शरीर गुनगुनाता है
मेरी परछाईं पर
एक पक्षी आकर बैठ जाता है
उसके पंखों से मुझे
आकाश के व्याकरण की
आवाज़ सुनाई देती है
यह मेरे जिस्म का विस्तार है
थोड़ा होकर भी
मैं कितना ज़्यादा हूँ
हवा झूमती है मुझमें
पानी धड़कता है
मैं अपने से परे भी हूँ
और नहीं भी
तुम मुझमें पहाड़ खोजती हो
मैं तुम्हारी देह में नाव
तुम्हें सितारे लिख रहे हैं
मैं भी लिखा जा रहा हूँ कहीं
बिना ध्यान दिये
आँखों में तुम सुनो कभी मुझे
मैं भी होठों में तुम्हें सुनूँ
बारिश की तरह कभी
एक-दूसरे की देह की हरीतिमा के लिए,
ख़ुदी एक समुद्र
रेगिस्तान की बावली रेत की तरह
मैं बारिश के पदचिह्नों की
प्रतीक्षा में हैं
किसी नदी के कुँवारे साहिल की तरह
मैं किसी घड़े के स्पर्श
की प्रतीक्षा में हूँ
कोहरे की अर्द्धनिमीलित आँखों में डूबी
भोर की तरह
मैं उजले प्रकाश की प्रतीक्षा में हूँ
एक उजड़े अपभ्रंश मन्दिर की तरह
निस्वार्थ-प्रार्थना और चीख़ के बीच
मैं ख़ुद को पाने की प्रतीक्षा में हूँ
ख़ुदी एक समुद्र है
समुद्र एक आकाश
और आकाश एक महाचीख़
महाचीख़ एक संपूर्ण क्षण
जो मेरी साँसों को आलोकित करता है
संवाद
मैं तुमसे
शब्द की अभौतिकता पर
चर्चा कर रहा हूँ
और तुम हो
कि कहते हो
शब्द का कोई व्याकरण
नहीं होता
मेरे लिए
चुभने वाली बात यह है कि
विषयान्तर करके भी तुम
यह समझ नहीं पा रहे हो
कि
पेड़ से गिरते पत्ते का भी
एक संतुलन होता है
मन है
मन है कि
परचुनिए की दुकान पर
ब्रेड का पैकेट भूल आऊँ
मन है कि
तुम्हारा नंबर मिलाकर
तुरंत फोन काट दूँ मैं
मन है कि
तुम्हारे लिए अन्डे उबालकर
सब खा जाऊँ मैं
मन है कि
बे-वक़्त मैं कहूँ कभी
कि मुझे भूख लगी है
मन है कि
मेरे नाख़ूनों के भीतर
मिट्टी भर जाए
मन है कि
स्थगित होकर कभी
तुम्हारे हाथ से सहज छुट जाऊँ
मन है कि
पानी की तरह कभी इतना उबलूँ
कि भाप-सा सूक्ष्मतम हो जाऊँ मैं,
ख़ालीपन के सौन्दर्य में
शाम भी, सुबह भी
बासी हो जाती है
यहाँ तक कि
बासी हो जाता है वक़्त भी
रोटी हो जाती है बासी
सुबह तक
फूल शाम तक
घर का आँगन भी
बासी हो जाता है
रोज़ बुहारना पड़ता है
कल तक
आज का अख़बार भी
हो जाता है बासी
वो पानी भी बासी होता है
रोज़ सुबह जो नल में आता है
यह केवल हृदय है
जो स्वयं को तरोताज़ा रखने के लिए
धड़कनों के ख़ालीपन में ईश्वर रखता है
ख़ालीपन के सौन्दर्य में
नीत्शे के ईश्वर का पुनर्जन्म होता है
वर्तमान : दो कविताऍं
(1)
यह
निर्वात में जीने का वक़्त है
अब अपनी आवाज़ को आवाज़ देकर
ख़ुद ही सुना जाए
हुआ जाए अपने साये से अजनबी
थकन भरे ख़ाली दिनों का
बोझ उतारा जाए
भूला जाए पगडण्डियों को
साथ रिश्तों का छोड़ा जाए
अनैतिकता से भरे निर्वात से
