अनुनाद

पॉंच लघुकथाएं/  सुनील गज्‍जाणी 


   

      
   पानी    

  यूँ एक टक क्या आकाश को ताक रहे हो?”

नहीं, बादलों को!”

मगर आकाश तो एक दम सूखा है रेगिस्तान की तरह!”

हमारे खेतों-सा भी तो तुम कह सकते हो!”

हाँ, सही कहा तुम ने! सफाचट ना आकाश अच्छा लगता है ना खेत!”

लिछिया, अपनी ज़्यादा उम्र तो आकाश को निहारते हुए ही बीती है और…!”

और लगभग अपने सूखे खेतों को भी !”

हड़मान की यह बात सुन लिछिया खिलखला पड़ा! दोनों अपने-अपने सूखे खेतों को देखते हुए बातें कर रहे थे!

लिछिया क्या हम अपनी इस बची उम्र में अपने खेतों को लहलहाते हुए देख पाएंगे?!”

 तो क्या यह देखने के लिए तब तक ज़िंदा रहना चाहोगे?!”

 अच्छी चुटकी ली है तुमने, काश ऐसा होता कि उम्र अपने हिसाब से जी जाती!”

हम्म्म, खरी बात! आसमान की तरह है, कुछ तय नहीं करता कि, कहाँ ज़्यादा बरसना है, कहाँ कम!”

तभी बहुत तेज़ी से एक मोटर साइकिल उनके पास से फर्रराटें से निकला धूल का गुबार उड़ाते हुए!

नयी माटी का जोश देखा, कैसा निकला! “

हाँ! अपनी काया की माटी भी कभी ऐसी थी, मगर इतनी तहज़ीब बिसराये नहीं थी!

देखते-देखते कितना कुछ बदल गया बस अपनी आस ही नहीं बदली….!” अगले शब्द रूधे गले में रह गए और एक टक वापिस आसमान तकने लगा!

क्या तुम्हारे यूँ दुखी होने से बादल बरस पड़ेंगे?!”

नहीं! मगर मेरे दुखी मन से आँखें तो बरसेगी ना!”

 

    साम्‍यवाद   

 माँ कितना अच्छा होता कि यदि हम भी धनी होते तो हमारे भी यूँ ही नौकर-चाकर  होते ऐशो-आराम होता।”

सब किस्मत की बात है, चल फटाफट बर्तन साफ कर और भी काम अभी करना पड़ा है।”

माँ-बेटी बर्तन मांजते हुए बातें कर रही थीं।

माँ। इस घर की सेठानी थुलथुली कितनी है और बहुओं को देखो हर समय बनी-ठनी  घूमती रहती हैं, पतला रहने के लिए कसरतें करती हैं भला घर का काम-काज, रसोई का काम, बर्तन-भांडे आदि माँजें तो कसरत करने की ज़रूरत ही नहीं पड़े, है ना माँ ?”

बात तो ठीक है.. बस हमें भूखों मरना पड़ेगा।”

***

      उपहार   

  वाह, मेरा बेटा तो एक दम अमीर लग रहा है ये कपडे़ पहन कर, खू़ब जच रहे हैं तुझ पे !

अरे अम्मा ! जचूंगा तो सही, आज मेरा जन्म दिन जो है !

 मेरा राजा बेटा, तेरी इच्छा थी ना कि पिंटू बाबा जैसे कपडे़ तू पहने ?”

हां अम्मा, मैंने देखा था जब आप चुपके से ले रही थी !

देखा था ! तेरी ज़िद ऐसे कपड़ों की ही थी ना जन्मदिन पे ! मगर तुझे पता है अपनी हैसियत इतने महंगे कपड़े खरीदने की थोड़ी ना है तो मैंने ..!

तभी तो आप ने अपनी मालकिन से चुपक-से पिंटू बाबा के ये पुराने कपडे़ मुझसे से नज़र चुरा मांग लिए थे, मगर अम्मा फिर भी मैंने देख लिया था !

माँ अपने नन्हे बेटे को गले लगाती रुआंसी बोली –

सही बात है बेटा, तेरी ऐसी इच्छा भला और कैसे पूरा कर पाती बता ! मगर तेरे बदन के लिए तो नए ही है ना !

***

      पहचान   

  ‘‘भले ही तुम मेरी पत्‍नी होकर मेरा साथ ना दो, मगर मैं ये मानने को कतई तैयार नहीं हूं कि

 गजनी फिल्‍म के आमिर खान जैसा किरदार भी कोई हक़ीक़त में होता है जिसकी याददाश्त सि़र्फ़ पन्‍द्रह मिनट के लिये रहती है .. मैं इस मैगजी़न में छपे आर्टिकल की कटु आलोचना करता हूं .. डॉक्‍टर रिजर्व नेचर की मेरी पत्‍नी जाने कैसे तुमसे इतनी घुल-मिल गई जो इस आर्टिकल को लेकर तुम्‍हारा सपोर्ट कर रही है! डॉक्‍टर, मुझे हस्‍पताल से छुट्टी कब दे रहे हो, मेरी मेडिकल रिपोर्ट का क्‍या हुआ। हॉं..मेरी बीमारी  तुम्‍हारे पकड़ में आयी है या नहीं या यूंही मुझ पर एक्‍सपेरीमेंट करे जा रहे हो, डॉक्‍टर लोग शायद मरीज को इन्‍सान नहीं जानवर समझकर अपने नित-नए प्रयोग करने की कोशिश करते हैंहॉं.. तो डॉक्‍टर…………।

 ‘‘क्‍या हुआ चुप क्यूँ हो गए, क्या कह रहे थे, तो डॉक्टर ….?” बौखलाई  पत्‍नी उसके पास जाती  हुई बोली।

  ‘‘माफ कीजिए, मैंने आपको जरा….पहचाना नहीं

  पत्‍नी डबडबाई आँखें लिए अपनी शादी का फोटो फिर से पति को दिखाने लगी।

***

    सौदा   

   साहब ! मैंने ऐसा क्या कर दिया जो मुझे बर्खास्त कर दियाचपरासी बोला !

तुमने तो सिर्फ अपना कर्तव्य निभाया था, जिससे मुझे आघात पंहुचा” 

साहब ! मैं समझा नहीं ? ”

ना तुम बारिश में कई दिनों से भीग कर ख़राब हो रहे फर्नीचर को महफूज़ जगह रखते और ना ही नया फर्नीचर खरीद की जो स्वीकृति मिली थी, वो निरस्त होती. अधिकारी ने लाल आँखें लिए प्रत्युत्तर दिया.

***

                              

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