अभाव कथा
कैसी रही होगी वह भूख
कैसा रहा होगा वह अभाव
जिसके चलते
टोकरी में काफल कम देख
एक मां ने इतना पीट दिया बेटी को
मौत हो गई उसकी
दूसरी सुबह जब
पता चला कि धूप से मुरझाकर
कम हो गए थे काफल टोकरी में
पछतावे में डूब
मां ने भी कर ली आत्महत्या
लोककथा कहती है
कि दोनों चिड़िया बन गईं
आज भी चैत के महीने
काफल वन में बोलती हैं जो
काफल पाको मैं नि चाखो
मां कहती है
हां हां त्वी नि चाखो।
जब भी सुनता हूं ये आवाजें
मन उदास हो आता है
लेकिन सुकून होता है
चलो वे दुबारा मानुषी नहीं बनीं
अच्छा ही किया लोककथाकार ने
***
बसंत वन में हाहाकार
अभी अभी तो वन में
बसंत का उत्सव
शुरू हुआ था
रंग बिरंगी परिधान पहन
बांज बुरुंश काफल फल्यांट…….
सजे धजे खड़े थे
वन मुर्गी,तीतर बटेर,न्यौली, काफुवा……
चहकर उनके कंधों पर चढ़े थे
काकड़, घुरड़,मलपुशी,शावक.…
इधर से उधर कूद फांद रहे थे
रंगों, गंधों,ध्वनियों का
कोई पारावार नहीं था
इतना निर्मल
इतना कोमल
इतना रंगीन
इतना संगीतमय
हर सहृदय को
अपने पास बुला रहा था
न जाने किस कोने से
एक चिंगारी भड़की
देखते ही देखते इधर से
जीभ लपलापती आग
उधर तक पहुंच गई
अनगिनत घरों
उनमें रहने वाले बच्चों
और उनकी माताओं को
लीलती चली गई ।
जो भाग न सके
कुछ झुलस गए
कुछ जली लाश में बदल गए
कुछ राख हो गए
पानी तक जल गया
हवा आग के साथ हो गई
चड़… चड़… चड़… चड़… तड़..तड़ ..तड़…तड़…
बड़े बड़े पेड़ टूटकर गिरने लगे
छोटे छोटे पौधों और घास पात की क्या कहें
मिट्टी पत्थर तक
अपनी जगह छोड़
घाटी को भागने लगे
आसमान धुंए से भर गया
देखते ही देखते
एक उत्सव हाहाकार में बदल गया
जहां अभी अभी बसंत आया था
वहां जले ठूंठ ,लाशें, राख,कालिमा
और दुःख,क्रंदन,श्मशानी नीरवता, स्तब्धता के अलावा कुछ नहीं बचा
***
वर्चस्व की चाह और झूठ
लोग बताते हैं कि
उसकी असली मां गांव में रहती है
यह भी बताते हैं कि जिसे वह अपनी मां कहता है
कुछ साल पहले तक दीदी कहता था उसे
जवानी के दिनों जहां जहां वह
नौकरी में पोस्टेड होती
वह उसके साथ साए की तरह रहता था
वह किसी नौकरी में नहीं है
लेकिन जब भी कहीं को जाता दिखे
या कहीं से आता दिखे
बिना पूछे ही कह देता है
कार्यालय को जा रहा हूं
या कार्यालय से आ रहा हूं
बिना प्रसंग के
आपसी बातचीत में कार्यालय का जिक्र अवश्य ले आता है
रौब गांठने के लिए
खुद को एक बड़ा अधिकारी बताता है
खुद को हर वक्त व्यस्त दिखाता है
जैसे सारे देश का बोझ उसी पर हो
यह दूसरी बात है कि
अक्सर चौराहों पर खड़ा
गपशप करता पाया जाता है
बातों में ईरान तुरान की फेंकता रहता है
उसे कभी किसी ने उसके कार्यालय में नहीं देखा
बचपन से लेकर अब तक की करामातों के
किस्से ही किस्से रहते हैं उसके पास
अपना प्रभाव जमाने के लिए
बढ़ा चढ़ाकर सुनाता रहता है उन्हें
भांति भांति की पोशाकें पहनने का शौक रखता है
आत्मीयता जताने को
किसी के भी गले लग जाता है
मुहल्ले में किसी का कोई काजकाम हो
या किसी का कोई निर्माण कार्य चल रहा हो
यह कहने में देर नहीं लगाता कि
जब भी कोई आर्थिक जरूरत हो
जरूर बताना
मेरे पास तो लाख दो लाख हर समय जेब में रहते हैं
लेकिन वक्त जरूरत पड़ने पर
पानी तक देने में आनाकानी करता है
अपने से कमजोर को हमेशा दबाकर रखता है
पुलिस प्रशासन को अपने जेब में समझता है
स्त्रियों को पुरुषों से कमतर मानता है
अल्पसंख्यकों पर धौंस जमाता है
पुरानी रीति रिवाजों और मान्यताओं का अंधसमर्थन करता है
और बातें हमेशा लोकतंत्र की करता है
खुद को बहुत पढ़ा लिखा बताता है
दुनिया का कोई भी प्रसंग क्यों न हो
उसके पास कहने के लिए कुछ न कुछ रहता है
चाहे कुछ भी न हो पता
तब भी तुक्के मार देता है
किसी भी व्यक्ति या स्थान की बात हो रही हो
उसके साथ अपना पुराना परिचय जोड़ देता है
जिस महफिल में खड़ा हो जाय
उसी को लूट लेता है
यह जानते हुए भी
कि वह झूठ बोल रहा है
विश्वास नहीं होता है
कि झूठ बोल रहा है
कोई कलाकार
फिल्म में भी नहीं बोल पाता होगा
इतनी सफाई के साथ झूठ
बहुत सारे लोग सच भी नहीं बोल पाते हैं
इतने आत्मविश्वास के साथ
उसे यह भी नहीं लगता है कि
सामने वाले उसके झूठ को पकड़ भी सकते हैं
या सबको पता है कि वह फेंक रहा है
एक झूठ के बचाव में
उसके पास हमेशा सौ झूठ तैयार रहते हैं
झूठ बोलते हुए ऐसा आत्मविश्वास
या तो मूर्खता से पैदा हो सकता है
या धूर्तता से
वर्चस्व का एक बड़ा हथियार है झूठ
इतिहास में एक तानाशाह था
सुना है वह बोलता था झूठ
पूरे आत्मविश्वास के साथ
उससे मिलती हैं इसकी बहुत सारी आदतें
कुछ कुछ चेहरा भी
डर लगता है इसके आत्मविश्वास को देखकर।