पाप के तैरने की आवाज़ आ रही है
मुझे
जिनके सुनने में डूब जाता हूँ मैं
सुनना एक विस्फोटक बिन्दु
हो गया है
बिन्दु के तालु से चीटियाँ चिपकी
हुई है
(2)
यह कौन मुझे
मेरे वजूद से निकाल रहा है
हृदय से बह रही है मेरी चेतना
जैसे वृक्ष से बहता है द्रव
हर शै
आधा-अधूरा रहने को
बाध्य कर रही है
खुल जा सिम-सिम कहकर
मेरी साँसों को जिबह करने में
लगे हैं लोग
पत्थरों के निर्देशन में चेतना का
दम घुट रहा है
अकेलेपन के पानी में
तैर रही है मछलियाँ
भारी हो गया है अस्तित्व
बूढ़ी कमर पर
आधा पिघलकर औंधी पड़ी है घड़ी
सूख गई हैं सुईयाँ
कदाचित
शब्दों में फैलने का मौका
भी नहीं है मेरे पास,
शब्द
एक शब्द लिखो
लिखकर पन्ने पर
अकेला छोड़ दो उसे
न दिखाओ किसी को
न पढ़ो उसे फिर
न कहीं भेजो उसे
केवल सोने दो उसे अकेला
अर्थहीन कागज़ पर
एक दिन
वह ढूँढ लेगा
तुम्हारे भीतर पड़ी अनलिखी किताब
किताब ढूँढ लेगी पाठक
क्योंकि
हर चीज़ किसी दूसरी चीज़ से
बात करती है
चीजें विपरीत ढंग से
क्रमवार व्यवस्थित होना चाहती है
***
परिचय
– 18 दिसम्बर 1954, आगरा (उ०प्र०)
– एम.ए.(हिन्दी,अंग्रेजी,दर्शनशास्त्र) पीएच.डी., (दर्शनशास्त्र) आगरा यूनीवर्सिटी, आगरा.
– ग़ज़ल दोहे, नज्में, कतआत एवं गद्य कविताएँ
– ‘अक्षर शिल्पी’, “एवं माहिर-ए-अदब”, ‘सम्मान’
अखिल भारतीय अम्बिका प्रसाद दिव्य
“स्मृति प्रतिष्ठा पुरुस्कार”, “काव्य महारथी
सम्मान” एवं ‘अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच थाईलैन्ड,
कम्बोडिया, वियतनाम द्वारा साहित्य श्री पुरुस्कार से सम्मानित.
– “काव्या”, ‘अर्बाबे. कल‘म’, ‘सुमन सौरभ’,
‘नई ग़ज़ल’, ‘गुफ्तगू‘, ‘शेष’, ‘सम्बोधन’, ‘लफ़्ज़’, ‘ग़ज़ल के बहाने’,
‘अहा जिदगी‘, ‘दस्तावेज‘, ‘संवदिया,’ ‘बुलन्द प्रवाह’, मानस पत्रिका,
अदम्य पत्रिका ,उद्गम पत्रिका, ‘समकालीन अभिव्यक्ति’, ‘आधारशिला
. साहित्यम’,‘2020 की नुमाइंदा ग़ज़लें’,’संवेद’,’समकालीन भारतीय साहित्य‘
(साहित्यिक अकादमी की त्रैमासिक पत्रिका)
‘ख्वाहिशों की रोशनी में’,‘वागर्थ’,
(भारतीय भाषा परिषद की पत्रिका)
‘अक्षर‘, ‘पुष्पगंधा’, ‘सोचविचार‘, “पूर्वापर”, व्यंजना ,(बेव पत्रिका)
अभिनव प्रयास, दोआबा,सुसंभाव्य एवं “वर्तमान साहित्य”,हरिगंधा
(हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका), हिंदी अकादमी दिल्ली की . . पत्रिका अग्निमान, आदि.
देश विदेश की प्रतिष्ठित एवं नामचीन पत्रिकाओं में प्रकाशित,अग्निमान, .
. इसके अतिरिक्त कई पुस्तकों की समीक्षा का प्रकाशन,
‘तीन कविता संग्रह‘ प्रकाशित.
– निकट कैलटन स्कूल, लाईनपार, मुरादाबाद | (उ0प्र0)- 244001
– -7983639799, 9760929503