फिलीस्तीनी मूल के माता पिता की संतान लोहाब आसेफ अल जुंदी का जन्म सीरिया में हुआ। अमेरिका में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद वहीं बस गए। अमेरिकी अरबी कविता के अनेक संचयनों में उनकी रचनाएं शामिल हैं। ए लांग वे,इनक्लाइंड टु स्पीक, नो फेथ एट ऑल इत्यादि उनकी कविता की चर्चित किताबें हैं।
तुम जंगली तो हम जंगली
होलोकास्ट झेल कर बच निकले लोगों
मुझसे बात करो
मैं समझना चाहता हूं
कि तुम्हारे नाम पर यह सब
जो किया जा रहा है
उसके पीछे क्या तुम खड़े हो?
मुझे लगता था
तुम जिन भयंकर हादसों से बच कर आए हो
उनसे तुम्हारी आत्मा ज्यादा सभ्य हो गई है।
बम कम जानलेवा या अधम नहीं हैं
तुम क्यों दूसरों से इतना डरते हो
कि उनकी जान लेने पर उतारू हो?
एक आंख के बदले हज़ार आंखें?
होलोकास्ट की संतानों
इस तरह वहशी मत बनो
कि लगे तुम्हारी आंखें ही फूट गईं हैं।
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दुनिया के ख़ात्मे की कविता
यह कविता किसी के लिए नहीं है
क्योंकि इसको पढ़ने वाला
कोई बचेगा ही नहीं।
यह कविता दूर-दूर तक फैले हुए
खंडहरों के बारे में है
सुलगते बुरादों और राख की है
यह कविता जलकर काले पड़ गए
मुर्दा दरख़्तों की है
आग से नष्ट संगमरमर की है
जो पहले नीले जवाहरात की तरह थे
अब उनकी स्मृतियां शेष हैं।
यह कविता उन आंसुओं के लिए है
जो पहले बाहर निकल कर बह लेते थे
जब आंखें हुआ करती थीं
तब आंसू भी थे।
यह उदासी से भरी कविता है
उन खंभों की तरह एकाकी निर्जन
जिनपर कभी शान से थिरकते थे झंडे
पुराने सपनों की तरह छिन्न भिन्न
कहीं कोई फाख्ता नहीं
न जैतून की कोई टहनी
अमन चैन का नामो निशान नहीं।
प्यार और नफ़रत से परे
जिंदगी और मौत से परे
आत्मा बिलख बिलख कर रोती है।
तभी सुदूर आकाशगंगा में जगमगाता है
एक सुंदर सितारा
और कविता खड़ी हो जाती हे
अपनी बात कहने को।
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गर्म चाय
बहुत साल हुए
मेरी दादी ने मुझे दिखाया था
कि गर्म चाय के गिलास में
चीनी डालकर कैसे मिलाना चाहिए
उन्होंने उंगलियों के बीच
छोटा सा चम्मच इस तरह पकड़ा
जैसे वह चम्मच न कोई नाज़ुक पंख हो
उन्होंने उसे बड़े प्यार के साथ
चाय के गिलास में डुबोया
और नीचे तले तक ले गईं
उसके बाद हौले हौले हिलाया आजू-बाजू
चीनी के दाने इधर उधर घूमने लगे
जैसे नीले आकाश में तैरते हैं
सफेद बादलों के टुकड़े
उसके बाद धीरे-धीरे घुल गए
दिखना बंद हो गया एक भी दाना…
मेरी आदत ग्लास में चम्मच डालकर
गोल-गोल घुमाने की थी
जिससे पूरा घोल गोल-गोल घूमने लगता
कभी-कभी उसमें से कुछ चाय
छलक कर बाहर भी आ जाती थी।
ऐसा क्यों होता है कि जब जब भी
अपने चाय के ग्लास में
चीनी का चम्मच डालने को होता हूं
मैं उसी पल पहुंच जाता हूं
अपने पुश्तैनी घर सलामिये
पाइन के ऊंचे पेड़ों के नीचे
धूप में रंग बिरंगी दरी डाल कर बैठे
घर के पिछवाड़े दादा दादी के पास?
मैं चाय के ग्लास में पहले तो
घुमाता हूं गोल गोल चम्मच
फिर बदल कर आजू बाजू
ऐसा करते करते दूर निकल जाता हूं
उन नटखट बादलों के संग संग।
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