना रही थी.
***

   ब्याह    

 

एक दिन

उसका जीवन दो हिस्सों में बंट गया
और बदल गई
कई परिभाषाएं
उसके इर्द-गिर्द.
कुछ-कुछ बदला था उसका नाम भी
और पूर्णतः बदला था उसका पता.

उस दिन
माइग्रेशन का
सर्वश्रेष्ठ उदहारण बनी थी वो.
***

   पिता और बैल     

घर में
तीन किसान थे.
एक मर गया
तो दूसरा बुढ़िया गया.
और तीसरा
यह देख-देख कर
ज़िंदा
मर रहा है.
***

   जहां     

कल
जहाँ
दबी हुई चीख
दफ़न हो रही थी
अपने ही भीतर ,
उसी छत के ऊपर
आज
चन्द्रमा की
बाँट जोह रहा है
कोई.
***

   सभ्यता       

गर्भ में छुपा हुआ भविष्य
क्या ढूंढ पायेगा
हम में कोई सभ्यता
जैसे
हमने तराशा है
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा को.
या उनके हाथ
पोलिथिन की थैलियों और
डिस्पोजेबल बोतलों में ही
फंसे रह जायेंगे.
वैसे, जब भी सुनता हूँ
समकालीन परिदृश्यों में
विडम्बनाओं के स्वर,
हृदय धिक्कारता हुआ कहता है,
उन थैलियों और बोतलों के नीचे
राख़ ही छुपी मिले तो बेहतर होगा.
***

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