नदियां और बेटियां
(19 वर्षीय हिमानी, एक सुदूर पहाड़ी ग्रामीण इलाके से आयी लड़की, जो स्नातक के लिए महिला महाविद्यालय हल्द्वानी प्रवेश लेती है. साल भर खेल के क्षेत्र में जीवन सवारने लक्ष्य को लेकर महाविद्यालय के अनेकों प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करती रही. बैटमिन्टन में उच्चस्तर की सक्षम खिलाड़ी होने पर भी जिसके बेहतरीन खेल, भविष्य और प्रेरणा को आंतरिक गुटबाज़ी और प्रशासनिक ठगबाजों ने आगे नहीं बढ़ने दिया.)
जैसे सुदूर पहाड़ों से आती हैं नदियाँ
ऊँचे पर्वतों
ताज़ी हवा और
हरे पत्तों पर बिसरी ओंस की बूंदों को
उलांघकर मैदानों तक
ठीक वैसे ही हिमाल की बेटियाँ
उलांघकर आती हैं मैदानों पर
असंख्य देहलियाँ
अनगिनत भेड़ें
अलौकिक बुरूंश[1] और क्वेराल[2] के पुष्प.
मैदानों में आकर
नदियाँ सींचती हैं
तीव्र-निरंतर और नीरस
पिंजरों में बंद
शहरों के फड़फड़ाते ख़्वाबों को
फिर भी मोड़ दी जाती उसकी दिशा,
कैद कर लिया जाता है
उसका संवेग,
बदल दिया जाता उसका रंग
और
उसकी देह में ठूंसी जाती है
तमाम सभ्यताओं की गंध,
मैंदानों पर आकर
मेहनत और लगन से
बेटियाँ खींचती हैं
अपने सपनों की लकीरें
ईजा-बाज्यू[3] और दाज्यू[4] भेजते हैं दुआएं
भेजते हैं
काफल[5], ककड़ी, बिरुड़े[6] और घी
बेटियां जब बढ़ने लगती हैं
शहर में
अपने भविष्य के लिए
तभी
खींच लिए जाते हैं
उसके हाथ
हाशिये पर रख दिए जाते है उसके ख़्वाब
पूछे जाते हैं अनगिनत सवाल
निर्दोष जब लड़ती है
हक़ की लड़ाई
बोला जाता है गंवार,
पढ़ाई जाती हैं संस्कार और मर्यादाओं की पोथियाँ
बेटियों को सताया जाता है
दी जाती हैं
गालियां
मैदानों पर आने के लिए
उनके क़दमों को बाँध दिया जाता है
तोड़ दी जाती सीढ़ियों पर चढ़ने की आश
मोड़ दिए जाते हैं उनके रास्ते
छीन लिया जाता है उनसे
उसके जीवन का
हौसियापन[7].
***
1 सुर्ख फूलों का राज्यवृक्ष (Rhododendron)
2 कचनार (Bauhinia Variegata)
3 माता-पिता
4 बड़ा भाई
5 ग्रीष्मकाल में 4000-6000फीट पर लगने वाला पहाड़ी जंगली फल (Myrica Esculena) जिस पर अनेकों लोककथायें हैं
6 स्थानीय पांच-सात तरह की उगने वाली दालें
7 खुशमिजाज / बिंदासपन
भ्यास
(पहाड़ को छोड़ कर शहर में बसे ठेठ पहाड़ियों के लिए )
पहाड़ के सयाणों[8]
खुश रहो,
तुम्हारी ज़मीनें खरीदी जा रही हैं अब अच्छे दामों में
लेकिन
शर्त लगा लो
उस पैसे से तुम
भाबर में खरीदे प्लॉट की नींव को
दौड़ती सड़क के बराबर भी नहीं कर पाओगे,
और
याद रखना
एक दिन तुम्हारी ही नस्लें
तुम्हारे नाती-नातिनें, पोत-पोतियाँ
तुमको देंगे गालियां,
थूकेंगे तुम्हारी करनी पर
कोसेंगे तुमको कि
उस टैम[9] तुमने
जमीन, जंगल और पानी नहीं बेचा होता तो गति[10] ऐसी नहीं होती
हम ठैरे मिट्टी से अन्न उपजाने वाले,
पानी से घराटों को गति देने वाले,
पेड़-पहाड़ों और जंगलों में घूमते जंगल चलाने वाले
हाय !
