अनुनाद

बंशीधर षड़ंगी की कविता /अनुवाद – पारमिता षड़ंगी


                

    शबरी चर्या -1   

 

  (१)

राजा के महल में तेरा स्थान नहीं,

शबरीवाली

इतिहास के दुर्ग के परिखा को पार कर

तू बस चली जा

तेरा वही घनघोर जंगल को,

हजारों पंखुड़ियों के पद्मकोश के ओर

नजाने किस स्थपति के आह्वान से

उद्भाषित पराकाष्ठा के ओर ।

नाव की छाया को थाम लिया है: नदी

जंगल मेँ शर विद्ध: साँबला पादपद्म

काल समन्दर उमड़ आएगा

डूबा देगा सारा द्वारका

जाराशबर के पश्चाताप से

 

तापत्रय से

अर्बुद दुःख से

अहंकार के अक्षौहिणी से

अपरिणामदर्शी शबर

कितने यकिन के साथ छोड़ा था तुम्हे

ऊँचे पर्वत के शिखर पर

फिर भी तुम चले आए राजमहल को

ऐश्वर्य के सिंहासन को ।

(२)

ढलता हुआ सूरज

दण्डकमण्डल पकड़ कर निकल गया

चान्द्रायण व्रत में

अंधेरा धीरे धीरे लौटता है

नदी ,नाल और समन्दर को समेट कर

कौन हो तुम :

जादूगर

परम कारुणिक

बहते हो अब खुन में ।

 

 

(३)

शबरी की कोख में

 

प्राचीन भग्न मन्दिर के अभ्यन्तर में

तुम्हारा अभीष्ट है,

हे ! शबर

निवृत्त अनुरक्ति में

सब खो जाता है ;

गाँव के मिट्टी का खेल

श्मशान में खोपड़ि और मटका

कुचिला का पेड़ के धुँआँ से आतुर

मकड़ी का जाल और

चीता की तपन ।।

सूर्योदय के आतिशय में

गिर पड़ेगी :

भय शंका और आतंक का आवरण

शबरीवाली की अविरत प्रार्थना से

स्तव, स्तुति, प्रलंब से

भूलुण्ठित होगा

 

अंधकार का साम्राज्य

विचित्र एक नदी प्रवाहित होगी

शबरी की काया भेद कर ।।

***

 ( यह कविताएं ओडिशा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत “शवरीचर्या” संकलन से ली गयी हैं)

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
पारमिता षड़ंगी : ओड़िआ साहित्य जगत में पारमिता षड़ंगी एक सुपरिचित नाम हैं । वह अपनी आँचलिकता में सशक्त स्त्री – कथाकार एवं कवयित्री ही नहीं, कुशल ओड़िआ भाषानुवादक भी हैं।नारी मनस्तत्व की विष्लेषण , सूक्ष्म अवबोध की अन्वेषण तथा एक बलिष्ठ कहानी के आधार – उनकी कहानियों को अलग परिचय देतें है। जीवनवादी कहानीकार होते हुए भी पारमिता की कविताएँ चेतना और मानसिकता को खूब प्रभावित करती हैं। हिन्दी और ओड़िआ भाषा में कहानी, कविता लेखन में उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी रचनाएँ भारत के विभिन्न क्षेत्रों और विदेश में भी प्रकाशित हुई है।
 
 
 
 
 
बंशीधर षड़ंगी : डॉ. बंशीधर षड़ंगी समसामयिक ओड़िआ कविता में एक अनोखी और भिन्न स्वर है । इनके दवारा रचित कविता संग्रह ‘शबरीचर्या’ १९९१ में ओडिशा साहित्य अकादमी और कविला-संग्रह ‘स्वरोदय’ सन् २००६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (ओड़िया) से सम्मानित किया गया है। कवि बंशीधर, अतिबडि जगन्नाथ दास द्वारा रचित “भागवत’ दशम स्कंध का प्रामाणिक संपादन के लिए प्रसिदध। उनकी कविता में वक्तव्य का चमत्कारिता, शब्द-चित्र और काव्य कारीगरी उनकी कविता को उर्ध्व स्तर पर ले जाती है। प्राचीन काव्य परंपरा को समकालीन काव्य शैली के साथ जोड़कर पाठक को काव्य चेतना के एक विशेष स्तर पर ले जाती है। उनकी कविता में इहलोक के साथ परलोक तथा पार्थिव के साथ अपार्थिव जगत की संपर्क में रहस्यमय अभिव्यक्ति अक्सर महसूस किया जा सकती है।
 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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