नदी का पानी
(अरुण कमल के लिए )
पहाड़ से गिरता हुआ पानी नहीं जानता कि उसे जाना कहाँ है
वह मिठास और चमक के साथ फांदता है मिट्टी की तरफ
जहाँ से प्यास की भाप उठती है गंध में
सूखी फटी मटमैली गंध
दसो दिशाएं उसकी देह की दरार से कांप जाती हैं
एक कवि और करता क्या है दरार की नमी बनने के आलावा
उसे घास चाहिए अन्न चाहिए अदहन चाहिए हर एक मनुष्य के लिए
रोटी की महक चाहिए भूख से मरते हुए लोगों की पृथ्वी पर
नींद और स्वप्न तो जिन्दा रहने के बाद की जरूरत है
उससे पहले ही सब कुछ रौंद नहीं दे कोई
कवि का दुःख एक कुदाल का दुःख है
जो गलने के लिए मजबूर है आग की भट्टी में
बचने के तमाम उपाय अंततः पराजित करने वाले हैं
कवि बचना नहीं चाहता पहाड़ से गिरना चाहता है
पूरी पृथ्वी पर फ़ैल जाने के लिए
बनकर भाप पिघल कर पानी
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लोकगीत
(रामज्योती देवी के लिए)
गाँव भर में एक आवाज गूंजती है हर अवसर पर
गूंजता है लोकगीत
कांपते हुए कंठ से बिखरती हुई आवाज़
जो खनकते हुए फ़ैल जाती है मीलों दूर तक
आवाज़ जो किसी कोने से उठ सकती है
उठती है तो न जाने कितनी आवाज़ और
जुड़ जाती है एक साथ लय में
न जाने कितनी मिठास और घुल जाती है हवा में
अस्सी वर्ष की उम्र
अस्सी वर्ष का अनुभव
अस्सी वर्ष का संगीत
पके फल की गंध जैसे कोई दीवार नहीं मानती
वैसी ही है आवाज़ वैसा ही है लोकगीत
शोर से भरी पृथ्वी पर कर्कश है संगीत जो इन दिनों
बढ़ा देता है धड़कन की गति
बेचैन मन को शांति चाहिए जो मुश्किल से मिलती है
ऐसे में तुम कैसे बचा कर रखती हो अपनी आवाज़
अपना संगीत
ओ रामज्योती देवी!
तुम कैसे बचा पाओगी अपना लोकगीत!
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खिड़कियां
(रघु के लिए)
दीवार के बीच खिड़की खोल देने की उसकी कला चकित करती है
वह बहुत बारीकी से कर देता है यह काम
रच कर बना देता है पत्थर के बीच हवा का रास्ता
पूरा असमान जो टिका था इस पार
अब आ गया खिड़की के पल्ले पर
खिड़कियाँ किसी किसी की जीने की वजह बन जाती हैं
खासकर वे स्त्रियाँ जो चौखट के बाहर निकल नहीं पातीं
रघु उनके लिए देवता है बचा लेता है दम घुंटने से
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फोन नंबर
(पिता के लिए )
पिता को गए चार साल हो गए
अब न उनकी आवाज़ सुनाई पड़ती है
न मैं कुछ पूछ पाता हूँ कि कैसे हैं
वे इस पृथ्वी पर नहीं रहे
उनका नंबर लेकिन मेरे फोन में अब भी मौजूद है
नंबर के साथ उनकी तस्वीर भी है जो
खींची थी कई साल पहले
पहले अक्सर बात करता तो नंबर सामने ही रहता
कांपता है कलेजा अब
अगर निकल आये नंबर सामने
उस नंबर को मिटाने की हिम्मत नहीं हुई
जब कभी उनका नंबर निकल आता है तो
यही लगता है कि
अगर फोन लगा दिया तो कितनी तकलीफ होगी
जब उधर से पिता नहीं
किसी और की आवाज़ गूंजेगी
वह नंबर किसी और का हो चुका होगा
यह तय है
लेकिन मन नहीं मानता
जैसे मन नहीं मानता कि
पिता नहीं रहे!
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