तुमने झूठी ठसक के चक्कर में पीढ़ियाँ खराब कर डाली
आधा रह गया तुम्हारा संसार,
गांव में सरकारी सैप[11] हो गए
और शहर में भ्यास[12] पहाड़ी.
***
8 समझदार लोग
9 समय
10 बुरा समय होना
11 साहब
12 भुस्स / सहज / बुद्धू
ब्यू
(मेरे हिमाल के लिए )
जहां हिमाल से दूर
शहर काट रहा होता है
रात को दिन की तरह
उम्दा टेक्नोलॉजी और
स्वयं को बेहतर दिखवाने की होड़ में
लांघता है बैठे-बैठे
सफल होने के फॉर्मूले
नेक्स्ट वीकेंड को जबरदस्त रोमांच से भरने के लिए करता रहता है प्लान,
उसी समय उसका मन जूझता है
निरंतर उस जूते की तरह
जो महंगे शौक में खरीद तो लिया है
पर
पैर के तलवों में बराबर चुभन
बनाये हुए है
काटता है उसको
इनफीरीयोरिटी काम्प्लेक्स
चका-चौंध,
बाज़ारवाद
और
पूंजी की माया में लिप्त भ्रम
उसी भेड़चाल और रैट रेस से थोड़ा अलग-थलग
गाँव में
एक पिता सुबह-सुबह
घुघूत[13], कफुआ[14], गिणी[15], टेपुल्लिया[16]
हाय!
पता नहीं किन-किन
पक्षियों और भौरों की गुनगुनाहट से साथ उठकर
गिलास भर चहा खाकर
हल और हौल[17] जभाँधूत[18] कुमथलों[19] पर टिकाकर
दो बरस की
चेली[20] को साथ में लेकर
छिड़कता है अपने खेतों में
पुश्तैनी भकारों[21]-फॉउलों[22] में रखा अलौकिक ब्यू
बोता है धरती के सीने में गेहूँ
न्योली[23] की धुनों के साथ करता है
फसकबाजी,
दबाता है होंठों और दांतों के बीच मधु का नरम डोज
और
माँ
जो कि अभी पुनः माँ बनने वाली है
रोज धार चढ़ कर लाती है
एक पुसोलिया[24] हरी घास
गोठ[25] की धिनाली[26] के लिए चुनती है
दुधिलपात[27], बांजपात[28] और सालम[29]
काटती लाती है अपने हिस्से का मॉंगा[30]
बतकों[31] में निश्चिन्त कहती है
‘बुर जन मानि हाँ‘[32]
न्योली गाती हुई पहाड़ की छाती पर
उड़ेलती है
गोबर के दर्जनों भर डोके[33]
और फोड़ती डालती है अंसख्य
मिट्टी के डाले[34]….
आने वाली
नई पीढ़ी के लिए
***
13 फाख्ता
14 चैत के महीने में बासने वाली एक पहाड़ी कोयल
15 गौरैया
16 हिमालयन बुलबुल
17 दो बैलों का जोड़ा
18 अड़ियल/ ताकतवर
19 कंधे
20 बेटी
21 मिट्टी और गोबर से लीपा गया बड़ा लकड़ी का बक्सा
22 तांबे की घड़ा
23 एकल रूप से मुख्यतः विरह, विलाप, याद, प्रेम, सुख या दुःख में फूटा गीत
24 रिंगाल/बांस से बना एक शंकुनुमा डलिया जिसको पीठ पर लादकर घास/गोबर/मिट्टी आदि इक्कट्ठा कर एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है
25 गाय-बकरियों-भैसों को रखने का स्थान
26 दूध, दही, घी, छांछ
27 एक पेड़ जिनको गाय-भैसों को खिलाने से उनका स्वास्थ्य और दूध बढ़ता है
28 ओक के पत्ते
29 जंगली घास
30 घास उगने की जगह
31 बातें / गप्पें
32 कृपया बुरा मत मानना
33 पीठ पर लादे जाने वाली शंकुनुमा डलिया
34 बड़े-बड़े टुकड़े